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India Speaks Daily > Blog > Blog > व्यक्तित्व विकास > विचार > साम्राज्यवादी ब्रिटेन की नकल करती हमारी अध्ययन परिपाटी में मौलिकता कम है और शोर अधिक!
विचार

साम्राज्यवादी ब्रिटेन की नकल करती हमारी अध्ययन परिपाटी में मौलिकता कम है और शोर अधिक!

Rajeev Ranjan Prasad
Last updated: 2018/08/10 at 9:03 AM
By Rajeev Ranjan Prasad 164 Views 8 Min Read
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8 Min Read
Women's Education in Ancient India
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राजीव रंजन प्रसाद। जिस डाली पर बैठा उसी को काटने वाला व्यक्ति क्या कभी कालिदास बन सकता था, यदि उसके जीवन में विद्योत्तमा न होतीं? राजा शारदानंद की विदुषी और शास्त्रज्ञ कन्या विद्योत्तमा का ज्ञान-दर्प चूर करने के उद्देश्य से, उनसे शास्त्रार्थ में पराजितों ने एकात्रित हो कर राज्य के महामूर्ख से छलपूर्वक विवाह करवा दिया। परिणाम आज कुमारसम्भव, रघुवंश और मेघदूत जैसी अमरकृतियों के रूप से सामने है। कालिदास का परिवर्तन महत्व का है लेकिन विद्योत्तमा उस युग में स्त्री शिक्षा पर धुंधला प्रकाश डालती है। एक पूरा युग अपनी विद्योत्तमाओं से अपरिचित क्यों है? क्या इसलिये कि उनके तर्कों ने अपने समय के पाण्डित्य को चुनौती प्रदान की थी? राजशेखर रचित ग्रंथ सुक्तिमुक्तावली में एक श्लोक से विजयांक नाम की कवियित्री की जानकारी मिलती है, उन्हें सरस्वती स्वरूपा बताते हुए तुलना कालिदास से की गयी है –

सरस्वतीव कर्णाटी विजयांक जयत्यसौ,
या वदर्भगिरां वास: कालिदासादंतरम।
नीलोत्पलदलश्यामां विजयांकामंजानता,
वृथैव दण्डिनाप्युक्तं, सर्वश्क्लां सरस्वती।

कालिदास के समतुल्य रचनायें जिस कवियित्री की हों वे अल्पज्ञात क्यों हैं? इसी उद्धरण को और कुरेदने पर सुक्तिमुक्तावली के रचयोता राजशेखर की पत्नी अवंति की जानकारी भी मिलती है जिन्होंने आंचलिक शब्दों का संचयन कर शब्दकोष का निर्माण किया था। रेखांकित करें कि चर्चित नाटक कौमुदीमहोत्सव की रचना विज्जका नामक लेखिका द्वारा की गयी है। अपने समय के दो उद्भट विद्वानों शंकराचार्य और मण्डन मिश्र के मध्य हुए शास्त्रार्थ की निर्णायक को हम कितना जानते हैं? हाँ वह स्त्री ही थीं, इस शास्त्रार्थ के एक प्रतिभागी मण्डन मिश्र की पत्नी भारती। क्या निर्णायक कमतर विद्वान होता है?

जैन ग्रंथों मे कोशाम्बी नरेश की पुत्री जयंति का उल्लेख मिलता है जिन्होंने महावीर स्वामी के साथ वादविवाद किया था….. हमने संघमित्रा के समर्पण और बुद्धमार्गी ज्ञान को श्रीलंका में प्रसारित करने की योग्यता पर बहुत चर्चा नहीं की है। हम बुद्ध के समकालीन भिक्षुणियों की काव्यकला से कितना परिचित हैं जो थेरीगाथा के रूप में संकलित हैं? क्या हमारा अतीत महिलाओं की शिक्षा के दृष्टिगत अत्यधिक निष्ठुर था अथवा वर्तमान की व्याख्या गहरे पानी नहीं उतरतीं? तो क्या स्त्री शिक्षा की वर्तमान कसौटियों में वास्तविकतायें नहीं अपितु विचारधारायें कसी गयी हैं?

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ऋग्वेद में बाईस वैदिक विदुषियों का उल्लेख किया गया है जिन्होंने श्लोक रचनायें भी की हैं – सूर्यासावित्री (47), घोषा काक्षीवती (28), सिकता निवावरी (20), इंद्राणी (17), यमी वैवस्वती (11), दक्षिणा प्रजापात्या (11), अदिति (10), वाक आम्मृणी (8), अपाला आत्रेयी (7), जुहू ब्र्म्हजायो (7), अगस्त्यस्वसा (6), विश्ववारा आत्रेयी (6), उवर्वी (6), सरमा देवशुनी (6), देवजामय: इंद्रमातर: (5), श्रद्धा कामायनी (5), नदी (4), सर्पराज्ञी (3), गोधा (22), शस्वती आंगिरसी (23), वसुक्रपत्नी (24), रोमशा ब्रम्हवादिनी (5) तथा अथर्ववेद में पाँच श्लोक रचयिता विदूषियाँ उल्लेखित हैं!

