प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज उम्र हो रही है और नई पीढ़ी के लोगों को बहुत कुछ नहीं पता है । इसलिए मैंने सोचा कि एक सयाने व्यक्ति के कर्तव्य के नाते कुछ रोचक संस्मरण नई पीढ़ी को सुनाते चलें ।
आज से इसका आरंभ किया है:- बच्चों ,।राष्ट्रभक्ति का श्रेष्ठ विचार भी कैसे कैसे कम आयु में लुकाछिपी के खेल या अंधी सुरंग में घुसने और निकलने का खेल होसकता है इसका एक उदाहरण देता हूं ।
संभवत: पिछले जन्म के संस्कारों के कारण जब मैं किशोर था तभी से प्रचंड देश भक्ति चित्त में थी। संयोगवश घर में भी और पड़ोस में भी क्रांतिकारियों के संस्मरण वाली पुस्तकें और साथही कल्याण पत्रिका दोनों ही आती थी। दोनों को पढ़ते थे। और इससे राष्ट्रभक्ति दृढ़तर होती गई ।
उस समय उत्तर भारत में डॉ राम मनोहर लोहिया का नाम बड़ा था और उनको विशेषकर राम, कृष्ण और शिव पर उनके कथन और प्रचंड देशभक्ति संबंधी कथन और भाषा तथा दर्शन आदि पर उनके प्रभावी वक्तव्य और रामायण मेला आयोजित करने को उनका प्रोत्साहन:- इन सब बातों से वे विशेषकर चीनी आक्रमण के बाद से हम सब के आदर्श बन गए क्योंकि जवाहरलाल को देशद्रोही कहने का साहस केवल डॉक्टर लोहिया में था।
हम उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ब्राह्मणों के विरुद्ध कुछ टिप्पणियां की तो हमने उसे भी मान लिया और हमें लगने लगा कि ब्राह्मण सचमुच हिंदू समाज के विभाजन के लिए जिम्मेदार हैं और हमें अपने ब्राह्मण होने पर ग्लानि होने लगी और हमने अपने नाम के आगे जाति सूचक शब्द हटा दिया।
हम रामचरितमानस का नियमित पाठ करते थे और वह हमें लगभग कण्ठस्थ हैं क्योंकि हमारी माता जी को समस्त रामचरितमानस कंठस्थ थी तो हमें भी उसकी प्रेरणा मिली तो उसमें भगवान के मुख हाथ पैर आंख सबकी पंकज से तुलना की गई है । इससे मुझे पंकज शब्द बहुत पसंद आया और मैं उस नाम से कुछ देशभक्ति की कविताएं भी लिखने लगा और बाद में युवक होने पर लेख भी लिखने लगा ।
यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारे इसी पंकज नाम से दिनमान नामक राष्ट्रीय ख्याति की पत्रिका में भी हमारे अनेक लेख और हमारे से संबंधित समाचार भी छपे और सब में केवल पंकज नाम का ही प्रयोग किया और अन्य लोगों ने भी पंकज नाम से ही मेरा उल्लेख किया। शासन में तो पूरा नाम लिखना आवश्यक था।परंतु बाहर पंकज नाम ही चलता रहा। यहां तक कि दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय स्टेट बैंक में जो हमारा खाता खोला, वह भी केवल पंकज नाम से ही खुला।
कई वर्ष बीत गए ।
इसके बाद मंडल आयोग की रिपोर्ट आई जो झूठ पर आधारित थी और उसके विरुद्ध मैंने लेख लिखें। जनसत्ता ,नवभारत टाइम्स और हिंदुस्तान तीनों में अलग-अलग पांच लेख लिखें। उनमें ब्योरेवार तथ्य देकर यह बताया कि मंडल आयोग की रिपोर्ट कितनी झूठी और दुष्टतापूर्ण है और उसमें जनसंख्या के आंकड़े झूठे दिए गए हैं और किस प्रकार झूठे दिए गए हैं यह भी बताया। इस बीच अपनी कुटिल राजनीति के कारण देवीलाल को मात देने की योजना से भी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग को लागू करने की घोषणा कर दी।
विद्यार्थियों ने इसका प्रचंड विरोध किया और जगह जगह पर आत्मदाह करने लगे ।जिससे हम सब लोग व्यथित हो गए । व्यथित होने वालों मेंअज्ञेय जी ,निर्मल वर्मा और रघुवीर सहाय भी थे। मैंने गांधी शांति प्रतिष्ठान में 2 दिन का एक बड़ा आयोजन किया । वह राष्ट्रीय आयोजन था जिसमें जनता पार्टी की सरकार के 13 मंत्री भी शामिल हुए। अनेक संपादक लेखक विचारक इतिहासकार आदि भी शामिल हुए। छात्र नेता और छात्र छात्राएं तो बड़ी संख्या में थे ही। उसमें जब शरद यादव देश के इतिहास के विषय में मूर्खतापूर्ण बातें करने लगे तब आयोजक होते हुए भी मैंने टोका ।
