सर्वांगीण विकास शायद इसी को कहते हैं, मोदी जी ने अपने कार्यकाल की शुरुवाती संसद सत्र में बोला था था कि हम ‘गुड गवर्नेन्स’ बन कर काम करना चाहते हैं, और चार साल के बाद आंकड़े यही साबित कर रहे हैं। मोदी सरकार ने ऐसा कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा जहाँ उन्होंने अपनी गुड गवर्नेन्स की मंशा न दिखाई हो उसी का परिणाम है कि कारगिल युद्ध के दौरान जिस जीपीएस प्रणाली के लिए हम अमेरिका से मांग कर रहे थे वह हमारे वैज्ञनिकों ने इसरो की सहायता से बना लिया है ज्यादा सटीक और भरोसेमंद भी! कश्मीर में आतंकवादियों के लिए जल्द काल बन कर लोंच होने वाला भारतीय सीमा का पहरेदार नैविगेशन प्रणाली ‘नाविक'(रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम)।
अभिजीत श्रीवास्तव। 1999 कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिक घुसपैठियों की तरह कश्मीर में घुस आए और उन्होंने कारगिल में कई पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया। भारतीय सेना ने मिशन की शुरूआत की, घुसपैठियों की सही लोकेशन पता करने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए भारत सरकार ने अमेरिका से जीपीएस सिस्टम से लोकेशन उपलब्ध करवाने की मदद मांगी। लेकिन अमेरिका ने ऐसा करने से मना कर दिया! यही वो समय था जब भारत ने अपनी नैविगेशन प्रणाली बनाने पर काम शुरू किया। और आज उसी का नतीजा है कि भारत अपनी नैविगेशन प्रणाली बनाने वाले चंद देशों में शामिल है!
7 सेटेलाइटों का समूह ‘नाविक’ यानी नैविगेशन विद इंडियन कौन्स्टेलेशन अब पूरी तरह से तैयार है, 2018 के अंत तक इसको सभी के लिए लॉन्च किया जाएगा, मतलब अब गूगल मैप/जीपीएस के दिन लद गए! यह जगह अब स्वदेशी प्रणाली “आरपीएस” रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम लेगा। आइए जानते है इसकी कुछ खास बातें:
7 सैटेलाइट 1500 किमी के क्षेत्र को कवर कर रहे हैं।
इसमें से तीन उपग्रह भू स्थिर कक्षा में और चार भू-तुल्यकाली कक्षा में स्थापित किए गए हैं।
भूस्थिर कक्षा या भूमध्य रेखीय भूस्थिर कक्षा पृथ्वी से 35786 किमी ऊंचाई पर स्थित वह कक्षा है, जहां स्थित उपग्रह पृथ्वी से हमेशा एक ही स्थान पर दिखाई देता है।
नाविक प्रणाली का पहला उपग्रह IRNSS-1a 01 जुलाई 2013 को प्रक्षेपित किया गया।
इस प्रणाली का आखिरी उपग्रह यानी IRNSS-1i 12 अप्रैल, 2018 को PSLV-C41 द्वारा स्थापित किया गया।
युद्ध, आपदा इत्यादि के समय इसका लाभ भारत के मित्र देश भी ले सकेंगे।
यह स्वदेशी नैविगेशन सिस्टम “नाविक” 20 मीटर से भी कम का सटीक डाटा उपलब्ध कराएगा।
इसे भारतीय उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ 1500 किमी तक विस्तारित क्षेत्र की सटीक जानकारी देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
भारत को स्वदेशी नैविगेशन प्रणाली देने वाला नाविक सभी मौसमीय परिस्थितियों में कारगर है।
इस तकनीक के साथ ही भारत विश्व का तीसरा ऐसा देश बन गया है जिसके पास खुद की स्वदेशी नैविगेशन प्रणाली है।
आईआरएनएसएस के केवल 7 उपग्रह भारत और उसके पड़ोसी देशों को कवर कर रहे हैं।
नाविक प्रणाली को जीपीएस से बेहतर माना जा रहा है, इसका एक कारण यह है कि इसमें S और L बैंड की दोहरी आवृत्ति है, जबकि जीपीएस केवल L बैंड पर ही निर्भर है।
नाविक प्रणाली को इस साल के अंत तक मोबाइल फोन के साथ जोड़ा जाएगा।
यह आपदा प्रबंधन, मैपिंग, भूगर्भीय डाटा कैप्चर करने, ड्राइवरों के लिए दृश्य और आवाज नेविगेशन के अलावा वाहन ट्रैकिंग और बेड़े प्रबंधन में भी मददगार साबित होगा।
सैन्य मिशन पर, हथियारों की आवाजाही और मिसाइल छोड़ने या उसे नैविगेट करने में और विमानों की ट्रैकिंग में भी इसका उपयोग किया जाएगा।
भारतीय सेना द्वारा ‘नाविक’ की मदद से कश्मीर में सेंसिटिव इलाकों की डिजिटल मैपिंग की जा रही है, इससे भारतीय सेना को दुर्गम इलाकों की सटीक जानकारी, आतंकियों के लॉन्च पैड, आतंकियों की घुसपैठ पर नाविक की मदद से सटीक लोकेशन प्राप्त कर सकेंगे।
सबसे बड़ी बात नाविक के 6 सैटेलाइट 2014 से अप्रैल 2018 के बीच नरेंद्र मोदी सरकार में #इसरो द्वारा स्थापित किए गए है।
स्वदेशी जीपीएस सिस्टम का जो सपना अटल बिहारी बाजपेई जी ने देखा उसको नरेंद्र मोदी जी ने 4 वर्षों में पूरा कर दिखाया है।
साभार: Abhijeet Srivastava के फेसबुक वाल से
URL: India’s own GPS NavIC set to hit the market this year
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