सूर्यासावित्री (139), मातृनामा (40), इंद्राणी (11), देवजामय: (5) तथा सर्पराज्ञी (3)। इसी तरह हमें उपनिषदों में भी मैत्रेयी एवं गार्गी जैसी विदुषियों का उल्लेख प्राप्त होता है। हारीत संहिता बताती है कि वैदिक समय में स्त्रीशिक्षा सहज प्रक्रिया थी एवं प्रमुखत: दो प्रकार की छात्रायें होती थीं – सद्योवधू (वे विवाह होने से पूर्व ज्ञान प्राप्त कर लेती थीं) तथा ब्रम्हवादिनी (ब्रम्हचर्य का पालन करने वाली ये छात्रायें जीवनपर्यंत ज्ञानार्जन करती थीं)। शिक्षा ही नहीं अनेक विदुषियाँ शिक्षिकाओं के दायित्व का भी निर्वहन करती थीं। आश्वालायन गृहसूत्र में गार्गी, मैत्रेयी, वाचक्नवी, सुलभा, वडवा, प्रातिथेयी आदि शिक्षिकाओं के नामोल्लेख प्राप्त होते हैं। शिक्षिका का जीवन व्यतीत करने वाली स्त्रियों के लिये उपाध्याया सम्बोधन प्राप्त होते हैं। इतना ही नहीं पाणिनी ने विशेष रूप से शाला छात्राओं (छात्र्यादय: शालायाम) के भी होने का उल्लेख किया है।

क्या पढाया जाता था यह भी महत्वपूर्ण है। स्त्रियाँ यदि दर्शन, तर्क, मीमांसा, साहित्य तथा विभिन्न विषयों की ज्ञाता न होतीं तो क्या वे वेदों की अनेक ऋचाओं की रचयिता हो पातीं? महाभारत मे काशकृत्स्नी नाम की के विदुषी का उल्लेख है जिन्होंने मीमांसा दर्शन पर काशकृत्स्नी नाम के ग्रंथ की रचना की। शतपथ ब्राम्हण में उल्लेखित है कि स्त्रियाँ वेद, दर्शन, मीमांसा आदि के अतिरिक्त नृत्य, संगीत, चित्रकला आदि की शिक्षा भी ग्रहण करती थीं। वात्साययन के कामसूत्र में उल्लेख है कि स्त्रियों को चौसठ कलाओं की शिक्षा दी जाती थी। यही नहीं जैन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि स्त्रियों को व्यावहारिक एवं लिखित रूप से शिक्षा प्रदान की जाती थी। समय बदलता रहा, बिगडता भी रहा लेकिन मध्यकाल के कुछ पहले तक स्त्री शिक्षा के बहुत ही रुचिकर और उल्लेखनीय उदाहरण मिलते रहते हैं।

आठवी सदी में लेखिका चिकित्सक – रूसा की एक कृति प्राप्त हुई थी (अरबी में अनूदित) जिसमें जिसमें धातृकर्म पर विवरण मिलते हैं। बारहवी सदी में भास्कर द्वितीय ने अपनी पुत्री लीलावती को गणित का अध्ययन कराने के लिये लीलावती ग्रंथ की रचना की थी। परमार शासक उदयादित्य के झरापाटन अभिलेख में भी हर्षुका नाम की विदूषी का उल्लेख मिलता है। आज अतिपिछडा कहे जाने वाले बस्तर क्षेत्र में नागशासकों के एक अभिलेख में विदूषी राजकुमारी मासकदेवी की जानकारी प्राप्त होती है जो किसानों के हित के लिये राज्यनियम परिवर्तित करवाती हैं। महाकाव्य पृथ्वीराज रासो बताता है कि राजकुमारी संयोगिता न केवल विदूषी थीं अपितु उन्होंने मदना नाम की शिक्षिका द्वारा संचालित कन्यागुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। उल्लेख यह भी मिलता है कि उनकी लगभग पाँचसौ सहपाठिने विभिन्न राज्यों से आयी राजकुमारियाँ थीं।

