कल अंतराष्ट्रीय योग दिवस था, जिसे भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व बड़े ही धूमधाम से मनाता है. हालांकि इस बार कोविड 19 के चलते सामूहिक कार्यक्रम नहीं हो पाये, लेकिन फिर भी दिवस ही प्रासंगिकता कम नहीं हुई. हर वर्ष 21 जून को मनाये जाने वाले विश्व योगा दिवस को दिसंबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव को स्वीकृति देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतराष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दी थी. और फिर 21 जून 2015 को विश्व भर में पहली बार अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया. पूरे विश्व ने भारतीय संस्कृति के गर्भ से निकली योग की अतुल्य विद्या को सर आंखों पर बिठा रखा है. ऐसे में ये बात विचलित सी करती है कि भला भारत में अभी तक राष्ट्रीय योग नीति क्यों नहीं बनी? भला भारत के स्कूलों मे योग की क्षिक्षा का कोई प्रावधान क्यों नहीं है? सरकार ने विद्यालयों में योग की क्षिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिये भला आज तक क्यों कोई गाइड्लाइंस नहीं जारी कीं?
वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा था कि देश में कक्षा एक से आठ तक के छात्रों के लिये राष्ट्रीय योग नीति तैयार करने के अनुरोध पर तीन महीने में निर्णय लिया जाये. इस मुद्दे को लेकर दिल्ली भाजपा के उस समय रहे प्रवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय और वकील जे सी सेठ द्वारा दायर की गयी याचिका की सुनवाई हो रही थी. याचिका में इस बात को रेखांकित किया गया था कि अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार भारत में हर किसी का मौलिक अधिकार है. इसीलिये इस अधिकार के अंतर्गत स्कूलों में योग की कक्षाओं का कुछ तो प्रावधान होना चाहिये. 4 वर्ष से भी अधिक समय गुज़र चुका है और सरकार ने अभी तक राष्ट्रीय योग नीति के विषय पर कोई निर्णय नहीं लिया है. जबकि उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने इसे तैयार करने के लिये केंद्र सरकार को मात्र तीन महीने का समय दिया था ?
क्या ये सोचने वाली बात नही है कि जब विश्व भर में योग को इतनी मान्यता प्राप्त हो चुकी है, बल्कि ये पूरे विश्व में भारत की एक सशक्त ब्रांड के रूप में उभर रहा है, ऐसे समय में भला भारत की योग को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनाने में क्यो हिचकिचा रहा है? जिस देश ने योग को लेकर संयुक्र राष्ट्र संघ के सामने एक पूरा प्रस्ताव रखा, उन्हे बताया कि किस प्रकार ये भारत की प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है, आज जब पूरा विश्व योगा योगा कर रहा है, तो वही देश आखिर विद्यालयों में योग की शिक्षा को अनिवार्य करने से क्यों हिचकिचा रहा है? देश भर के स्कूलों में खेल कूद की क्लासेज़ तो होती ही हैं. इन्हे अच्छे स्वास्थ्य के लिये अनिवार्य माना जाता है, जो कि आवश्यक भी है. तो ऐसे में योग की क्लासेज़ कराने में इतनी हिचकिचाहट क्यों?
अब तो पूरा विश्व इस बात को मान चुका है कि व्यक्ति के सर्वांगीण शारीरिक और मानसिक विकास में योग एक बहुत महत्व्पूर्ण भूमिका निभाता है. योग सिर्फ शरीर के लिये व्यायाम मात्र नहीं है. शारीरिक व्यायाम तो योग की सतह मात्र है. यह तो वो विद्या है जो व्यक्ति की चेतना का विस्तार करती है, उसकी सृजनशीलता को, उसकी कर्मठता को, उसके चित्त के सकरात्मक भाव को कई गुना बढाती है. योग जीवन यापन करने की एक पूरी प्रक्रिया है. कितने ही विदेशी स्कूलों में योग की शिक्षा दी जाती है. बल्कि यह एक विडम्बना ही है कि भारत में भी जो विधिवत योग सीखने के आश्रम होते हैं, इनमे अधिकतर विदेशी ही योग सीखने आते हैं. आखिर क्यों योग की अदम्य क्षमता का लाभ भारत में ही रहकर भारतीय नहीं उठा पाते. क्यों इसे अभी भी योग को एक एक एलीट उच्चवर्गीय शौक के रूप में देखा जाता है? हालंकि बाबा रामदेव ने योग पर अपने टी वी कार्यकर्मों के माध्यम से आम जन मानस को योग से जोड़ने में बहुत सक्रिय भूमिका निभाई. लेकिन भारत का आम जन मानस अभी भी उस प्रकार से योग को अपने जीवन मे अपना नहीं पाया है , जैसा उसे अपनाना चाहिये था. और इसकी मूल वजह यही है, कि योग को अभी भी भरत में एक एक्स्क्ल्यूसिव, शौकिया प्रक्रिया माना जाता है जो या तो अंग्रेज़ों के लाइफ्स्टाइल का हिस्सा होती है या अमीर भारतीयों के. और इस भ्रांति को तोड़्ने के लिये यह आवश्यक है कि जिस प्रकार स्कूल के बच्चों को खेल कूद वगैरह की क्लासेज़ दी जाती हैं, उसी तरह से उन्हे योग की क्लासेज़ भी दी जायें. बल्कि इन क्लासेज़ को अनिवार्य बनाया जाये.
अभी तक राष्ट्रीय योगनीति का न बनना आश्चर्य से
कम नही,इस ऒर ध्यान भी नहीं गया और न् ही जनता
के बीच में मांग उठाई गयी
Jab tak yahaan Niti ba
nagi tab tak koi aur desh iska patent karwa chuka hoga