
#InternationalWomensDay विशेष…जब नोएडा की दीप्ति ने अपने शौक को उद्यम में बदला
आप अपने रोजमर्रा की जिंदगी में जो भी काम करते हैं उसे उद्यम में बदलने की गुंजाईश हमेशा रहती है। वह चाहे खाने बनाना हो, कपड़े धोना हो या बच्चों को पढाना। नोएडा निवासी दीप्ति शौकिया अपने बच्चों के जन्म दिन पर खुद केक बनातीं। फिर उन्होंने दोस्तों और रिश्तेदारों के बच्चों के जन्मदिन पर केक बनाकर उसे तोहफे में देना शुरु किया। प्रोडक्ट की शुद्धता और उसमें लिपटी मुहब्बत ने उनके उद्यमी बनने का पहला दरवाजा खोला जब आस पड़ोस से उनके हाथ से बने केक के डिमांड आने लगे। दीप्ति ने इस मौके को बखूबी ताड़ लिया।
दीप्ति कहती हैं कि करीब 11 साल पहले उन्होंने 300 रुपए का पहला केक बनाया था जिसे बाजार के दाम पर बेचा। वह मौका था जब उस केक के बदले अपने पड़ोसी से रकम लेने के पहले उसे भगवान के आगे प्रसाद के तौर पर रखा था। दीप्ति के मुताबिक वाकई इश्वर भी शायद यही चाह रहे थे। फिर एक वाट्सएप ग्रुप बना जिसमें सभी रिश्तोदार, पड़ोसी और दोस्तों को शामिल किया गया। लोग रोज दिप्ती का काम देखते और आर्डर करते। दीप्ति कहती हैं कि कुछ स्वादिष्ट खाने की इच्छा पहले आंखों में जगती है। उसके बाद तो केक के साथ ब्राउनीज, चाकलेट, बिस्कुट, कुकीज जैसे प्रोडक्टस को भी सफलता पूर्वक लांच किए गए।
ब्राउनीज इनका सिगनेचर प्रोडक्ट है। क्रीम केक को छोड़ अब इनकी बनाई सामग्रियां डाक के जरिए देश के कई शहरों में पहुंचती हैं। दीप्ति कहती हैं कि वह नोएडा में उन चंद लोगों में हैं जिन्होंने होम बेकिंग की शुरुआत की। इन्होंने अपने वेंचर का नाम रखा है ईट केक विद दिप्ती। दीप्ति के मुताबिक इनके काम काज में एक अहम मोड़ आया जब कोरोना महामारी की वजह से देशव्यापी लॉक डाउन किया गया। कोरोना के लॉकडाउन ने मेरे उद्यमी होने का लिया कड़ा इम्तिहान ,लोग घरोंं में कैद हो गए। इनकी ओवन ठंडी पड़ गई। लेकिन इंसान रुकने वाला कब है।
घरों में कैद लोग जल्द ही उबने लगे। दीप्ति कहती हैं कि उनके वाट्सऐप ग्रुप में शामिल लोग फोन पर केक और अन्य प्रोडक्टस के उनतक पहुंचने की संभावना तलाशने लगे। दीप्ति के मुताबिक एक बार फिर अर्थशास्त्र के डिमांड और सप्लाई के प्रचीन सिद्धांत पर अमल करने का वक्त आ गया था। दीप्ति ने अपने बंद पड़े ओवन का स्वीच ऑन कर दिया। फिर शुरु हुआ इंसान का इंसान से मुहब्बत और विश्वास का नया अध्याय। जो वायरस हवा में ही तैर रहा हो उससे मुक्त खाने की सामग्री लोगों तक पहुंचाना वाकई जिम्मेदारी का काम था। लोगोंं ने मुझपर भरोसा किया जिससे मुझे उस चुनौती को स्वीकारने की ताकत मिली। फिर क्या था।
जवान और बच्चे तो एक तरफ बुजुर्गों ने भी इसे हाथों हाथ लिया। अपने इलाकेके भीतर कनटेनमेंट जोन में लोग दीप्ती के घर आकर इनके प्रोडक्ट ले जाते। इस विनिमय में गेट पर रखे एक टेबल ने अहम रोल निभाया। लोग पैसा उस टेबल पर रख देते और पहले से रखे डब्बे उठाकर ले जाते। बाकी बातें फोन पर होतीं। एक बुजुर्ग महिला ने दीप्ती को शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि चारो तरफ के मातम भरे माहौल में तुम्हारा केक सुकुन की तरह है। दीप्ती कहती हैं कि कोई भी धंधा सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए नहीं होना चाहिए।
वह अपने को खुशकिस्मत मानती हैं कि उनका उद्यम उनके ग्राहक को दिली सुकुन देता है। दीप्ती कहती हैं कि अब वह इस मुकाम पर हैं जब वह अपने को एक उद्यमी मान सकती हैं। वह कहती हैं कि करीब एक दशक में बिना किसी प्रचार, बड़ा निवेश और तामझाम के 300 रुपए के केक से शुरु कर करीब 15 लाख रुपए सालाना का टर्न ओवर बुरा हासिल नहीं। प्रोटक्ट की शुद्धता, विश्वास और मुहब्बत को यह अपना मार्गदर्शक मानती हैं।
दीप्ति कहती हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाऊस से ग्रेजुएशन करने के बाद से ही यह किसी उद्यम की शुरुआत करना चाहती थीं। लेकिन आगे की पढाई, फिर शादी, फिर बच्चे, फिर ग्रिहस्थी के झंझट। तेजी से भागती इस जिंदगी में वह एक मौका आया जिसे मैनें लपक लिया। दीप्ति मानती हैं कि बेकिंग सिर्फ एक हुनर नहीं। इसमें आर्टस और साईंस दोनों का उतना ही अहम रोल है। इस काम में गूगल ने इनकी काफी मदद की। इतना कि दीप्ति भी गूगल को अपना गुरु मानती हैं। यह कहती हैं कि गूगल पर मां की ममता और बाप की डांट को छोड़कर दुनिया की हरेक चीज उपलब्ध है। सवाल है कि आप इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।
संपर्क हेतु:
‘ईट केक विद दीप्ति’ इस नाम से फेसबुक व इन्सटाग्राम और मोबाइल नंबर-9818112981 पर संपर्क किया जा सकता है।
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