अनुज अग्रवाल। एशिया के सबसे बड़े तकनीकी विश्वविद्यालय ए पी जे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय (UPTU) की ताज़ा खबर है कि इसमें 20000 एडमिशन फर्जी हें। मतलब विश्वविद्यालय से संबद्ध सरकारी और निजी कॉलेजों ने फर्जीवाड़ा कर दलित, आदिवासी और पिछड़े छात्रों के फर्जी एडमिशन दिखाकर सरकार से 2000 करोड़ रूपये से अधिक की फीस बटोर ली। जब UPTU प्रशासन ने प्रवेश लिए छात्रों के आधार कार्ड मांगे तो सच्चाई सामने आयी। मजेदार बात यह है कि यह काम पिछले दस बर्षों से हर साल होता है, फिर खुलासा होता है कि घोटाला हुआ, उसके बाद जांच और फिर कॉलेजों से माल बटोरकर जांच बंद कर दी जाती है। यानि लूट भी हो गयी और जांच भी और जनता की आँखों में धूल भी झोंक दी गयी।
ऐसा ही एक मामला दिल्ली सहारनपुर हाइवे को बनाने का खोला गया है, जिसमे हाइवे बनाने के नाम पर बेंको से मोटा लोन लिया गया, फिर एन जी टी के नोटिस के नाम पर काम धीमा करते करते रोक लिया गया और सैकड़ों करोड़ रुपया डकार कम्पनी भाग गयी। इसमें सरकार के लोक निर्माण चाचा मंत्रीजी, बैंक अधिकारी, एन जी टी के जज, कंपनी के मालिक सब शामिल हैं। अब योजनाबद्ध तरीके से मामला खोल दिया गया क्योंकि सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है, फर्जी जांच कराई जाएगी, फिर कुछ समय बाद फाइल बंद कर दी जायेगी। अनुमान है कि उत्तर प्रदेश सरकार के बजट का एक तिहाई हिस्सा ऐसे ही फर्जी योजनाओं के नाम पर गबन कर लिया जाता रहा है।
यमुना एक्सप्रेस-वे इसका बढ़िया उदहारण है। मौत के हाइवे पर रोजाना दो तीन लोग मरते हैं। इसे बनाने में मायावती सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार 50 हज़ार करोड़ की जमीन जे पी ग्रुप को मुफ्त में दे दी थी और यूरोपियन शैली के इस हाइवे को बिना परीक्षण भारतीय शैली के वाहनों के लिए बना दिया गया। इस कारण रोज वाहनों के टायर फटते हें या धुंध – कोहरे की वजह से वाहनों की टक्कर होती है। कई जांच करने के बाद भी अखिलेश सरकार न तो दोषी जे पी ग्रुप के खिलाफ कोई कार्यवाही कर रही है और न ही इस हाइवे को बंद, क्योकि अब कमाई में हिस्सेदार बन चुकी है।
अनुमान है कि उत्तर प्रदेश में नेता, नोकरशाह, इंजीनियर, ठेकेदार आदि मिलकर 6 से 8 लाख करोड़ तक कालाधन बनाते हैं। इसमें सत्तारूढ़ दल के नेताओं- मंत्रियो का हिस्सा आधे से ज्यादा होता है और शेष बाकि के हिस्से में आता है। इस कालेधन को खपाने और और माल बनाने के लिए यह धन बिल्डरों, हाइवे प्रोजेक्ट, मॉल, शराब के ठेकों, पब्लिक स्कूल, निजी अस्पताल, निजी उच्च शिक्षा संस्थान, सरकारी ठेके लेने आदि में लगाया जाता है। नोयडा, गाज़ियाबाद और लखनऊ में यह सबसे ज्यादा लगाया गया है। प्रदेश के लगभग सभी बिल्डरों का अपरोक्ष रूप से प्रदेश के नेताओ एवं नोकरशाहों से व्यापारिक गठजोड़ है और वे उनका कालाधन अपने प्रोजेक्ट में लगाते हें। इस माफिया ने प्रदेश के 80% इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर कब्जा किया हुआ है और इनमें सिर्फ और सिर्फ ग्राहको को लूटा जाता है। कोई भी सरकारी काम बिना घोटाले, गबन, रिश्वत, कमीशन और लूट के संभव ही नही। उद्योगपति और व्यापारियो से हफ्तावसूली खुद मुख्यमंत्री करवाते हैं। नोयडा में आईटी कम्पनियां तकनीक के नाम पर खुलेआम लुटती हें। ऑनलाइन ठगी आदि जैसे दर्जनों मामले आम हें। सभी पेंशन, वजीफा योजनाओं में 60 से 80 प्रतिशत तक घोटाला है जो बैंक अधिकारियों की मदद् से किया जा रहा है।
प्रदेश में पिछले दो दशकों में कोई भी भर्ती बिना पैसे दिए नही हुई है और न ही कोई ट्रांसफर या प्रमोशन बिना लेन देन के हुआ है। खनिजों की लूट सरेआम है और थाने दलाली का अड्डा। महिलाओं की इज़्ज़त सरेआम लूटना कई इलाकों में आम बात है। इसीलिये अखिलेश और राहुल सही बोलते हैं कि काम बोलता है और प्रदेश का माफिया बोलता है कि यू पी को यह साथ पसंद है।
साभार: अनुज अग्रवाल संपादक, डायलॉग इंडिया
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