राजीव रंजन प्रसाद। कुछ उद्धरण प्राप्त हुए कि मैक्समूलर और मैकाले के बीच कई दौर की वार्ता हुई, कतिपय इतनी तीखी कि उसमें मैकाले ही बोलते रहे। इस विवरण को आगे बढाने से पूर्व यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि वैदिक ग्रंथों और प्राचीन भारतीय शास्त्रों का अंग्रेजी में अनुवाद वे किसी निजी जिज्ञासा, प्रेरणा अथवा शोध के लिये नहीं कर रहे थे अपितु इसके लिये बाकायदा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 15 अप्रैल 1847 को उन्हें अनुबंधित किया था।
मैकाले से मुकालात के विषय में मैक्समूलर अपनी पुस्तक “लैंग सायने” में लिखते हैं कि भारत भेजे जाने वाले युवकों को क्या पढाया जाना चाहिये इस विषय पर लम्बी बातचीत हुई। वे मैकाले को चालाक मष्तिष्क वाला वाकपटु कहते हैं, विवशता प्रकट करते हुए वे लिखते हैं कि इस मुलाकात के बाद मैं अधिक समझदार बन कर ऑक्सफोर्ड लौटा। मैकाले-मैक्समूलर युति से यह बात स्पष्ट है कि उस दौर में भारतीय ज्ञान, पुस्तकों और शिक्षा-पद्यति के दृष्टिगत पैसा दे कर विकृतिकरण की प्रक्रिया चल रही थी। मैक्समूलर सहमत थे अथवा असहमत लेकिन काम उन्हें अपने ब्रिटिश आकाओं के मनोनुकूल करने की बाध्यता थी।
जीवनपर्यंत कुछ सत्य सामने नहीं आते, मैक्समूलर ने अपनी जीवनी प्रकाशित की जो आत्मप्रशंसा से भरी हुई है। इसमें वे भारतीयों के लिये मसीहा हैं परंतु उनकी मृत्यु के पश्चात दो खण्डों में पत्नी जॉर्जिया मैक्समूलर ने उनका जीवन, कार्यों व पत्रों को संकलित कर प्रकाशित करवाया। कुछ उदाहरण इन्हीं खण्डों से लेते हैं। दिनांक 15/12/1866 को मैक्समूलर ने जॉर्जिया को पत्र में लिखा – “मेरा ऋग्वेद का यह संस्करण और वेद का अनुवाद भारत के भाग्य और लाखो भारतीयों की आत्माओं के विकास पर प्रभाव डालने वाला होगा। वेद उनके धर्म का मूल है और मूल को उन्हें दिखा देना जो कुछ उससे पिछले तीन हजार वर्षों में निकला है, उसको मूल सहित उखाड फेंकने का सर्वोत्तम तरीका है”
यह पढ कर क्या दिमाग सुन्न नहीं हो जाता कि भारतीय ग्रंथों के साथ इन विदेशियों ने क्या व्यवहार किया है? मैक्समूलर का 16/12/1868 को भारत के लिये सेक्रेटरी ऑफ स्टेट्सड्यूक ऑफ़ आर्गायल को पत्र लिखा उल्लेखनीय है, वे लिखते हैं – “भारत एक बार जीता जा चुका है लेकिन भारत को दुबारा जीता जाना चाहिये और यह दूसरी जीत ईसाई धर्म शिक्षा के माध्यम से होनी चाहिये। हाल में शिक्षा के लिये काफी किया जा चुका है लेकिन यह धनराशि दुगुनी या चौगुनी कर दी जाये तो ऐसा करना मुश्किल न होगा।….।
भारत की ईसाईयत शायद हमारी उन्नीसवीं सदी जैसी ईसाईयत भले ही न हो लेकिन भारत का प्राचीन धर्म यहाँ डूब चुका है, फिर भी यदि यहाँ इसाईयत नहीं फैलती है तो इसमें दोष किसका होगा?” 13/01/1875 को डीन स्टेनली को लिखे पत्र में मैक्समूलर धन्यवाद ज्ञापित करते हैं कि – “इंग्लैण्ड की महारानी यह जाने कि जिस काम के लिये मैं, 1846 में इंग्लैण्ड आया था वह काम मैंने पूरा कर दिया है। इंग्लैण्ड वापस आने पर मुझे एक पत्र मिला जिसमे लॉर्ड सैलिसबरी ने मेरी ऋग्वेद सम्बंधी सेवाओं के सम्मान में मेरे काम के लिये अनुदान राशि बढाने का प्रस्ताव किया है”।
