प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बींच हुई अनौपचारिक वार्ता हाल ही में तमिल नाडू के एतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर ममल्लापुरम में संपन्न हुई.
जैसा कि अक्सर अनौपचारिक वार्ताओं में होता है, कोई ठोस निष्कर्ष तो नहीं निकले, न ही दोनों देशों के संबंधों में नाटकीय बदलाव की दस्तक देते कोई निर्णय लिये गये. लेकिन दोनों देशों में जो ट्रस्ट डेफिसिट या आपसी विश्वनीयता के अभाव की खाई गहराती जा रही है, उसके कुछ कम होने की संभावना बनती ज़रूर दिखाई दी.
जम्मू कश्मीर पर से धारा 370 हटने के मुद्दे पर कोई बातचीत नहीं
जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने के मुद्दे पर चीन की राष्ट्रपति ने कोई टीका टिप्पणी नहीं की. दोनों प्रमुखों के बीच में इस मुद्दे को लेकर कोई विमर्श नहीं हुआ. हालांकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री मोदी को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के हाल ही में संपन्न हुए चीन दौरे का ब्यौरा ज़रूर दिया. इसके अलावा दोनों प्रमुखों ने आतंकवाद और रैडिकलिज़्म या कट्ट्ररतावाद का सख्त विरोध किया और मिलकर इन समस्याओं से जूझने का संकल्प भी लिया.
चीन की कथनी और करनी में हमेशा रहा अंतर
अब अगर वास्तविकता की धरातल पर आयें तो चीन की ये सब बातें सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं. लेकिन इतिहास गवाह है कि चीन की कथनी और करनी में अक्सर खासा अंतर रहा है. ममल्लापुरम वार्ता के कुछ घंटे पहले ही चीन के राष्ट्रपति पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से चीन में मिले और उन्होनें पाकिस्तान को आश्वासन दिया कि चीन जम्मू और कश्मीर पर से धारा 370 हटने के मामले पर पैनी अज़र रखे हुए है और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत सुलझाने की प्रक्रिया में वह पाकिस्तान की पूरी पूरी मदद करेगा. अब इसके कुछ समय पहले ही चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा था कि जम्मू और कश्मीर भारत और पाकिस्तान का आंतरिक मामला है और उसे दोनों को साथ मिलकर सुलझाना चाहिये. और उस समय उन्होने संयुक्त राष्ट्र संघ को बीच में लाने का कहीं भी ज़िक्र नहीं किया. तो आप देख सकते हैं कि जो देश 2-3 दीन में किसी मुद्दे को लेकर अपना बयान बार बार बदले, उससे मौकापररस्ती की उम्मीद रखना तो लाज़िमी ही है. अब गेंद पूरी तरह से चीन के पाले में है. भारत ने इस वार्ता को अंजाम देकर और ममल्लापुरम के एतिहासिक शहर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ज़ोरदार और भव्य स्वागत करके अपनी सहिषण्ता और सहृदयता का परिचय दे दिया है. लेकिन चीन को इसे भारत की कमज़ोरी समझने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिये.
व्यापारिक असंतुलन को कम करने के मुद्दे पर हुई बातचीत
भारत और चीन के बीच गहराता ट्रेड डेफिसिट या व्यापारिक असंतुलन भी बातचीत का मुद्दा बने. और इस क्षेत्र में दोनों प्रमुखों के बीच भविष्य के लिये कुछ रूप रेखा भी निर्धारित की गयी जिसे आने वाले समय में देशों के व्यापारिक मंडल के प्रतिनिधि क्र्मानुसार मिलके कार्यांवित करेंगे. लेकिन बात वहीं चीन की कथनी और करनी पर आ जाती है. चीन भारत से अपने आयातों को बढ़ाने के वादों पर कितना खरा उतरता है, यह तो समय ही बतायेगा. क्योंकि भारत के ये मुद्दा बार बार उठाने के बावजूद चीन ने अभी तक इस क्षेत्र में कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं.
भारत और चीन के पेंचीदा रिश्तों में तनाव कम करने के लिये अनौपचारिक वार्ता एक कारगर प्रक्रिया
दोनों देशों के बीच अनौपचारिक वार्ता की परिकल्पना प्रधानमंत्री मोदी ने की थी जिसके तहत 2018 में चीन के वूहान शहर में वूहान सम्मिट नाम से दोनों प्रमुखों के बीच पहली अनौपचारिक वार्ता हुई थी. एक औपचारिक वार्ता के तयशुदा एजेंडे के विपरीत अनौपचारिक वार्ता का कोई तयशुदा एजेंडा नहीं होता. बल्कि दोनों देशों प्रमुख अनुपचारिक माहौल में एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं और अपनी आपसी केमिस्ट्री और माहौल के हिसाब से बातचीत आगे बढ़ाते हैं. इसमें किसी भी तरह के समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर नहीं होते. बस एक माहौल तैयार होता है कई क्षेत्रों में परस्पर सहयोग के लिये. वैसे भी भारत और चीन के संबंध काफी पेंचीदा हैं. भारत जानता है कि चीन भारत के खिलाफ कई मोर्चों पर पाकिस्तान का साथ देता है. वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में भी चीन ‘चीन पाकिस्तान एकांनमिक कांरिडोर’ को लेकर अड़ा हुआ है जिसका एक बड़ा हिस्सा कश्मीर के उस विवादित क्षेत्र से होकर गुज़रता हई, जो पाकिस्तान के कब्ज़े में है. इसकी वजह यह भी है कि चीन अपने इसे अतिमहत्वाकाकांक्षी प्रोजेक्ट पर लगभग 200 मिलियन डांलर की धनराशि खर्च कर चुका है. भारत के इस मुद्दे पर सख्त रवैये को लेकर वह बुरी तरह से घबराया हुआ है. उधर अमरीका के साथ चीन व्यापार युद्ध में फंसा हुआ है. और दूसरी तरफ हाँग कांग जन आंदोलन का मामला है जिसे लेकर चीन को अंतराष्ट्रीय समुदाय के बहिष्कार का डर सता रहा है. भारत उसके सामानों का सबसे बड़ा बाज़ार है. ऐसे में दुनिया को ये दिखाना कि भारत के साथ उसके संबंध सामान्य बने हुए हैं, चीन की मजबूरी है. और जिस तरह के घुमावदार रिश्ते भारत और चीन के हैं, उस परिपेक्ष में आपसी तनाव को कुछ कम करने के लिये एक अनौपचारिक वार्ता बहुत महत्व रखती है.