बरखा दत्त और सदानंद धूमें जैसे उन भारतीय पत्रकारों की मानसिकता से केरोलिन गोस्वामी भलीभांति परिचित हैं। ये लोग द वाल स्ट्रीट जरनल और द वांशिगटन पोस्ट जैसे अंतराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में भारत की तस्वीरों को दागदार करने में कोताही नहीं करते। हाल ही में सदानंद धूमे ने ‘The wall street journal’ के लिए लिखे अपने आलेख Hindu Extremists Shrug Off a Depraved Crime में कठुआ मामले के आरोपियों को हिंदू अतिवादियों के रूप में रेखांकित किया है। NDTV से निकाले जाने के बाद Barkha Dutt The washington post के लिए लिखती हैं, और भारत व हिंदुओं पर हमला उनके लेख के केंद्र में होता है। The washington post के लिए बरखा दत्ता द्वारा लिखे गये कुछ लेखों के टाइटल देखिए- Hindu ‘nationalists’ defend accused rapists and shame India, In India, Modi government fumbles its response to gang-rape cases, Under Narendra Modi, India’s right is finally winning the culture wars etc.
ये तो अंग्रेजी मानसिकता से भरे भारत के पत्रकारों का हाल है। विदेशी मीडिया हाउस जैसे- bbc news, huffington post आदि तो हमेशा भारत और हिंदू को दोयम दर्जे का समझते हुए रिपोर्ट प्रकाशित करते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय पत्रकार केरोलिना गोस्वामी ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में ऐसे ही अंतराष्ट्रीय मीडिया हाउस और पत्रकारों की पोल खोली है, जो भारत की गरिमा को तार-तार करने में जुटे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया साजिश के तहत भारत के स्याह पक्ष को ही दिखाता है
मुख्यधारा के मीडिया हाउस का नजरिया अगर देश के प्रति अनुचित है तो इसका कारण वर्तमान हालात नहीं बल्कि विगत इतिहास रहा है। और इसका बीज अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कोख से पैदा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मुख्यधारा की मीडिया हमेशा से ही भारत के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया है। वह हमेशा भारत की एकपक्षीय कहानी दुनिया को बताता रहा है। सालों से ऐसा ही हो रहा है। ये मैं नहीं कह रहा बल्कि भारत की ऐतिहासिक स्थिति से लेकर वर्तमान स्थिति पर कई डॉक्यूमेंट्री बना चुकीं पत्रकार केरोलिना गोस्वामी का कहना है। केरोलिना गोस्वामी पोलैंड की निवासी हैं लेकिन उन्होंने एक भारतीय, अनुराग गोस्वामी से शादी कर यहीं रहने का फैसला कर लिया है। भारत में रहते हुए वह खुद को एक भाग्यशाली मेहमान मानती हैं। भारत की आर्थिक स्थिति पर उन्होंने जो डॉक्यूमेंट्री बनाई वह काफी लोकप्रिय हुई, और उन्हें काफी सराहना मिली।
पत्रकार केरोलिना गोस्वामी ने हाल ही में अपनी नई डॉक्यूमेंट्री में भारत के प्रति मुख्यधारा का अंतरराष्ट्रीय मीडिया के नजरिया का खुलासा किया है। उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया साजिश के तहत भारत के स्याह पक्ष को ही दिखाता रहा है। भारत की गरीबी, झुग्गी और यहां की सामाजिक समस्याएं ही उसका मुख्य विषय रहा है। अब सवाल उठता है कि अभी तक जो वह करता आ रहा है क्या हमें आंख मूंदकर उस पर विश्वास करना चाहिए? या फिर उसके हिडेन एजेंडा पर सवाल खड़ा करना चाहिए? उनका कहना है कि निश्चित रूप से अपने देश के बारे में किसी प्रकार की धारणा बनाने से पहले उसके बारे में पूरी सच्चाई जान लेनी चाहिए।
भारत की लूट में अंतरराष्ट्रीय मीडिया का योगदान
केरोलिना गोस्वामी ने कहा आज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि जब से मानव सभ्यता की शुरुआत हुई है तब से भारत हमेशा से ही विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश रहा है। भारत का बुरा दिन तब शुरू हुआ जब से आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों ने लूटना शुरू किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के लुटने के कई और कारक हो सकते हैं, लेकिन इसका एक सबसे बड़ा कारण शुरू से ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया का रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया हमेशा ही भारत को हीन नजरिये से देखता रहा है। और भारत को हीन भावना से ग्रसित कर फिर उसे लूटता और लुटवाता रहा है। स्वतंत्रता से पहले ये कहानी गढ़ी गई कि भारत स्वतंत्र रूप से शासन करने लायक नहीं है। बाद में यह कहानी गढ़ी कि वह खुद लोकतंत्र को कायम रखने में सक्षम नहीं है। हर बार दीनता का भाव दिखाकर भारत को लूटा है।
आपकी सजगता ही मीडिया की साजिशों को ध्वस्त कर सकती है
गोस्वामी का कहना है कि कई बार सच्चाई जानकर आप अचंभित हो जाते हैं। यह एक संकेत है ताकि आप सजग होकर अपने आस-पास की व्यवस्थाओं से प्रश्न करें। आप किसी भी मीडिया खासकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के निहित स्वार्थ के शिकार बनें उससे पहले ही अपनी चेतना को जगा लें और स्वयं सजग हो जाएं। उनका कहना है कि अगर आप अंतरराष्ट्रीय मीडिया के बारे में ये सोचते हैं कि वह हमें जागरूक करता है तो आप भूल कर रहे हैं। दरअसल वह सोची समझी रणनीति के तहत आप को अंधेरे में रखकर मूर्ख बनाता है।
आज यह काम अंतराष्ट्रीय मीडिया विशेषकर उपनिवेशवादी प्रभाव से प्रभावित होकर देश के ही मुख्यधारा के मीडिया हाउस कर रही है। ऐसा इसलिए कर रही है, क्योंकि कहीं न कहीं इनकी जड़ें उपनिवेशवादी मानसिकता से जुड़ी हैं।
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