29/01/1882 की बैराम मालबारी को लिखे पत्र में मैक्समूलर लिखते हैं – “तुम वेद को एक प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथ के रूप में स्वीकारो, जिसमें कि एक प्राचीन और सीधे-सादे चरित्र वाली जाति के लोगों के विचारों का वर्णन है तब तुम इसकी प्रशंसा कर सकोगे और इसमे से कुछ को स्वीकार करने के योग्य हो सकोगे विशेषकर आज के युग में भी उपनिषदों की शिक्षाओं को, लेकिन तुम इसमे ढूंढो भाप के इंजन और बिजली, यूरोपीय दर्शन और नैतिकता, और तुम इसके सच्चे स्वरूप को इससे अलग कर दो। तुम इसके वास्तविक मूल्यों को नष्ट कर दो और तुम इसकी ऐतिहासिक निरंतरता को नष्ट-भ्रष्ट कर दो जो कि वर्तमान को इसके अतीत से जोडती चली आ रही है।”
इन पत्रों के निहितार्थ को ठहर कर समझिये तब आप मैक्समूलर को मैकाले से अलग अलग नहीं कर सकेंगे। ध्यान रहे कि मैक्समूलर के अनुवाद को समकालीन भारतीय विद्वानों ने ही खारिज कर दिया था। एक उद्धरण मिलता है कि किसी श्लोक का मैक्समूलर ने अट्ठारह बार केवल इसी लिये अलग अलग तरीके से अनुवाद करवाया चूंकि अपने पसंद का अर्थ उसे प्राप्त नहीं हो रहा था। सत्यार्थप्रकाश में दयानंद सरस्वती उल्लेख करते हैं कि – “मोक्षमूलर साहब के संस्कृत साहित्य और थोडी सी वेद की व्याख्या देख कर विदित होता है कि उन्होंने इधर-इधर आर्यवर्तीय लोगों की हुई टीका देख कर कुछ-कुछ यथा-तथा लिखा है। जैसा कि “युञ्जन्ति व्रन्घं चरन्तं परितस्स्थुष:। रोचन्ते राचनादिवि (ऋ. १.६.१), इस मंत्र में व्रन्घं का अर्थ घोडा लिया गया है, इससे तो जो सायणाचार्य ने सूर्य अर्थ किया है सो अच्छा है, परंतु इसका ठीक अर्थ परमात्मा है – इतने से जान लीजिये कि जर्मनी देश और मोक्षमूलर साहब में संस्कृत का कितना पाण्डित्य है”।
हम पाश्चात्य साहित्य और उसके उद्धरणों पर कितना विश्वास कर सकते हैं यह दूसरा प्रश्न है, पहला यह कि हमारी शिक्षाव्यवस्था जब तक पाश्चात्य प्रभाव से अवमुक्त नहीं होगी हम क्या और कितना जानने की क्षमता रखते हैं?… क्रमशः
भारतीय शिक्षा प्रणाली पर अन्य लेखों के लिए पढें:
साम्राज्यवादी ब्रिटेन की नकल करती हमारी अध्ययन परिपाटी में मौलिकता कम है और शोर अधिक!
शिक्षा में हुई चूक का परिणाम है जो शल्यचिकित्सा के जनक को पश्चिम का मुंह ताकना पड़ रहा है?
राजा और रंक के भेद को मिटा कर ही भारतीय शिक्षा प्रणाली हो सकती है दुरुस्त!
वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसी पौध तैयार कर रही है जिसमें न कल्पनाएं हैं न नैसर्गिक प्रतिभा!
समान शिक्षा की अवधारणा ही देश में समान सोच का बीजारोपण कर सकती है।
अंग्रेजों ने क्यों और कैसे किया भारत की गुरुकुल प्रणाली को नष्ट?
साभार: राजीव रंजन प्रसाद के फेसबुक वाल से
URL: Indian Education System and the Ghost of Lord Macaulay-7
Keywords: Education, Lord Macaulay, max mueller, Maxmuller met Macaulay, indian education system, Education in India, indian gurukul system, लॉर्ड मैकॉले, अधिकतम मुलर भारतीय शिक्षा प्रणाली, भारत में शिक्षा, समान शिक्षा, भारतीय गुरुकुल प्रणाली,