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संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही

200 से 250 परिवारों के चंगुल में कैद है भारतीय न्यायपालिका!

ISD News Network
Last updated: 2021/04/09 at 12:40 PM
By ISD News Network 787 Views 7 Min Read
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7 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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देश की न्यायपालिका की शीर्ष संस्थान यानि सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक ढाई से तीन सौ परिवारों की ड्योढी बने हुए हैं। यह बात अब खास से लेकर आम तक आम हो चुकी है। इसी मुद्दे पर हिंदुस्तान टाइम्स ने 3 मई 2014 को एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में नाम समेत प्रकाशित किया है कि किस प्रकार पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट जजों के सगे संबंधियों के चंगुल में फंसा है? पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के कुल 47 जजों में 16 यानि 34 प्रतिशत जजों के करीब 30 सगे संबंधी उसी कोर्ट में या तो अधिकारी हैं या फिर वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं। जस्टिस सबिना नाम की एक जज के तो छह संबंधी इस कोर्ट में वकील के रूप में प्रैक्टिस करते हैं। इनमें उनके पिता और पति समेत कई खास संबंधी शामिल हैं। मालूम हो कि भारतीय बार परिषद द्वारा जारी प्रावधान के तहत संबंधी जजों के कोर्ट में पैक्टिस करना वर्जित है। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में फॉली नरीमन जैसे वरिष्ठ वकील बार काउंसिल ऑफ इंडिया के मान की धज्जियां उड़ा रहे हैं तो फिर यह तो हाईकोर्ट का मामला है।

हर तीसरा न्यायाधीश किसी दूसरे न्यायाधीश का चाचा या भतीजा है।

बस 350 परिवारों में सिमित है हमारी न्याय व्यवस्था जिसे आप कोलेजियम सिस्टम कहते है जहाँ एक जज दुसरे जज को नियुक्त करता है और ऐसा करने वाला भारत अकेला देश है!

viaWA pic.twitter.com/rSykgY7VOL

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— #GauravPradhan ?? (@DrGPradhan) October 1, 2018

मुख्य बिंदु

* न्यायमूर्ति सबीना के पिता और पति समेत छह सगे संबंधी पंजाब एवं हरियाणा कोर्ट में हैं वकील

* विधि आयोग ने साल 2009 में ही यूपीए सरकार को सगे संबंधी वाले 16 जजों की भेजी थी सूची

पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट में 47 जजों में से 16 जजों के 30 सगे संबंधी न केवल वकील के रूप में प्रैक्टिस करत हैं बल्कि इनमें से कइयों को प्रदेश सरकार ने एएजी (एडिशनल ऑडिटर जनरल), डीएजी (डिप्युटी ऑडिटर जनरल) बना रखा है। ये लोग धड़ल्ले से अपने संबंधी जज के कोर्ट में न केवल पेश होते हैं बल्कि केसों की सुनवाई के दौरान दलील भी पेश करते हैं। भारत के 41वें मुख्य न्यायधीश राजिंदर माल लोढ़ा ने कोर्ट में ‘अंकल जज’ के मामले पर बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि इस मामले का जजों से कोई लेना-देना नहीं है। यह मामला तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया तथा राज्यों का है। उन्होंने कहा कि जैसे अंकल जजों को हाईकोर्ट से बाहर शिफ्ट करने का राजस्थान तथा बिहार बार काउंसिल ने प्रस्ताव पास कर रखा है। इसी प्रकार अन्य राज्यों के बार काउंसिल को भी करना चाहिए।

वहीं इस मामले में जब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन बिरी सिंह सिनसिनवार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जो कुछ कह रहे हैं वह पूरा तथ्य आधारित नहीं है। क्योंकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया पहले ही यह प्रस्ताव पास कर चुका है कि अगर किसी हाईकोर्ट में किसी वकील के संबंधी जज नियुक्त किए जाते हैं तो उनका तत्काल प्रभाव से किसी अन्य हाईकोर्ट में तबादल कर दिया जाना चाहिए। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के इस प्रस्ताव पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है। अगर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 16 जजों का तत्काल अन्य हाईकोर्ट में तबादला कर दिया जाता है तो फिर यह मामला रह ही नहीं जाएगा। लेकिन बार काउंसिल ऑफ इंडिया के इस प्रस्ताव पर न तो कभी सुप्रीम कोर्ट न ही केंद्र सरकार इस पर ध्यान दिया।

वहीं इस मामले में पंजाब एवं हरियाणा बार काउंसिल के चेयरमैन राकेश गुप्ता का कहना है कि यह परिषद शिकायत के आधार पर कार्यवाही करती है। जहां तक किसी अन्य राज्यों के बार काउंसिल द्वारा पास प्रस्ताव की बात है तो उसे आने तो दीजिए, वैसे उसपर हम टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।

Indian Judiciary is made up of Children of Big Incestous Family. Study shows 40% of THEM suffers either autosomal recessive disorders, congenital physical malformations, or severe intellectual deficits. 14 % having mild mental disabilities.

Judgments Reflects That Exactly. pic.twitter.com/kPb3okqwjD

— Pushker Awasthi (@pushkker) October 1, 2018

विधि आयोग ने 2009 में यूपीए सरकार को भेजी थी रिपोर्ट

‘अंकल जज’ के मामले में विधि आयोग ने कहा है कि उसने अपनी 230 वीं रिपोर्ट 2009 में यूपीए सरकार को भेज दी थी। आयोग का कहना है कि उस रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर किसी के संबंधी हाईकोर्ट में वकील के रूप में प्रैक्टिस करते हैं को उन्हें उस कोर्ट का जज नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्हें किसी हाईकोर्ट का जज बनाना चाहिए, या फिर उसका तबादला कर देना चाहिए। विधि आयोग ने इस संदर्भ में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 16 जजों की सूची भी भेजी थी और कहा था कि इनका कहीं और तबादला करने को कहा था लेकिन आज तक कार्रवाई नहीं की गई।

इससे तो साफ हो जाता है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस इसी प्रकार की व्यवस्था चाहती है। इसलिए तो आज भी सुप्रीम कोर्ट में कई ऐसे जज और वकील भरे पड़े हैं जो देश और न्याय के प्रति प्रतिबद्ध न होकर सिर्फ अपने आकाओं के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

Keywords: Indian judiciary- nepotism in punjab and haryana court

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ISD News Network October 1, 2018
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