दिल्ली का लुटियन कल्चर शायद हर तरह की संवैधानिक, कानूनी और नैतिकता की मर्यादा से परे है? खुद को साहसिक पत्रकारिता का पर्याय बताने और ‘रामनाथ गोयनका अवार्ड’ को पत्रकारिता का ऑस्कर बनाने की कोशिश करने वाले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार ने सारी नैतिकता को दिल्ली की यमुना के गंदे पानी में डाल दिया और इस गंदे पानी में जाने-अनजाने न्यायपालिका भी गोता लगाने के लिए उतर गयी?
दिल्ली ने पत्रकारिता की जगह ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को एक लॉबिस्ट की भूमिका में कई बार देखा होगा, लेकिन इस बार तो हद ही हो गयी! इस बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ एक ऐसे लॉबिस्ट की भूमिका में दिखा, जिसने भ्रष्टाचार के मामले में देश के सबसे बड़े अभियुक्त को बड़ी चालाकी से सुप्रीम कोर्ट के दूसरे नंबर के न्यायधीश की बगल में बैठा दिया! क्या इसलिए कि अभियुक्त और न्यायधीश के बीच गुपचुप हो सके?
यही नहीं, उस सबसे बड़े अभियुक्त ने यह इंतजाम भी किया कि सुप्रीम कोर्ट के जिस बेंच में उसके बेटे का आपराधिक मामला चल रहा है, उसके न्यायधीश के साथ भी वह और उसके लॉबिस्ट वकील बैठ सकें और गुफ्तगू कर सकें! यही हुआ भी! लाइटों की रोशनी से जगमगाते उस हॉल में न्यायपालिका और पत्रकारिता की मर्यादा तार-तार होती रही, लेकिन कहते हैं कि दिल्ली का लुटियन जोन तो बना ही ऐसे ‘सफेदपोश खेल’ के लिए है! यहां अकसर ऐसे खेल चलते हैं! इसीलिए यह खेल भी बड़ी खामोशी से खेल लिया गया और देश को कानों-कान खबर तक नहीं हुई!
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की स्थापना रामनाथ गोयनका ने की थी। यह वह रामनाथ गोयनका थे, जिन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के कहने पर उनके दामाद फिरोज गांधी को अपने अखबार का निदेशक बनाया और जब फिरोज ने गोयनका के मित्र व तत्कालीन वित्त मंत्री टी. कृष्णामाचारी पर भ्रष्टाचार को लेकर संसद के अंदर हमला किया तो उसे तत्काल अखबार से निकाल भी दिया! यानी योग्यता से अधिक पैरवी पर अपने अखबार में नौकरी देने वाले और फिर भ्रष्टाचार को उजागर करने पर उसे ईनाम की जगह सजा देने वाले रामनाथ गोयनका चुपके से ईमानदार पत्रकारिता की मिसाल बना दिए गये!
ऐसे अभिजात वर्गीय भ्रष्टाचार का खेल खेलने वाले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संस्थापक रामनाथ गोयनका को पत्रकारिता में मूर्ति की तरह स्थापित करने के लिए ‘गोयनका अवार्ड’ और ‘गोयनका लेक्चर सिरीज’ का खेल ‘इंडियन एक्सप्रेस’ दशकों से खेल रहा है। उसने इसे स्थापित भी कर दिया है! हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की फिलॉसोफी थी ‘एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच हो जाएगा!’ ‘गोयनका अवार्ड’ तथाकथित ईमानदार व साहसिक पत्रकारिता का और ‘गोयनका लेक्चर सिरीज’ भारी-भरकम बौद्धिक यूटोपिया का ब्रांड बन चुका है!
12 जुलाई 2018 को भी त्रिमूर्तिभवन सभागार में ‘रामनाथ गोयनका लेक्चर सिरीज’ का आयोजन किया गया था। उस कार्यक्रम में अतिथि के रूप में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजन गोगोई और डी.वाई.चंद्रचूड़ शामिल थे। रंजन गोगोई वही न्यायधीश हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ चार न्यायधीशों के साथ मिलकर पत्रकार वार्ता की थी। ऐसा माना जा रहा है कि दीपक मिश्रा के बाद रंजन गोगोई ही भारत के अगले मुख्य न्यायधीश हो सकते हैं।
ताज्जुब देखिए कि चार न्यायधीशों के उस पत्रकारवार्ता में भी न्यायधीशों की ‘पीठ’ पर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के ही पूर्व संपादक शेखर गुप्ता खड़े थे, और इस बार लॉबिस्ट के रूप में इंडियन एक्सप्रेस आगे खड़ा था! वैसे ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के वर्तमान संपादक राजकमल झा शेखर गुप्ता के ही नक्से-कदम पर आगे बढ़ रहे हैं! जस गुरु तस चेला! गुरु के ‘कथानक’ में सेना भारत पर हमले की तैयारी कर देती है और चेले की ‘पटकथा’ में रामनाथ गोयनका किसी जनप्रतिनिधि की तारीफ पर अपने संवाददाता को निकाल बाहर करने का कारनामा कर देते हैं! दोनों गप्पी और डपोरशंख, ‘लुटियन लॉबिस्ट’ पत्रकारिता के बड़े चेहरे हैं!
‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में न केवल सुप्रीम कोर्ट के भविष्य के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को बुलाया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के ही एक अन्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ को भी बुलाया। यहां तक तो ठीक था, लेकिन यहीं से ‘इंडियन एक्सप्रेस’ एक ‘सफेदपोश लॉबिस्ट’ की भूमिका में दिखा। इंडियन एक्सप्रेस ने अरबों के घोटाले के आरोपी कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम और उनके वकील व कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी को भी न्यौता दिया। लॉबिस्ट को अच्छे से पता होता है कि किसके बगल में बैठाकर किसकी गोटी सेट करना है! ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बखूबी इसका ‘ज्ञान’ है!
‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने ऐसी व्यवस्था की कि न्यायधीश रंजन गोगोई के बगल में CBI और ED द्वारा 10 से अधिक मामलों में अभियुक्त और अभी जमानत पर तफरी कर रहे पी. चिदंबरम को बैठाया। यानी सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायधीश के बगल में एक ऐसा व्यक्ति बैठा जो देश के सबसे बड़े आर्थिक घोटाले में अभियुक्त है, जमानत पर है और उसकी कानूनी प्रक्रिया इसी सुप्रीम कोर्ट से होकर गुजरने वाली है! ध्यान रखिए, चिदंबरम अभी अपराधमुक्त नहीं हुए हैं, बल्कि सीबीआई और ईडी से बचने के लिए अदालत से बार-बार जमानत हासिल कर रहे हैं! अब ऐसे में यदि सुप्रीम कोर्ट का न्यायधीश ऐसे अभियुक्त से साथ बैठा पाया जाए तो न्याय की मर्यादा तार-तार तो होगी न? और वह हुई!
अब दूसरा खेल देखिए। जब रंजन गोगोई मुख्य अतिथि के नाते मंच पर गये तो पी. चिदंबरम और उनका वकील अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट के दूसरे न्यायधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ के बगल में बैठ गये। आश्चर्य देखिए कि पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम का पूरा मामला डी.वाई. चंद्रचूड़ की ही बेंच में है और वही उसे सुन रहे हैं! यही नहीं, इस कार्यक्रम के अगले ही दिन डी.वाई.चंद्रचूड़ कार्ति चिदंबरम के मामले में सुनवाई करने वाले भी थे! तो क्या बैठक में अगले दिन होने वाली सुनवाई को लेकर कुछ खुसर-फुसर हुई? सवाल तो उठेगा?
कार्ति चिदंबरम भी अरबों-खबरों की लूट में अभियुक्त है। न्यायपालिका की मर्यादा का चिदंबरम और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दुर्योधन चीर हरण करते रहे और न्यायधीश रंजन गोगोई व डी.वाई.चंद्रचूड़ कौरवों की राजसभा में बैठे भीष्म और द्रोणाचार्य की तरह तमाशबीन रहे? न्यायपालिका की लक्ष्मण रेखा साफ-साफ कहती है कि यदि कोई न्यायाधीश किसी मामले को सुन रहा है तो उससे जुड़े अभियुक्त या उसके वकील के साथ सार्वजनिक समारोह में शिरकत न करे, उससे दूरी बनाकर रखे ताकि न्यायपालिका का इकबाल बना रहे। जनता में कहीं से यह संदेश न जाए कि न्याय के साथ समझौता करने का प्रयास किया गया है। अब यहां देखिए, जो न्यायधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ कार्ति चिदंबरम के भ्रष्टाचार पर सुनवाई कर रहे हैं, और वही उसके पिता पी. चिदंबरम व उसके वकील अभिषेक मनु सिंघवी के साथ बैठकर गपशप भी कर रहे हैं?
यदि न्यायधीश रंजन गोगोई और डी.वाई.चंद्रचूड़; इंडियन एक्सप्रेस, पी. चिदंबरम या फिर अभिषेक मनु सिंघवी को फटकार देते तो शायद न्यायपालिका की साख बची रह जाती! लेकिन अपने ही मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ निर्धारित मर्यादा का उल्लंघन कर प्रेस में जाने वाले न्यायधीश रंजन गोगोई को यहां भी मर्यादा का शायद पता न हो? हां, उसी त्रिमूर्ति सभागार में मंच से दिए गये उनके भाषण भी इसकी गवाही देते हैं कि न्यायपालिका की मर्यादा को तो बदल ही देना चाहिए? उन्होंने किसी पुस्तक का संदर्भ देते हुए इशारों-इशारों में जो कहा, उसका हिंदी में आशय है- ‘न्यायधीश ईमानदार होना चाहिए और पत्रकार हल्ला बोलने वाला। लेकिन कभी-कभी ईमानदार पत्रकार और हल्ला बोलने वाले न्यायधीश की भी जरूरत होती है।’ क्या इंडियन एक्सप्रेस, पी. चिदंबरम, अभिषेक मनु सिंघवी और सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायधीश ‘ईमानदारी’ से ‘हल्ला बोलने’ के लिए जमा हुए थे? लेकिन किसके खिलाफ?
पत्रकारिता और न्यायपालिका का चीरहरण इंडियन एक्सप्रेस, पी. चिदंबरम और अभिषेक मनु सिंघवी मिलकर करते रहे और इंद्रप्रस्थ की कौरवों की सभा की तरह यहां भी न्यायपालिका की छांव में ‘न्याय’ जार-जार आंसू बहाता रहा! इस तमाशे में पूरी मीडिया, न्यायपालिका, पूरी राजनीतिक बिरादरी, एक्टिविस्ट-सबकी सहमति रही! ऐसा नहीं होता तो आखिर कोई तो इस ‘लुटियन नेक्सस’ के विरुद्ध आवाज उठाता? मैंने तो कोई आवाज नहीं सुनी! आपने सुनी क्या?
URL: Insider’s story of strangulation by Lutyens Lobbyists-1
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