मेरे इस टोकने की खबर जनसत्ता में श्री हरिशंकर व्यास ने छपी ।मेरे इस टोकने से श्री शरद यादव जो केंद्रीय मंत्री थे बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने कहा कि आज पंकज जी को नींद नहीं आएगी और उनका ब्राह्मण तो खुलकर उजागर हो गया है। मुझे यह बात बहुत बुरी लगी क्योंकि तब तक में जातिसूचक नाम का प्रयोग नहीं करता था । परंतु तब अन्य अनेक यादव आदि ने कहा कि आप अपना ब्राह्मण नाम छिपाते हैं पर ब्रह्मणवादी हैं।क्योंकि मैं अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का झूठ तथ्यों के साथ दिखा रहा था।
तब उस दिन से मैं अपना पूरा नाम जातिसूचक नाम के साथ लिखने लगा। फिर धीरे-धीरे मुझे स्पष्ट हुआ कि यह सब कितना बड़ा झूठ और धोखाधड़ी तथा जालसाजी का मामला चल रहा है और जातिविरोध के भाषण देने वाले सब के सब लोग कितने गहरे स्तर पर जातिवादी हैंऔर इनके ब्राह्मण विरोध की जड़ ईसाई मिशनरियों ,उग्रवादी मुसलमानों था कम्युनिस्टों आदि के भारत द्रोही विचारों में है। तब मैंने और अधिक अध्ययन किया । विस्तृत अध्ययन किया । और इस सारे प्रकरण को जाना।
और अब मैं इस सारी योजना को अच्छी तरह जानता हूं और इसीलिए ब्राह्मणों को अलग-थलग करके उनके सारे संसाधनछीनकर उनके साथ खुलेआम राष्ट्रीय स्तर पर अन्याय करने की योजना को बहुत ही अनुचित और देशद्रोही योजना मानता हूँ। यह अलग बात है कि स्वयं मोदी सरकार ऐसा कर रही है। और हम उन लोगों में से हैं जो मोदी सरकार के आने को देश के लिए बहुत गौरव और बहुत ही शुभ मानते हैं । परंतु इस विषय में यह सरकार भी जातिवादी है और वह कथित ऊंची जातियों के साथ खुलेआम अन्याय कर रही है ।।
इतना ही नहीं वह राष्ट्रीय नागरिकता को खंडित कर रही है । भारत के नागरिकों का एक बहुत बड़ा वर्ग जो स्वयं को मुसलमान कहता है यद्यपि वह मुनाफिकीन है, मोमिन नहीं है, यह मैंने अपनी पुस्तक में प्रमाण पूर्वक दिखाया है परंतु भारत के कानून की वह आए दिन धज्जियां उड़ाता है और कानून को अपने हाथ में लेने की बात धमकी की तरह कहता है और उसके विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं होती । दूसरे लोगों के विरुद्ध छोटी-छोटी बातों पर कानूनी कार्रवाई हो जाती है।
यह भारत की नागरिकता को तोड़ने वाली बात है और यह संविधान में जो राज्य का कर्तव्य बताया गया है उसे ना करने वाली बात है।।
इस प्रकार यह राज्य ki कर्तव्य विमुखता वाली बात है। तो इन बातों का विरोध करना राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह जानकर मैं ऐसा विरोध करता हूं । तो जब डॉक्टर लोहिया के प्रभाव में थे तो राष्ट्रभक्ति का क्या स्वरूप था और जब विस्तृत अध्ययन के बाद विश्व इतिहास का और भारत के इतिहास का अध्ययन करने के बाद तथा वर्तमान सभी राजनीतिक दलों की नीति सिद्धांत और कार्यप्रणाली का विस्तृत अध्ययन करने के बाद उनके प्रयोजन और मन्तव्यों को जान चुका हूं ,त अब राष्ट्रभक्ति की भावना वही है ,पर विचार मेरे सर्वथा भिन्न हो गए हैं।
इस तरह से ज्ञान मनुष्य को परिपक्व बनाता है और उसके प्रारंभिक विचारों में बहुत अधिक परिवर्तन आता जाता है । अपना उदाहरण देकर मैं यही समझाने की कोशिश करता हूं ।
आज के संस्मरण में बस इतना ही।
रामेश्वर मिश्र पंकज