यह अलग विषय है कि स्त्री-शिक्षा की परिपाटी कैसे खण्डित हुई अथवा इतिहास का मध्यकाल हमें कब और क्यों प्रगतिपथ से अलग कर पगडंडी पकडा देता है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को पुराने पन्ने पलटने ही होंगे, साम्राज्यवादी ब्रिटेन की नकल करती अब भी संचालित हमारी अध्ययन-अध्यापन परिपाटी में मौलिकता कम है और शोर अधिक। प्रश्न यह भी है कि स्त्री-असमानता और पिछडेपन के विचारधारापोषित बीन के पीछे बहुत ही भीनी बांसुरी भी निरंतर बज रही है, हम उसे क्यों सुनना नहीं चाहते? माना कि अंधेरे बहुत है, माना कि कडुवी सच्चाईयाँ और भी हैं लेकिन उजाले की एक नदी कहीं जम गयी है, हम उसे क्यों पिघलाना नहीं चाहते? …क्रमशः

भारतीय शिक्षा प्रणाली पर अन्य लेखों के लिए पढें:

महर्षि अगत्स्य का विद्युत शास्त्र!

शिक्षा में हुई चूक का परिणाम है जो शल्यचिकित्सा के जनक को पश्चिम का मुंह ताकना पड़ रहा है?

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वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसी पौध तैयार कर रही है जिसमें न कल्पनाएं हैं न नैसर्गिक प्रतिभा!

समान शिक्षा की अवधारणा ही देश में समान सोच का बीजारोपण कर सकती है।

अंग्रेजों ने क्यों और कैसे किया भारत की गुरुकुल प्रणाली को नष्ट?

साभार: राजीव रंजन प्रसाद के फेसबुक वाल से

साभार: राजीव रंजन प्रसाद के फेसबुक वाल से

URL: Indian Education System and the Ghost of Lord Macaulay-6

Keywords: Education, Female education, Women’s Education in Ancient India, indian education system, , Education in India, Equal education, Surgery, Lord Macaulay, indian gurukul system, महिला शिक्षा, प्राचीन भारत में महिला शिक्षा,भारतीय बिदुषी महिलाएं, भारतीय शिक्षा प्रणाली, भारत में शिक्षा, समान शिक्षा, भारतीय गुरुकुल प्रणाली,

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Rajeev Ranjan Prasad August 6, 2018
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राजीव रंजन प्रसाद ने स्नात्कोत्तर (भूविज्ञान), एम.टेक (सुदूर संवेदन), पर्यावरण प्रबन्धन एवं सतत विकास में स्नात्कोत्तर डिप्लोमा की डिग्रियाँ हासिल की हैं। राजीव, 1982 से लेखनरत हैं। इन्होंने कविता, कहानी, निबन्ध, रिपोर्ताज, यात्रावृतांत, समालोचना के अलावा नाटक लेखन भी किया है साथ ही अनेकों तकनीकी तथा साहित्यिक संग्रहों में रचना सहयोग प्रदान किया है। राजीव की रचनायें अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं तथा आकाशवाणी जगदलपुर से प्रसारित हुई हैं। इन्होंने अव्यावसायिक लघु-पत्रिका "प्रतिध्वनि" का 1991 तक सम्पादन किया था। लेखक ने 1989-1992 तक ईप्टा से जुड कर बैलाडिला क्षेत्र में अनेकों नाटकों में अभिनय किया है। 1995 - 2001 के दौरान उनके निर्देशित चर्चित नाटकों में किसके हाँथ लगाम, खबरदार-एक दिन, और सुबह हो गयी, अश्वत्थामाओं के युग में आदि प्रमुख हैं। राजीव की अब तक प्रकाशित पुस्तकें हैं - आमचो बस्तर (उपन्यास), ढोलकल (उपन्यास), बस्तर – 1857 (उपन्यास), बस्तरनामा (विमर्श), दंतक्षेत्र (विमर्श), बस्तर के जननायक (शोध आलेखों का संकलन), मौन मगध में (यात्रा वृतांत), मैं फिर लौटूंगा अश्वत्थामा (यात्रा वृतांत), बस्तर- पर्यटन और संभावनायें (पर्यटन विषयक), तू मछली को नहीं जानती (कविता संग्रह), प्रगतिशील कृषि के स्वर्णाक्षर – डॉ. नारायण चावड़ा (जीवनी/ कृषि शोध), खण्डहर (नाटक)। राजीव को महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा कृति “मौन मगध में” के लिये इन्दिरागाँधी राजभाषा पुरस्कार (वर्ष 2014) प्राप्त हुआ है। उनकी कृति “बस्तरनामा” को पर्यटन मंत्रालय के प्रतिष्ठित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार के लिये चयनित किया गया है। अन्य पुरस्कारों/सम्मानों में संगवारी सम्मान 2013, प्रवक्ता सम्मान (2014), साहित्यसेवी सम्मान (2015) मिनीमाताअ सम्मान (2016) आदि प्रमुख हैं।
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