आचार्य गौरांग शरणदेव :-
वर्तमान समय में कुछ खबर मीडिया में छाई हुई है, संघ के मुखिया, संघ से दुखिया लोगों को बुला बुलाकर हिंदू की सुरक्षा के लिए एक होने का आह्वान कर रहे है। संघ को हिंदुओं की एकाएक चिंता क्यों होने लगी है ? गत दस साल संघ के स्वयं सेवक की सरकार में कदम से कदम मिलाकर चलने वाला संघ आज इतना व्यग्र क्यों दिखाई दे रहा है ? मदरेसा यात्रा, DNA मिलाना, मुसलमानों के बिना हिंदुत्व ही नही रहेगा, यह देश हिंदू का नहीं सब का है, हर जगह क्यों शिवालय खोज रहे हों, हिंदू धर्म ग्रंथों में संशोधन जरूरी है, राष्ट्रवादी मुस्लिम संघ, राष्ट्रवादी ईसाई मंच, संघ हिंदू का नहीं राष्ट्रवादियों का है आदि नौटंकी करने वाला संघ आज एकाएक हिंदुओं को एक होने का उपदेश देने लगा है । क्या इसमें हिंदुओं की चिंता है ? कतई नहीं। तो संघ के मुखिया, संघ से दुखिया को क्यों बुला रहा है ? और संघ के दुखियां को संघ में एकाएक रब क्यों दिखाई देने लगा है ?
इन सारी चीज समझने के लिए संघ के इतिहास को देखना होगा । संघ अपने स्थापना काल से ही समय समय पर घोड़े (एक तरह से गधे) बदलता रहता है । बलराज मधोक से गोविंदाचार्य आदि का इतिहास पूरा भारत जानता ही है । जिसने अपना जीवन राष्ट्र और संघ को समर्पित कर दिया उसका संघ ने क्या हाल कर दिया ? विश्व हिंदू परिषद की कमान जब अशोक सिंघल जी को सौंपी गई और अशोक जी ने राम जन्म भूमि आंदोलन कर पूरे भारत को एक कर दिया । सर्वत्र विश्व हिंदू परिषद का परचम लहराने लगा। इतना बड़ा समूह देखकर राजकीय सत्ता प्राप्ति के लिए संघ लालायित हो गया ।
एक तरफ अशोक जी जय जयकार हो रही थी दूसरी तरफ संघ को कोई पूछने वाला नहीं था । अशोक जी सफलता देखकर संघ और भाजपा उनके चरणों में लोटपोट होने लगे । अशोक जी सफलता का मधु चाटने हेतु अशोक जी को गिराने कपट जाल बिछाने लगा संघ । राम जन्म भूमि आंदोलन में अशोक जी के सहयोगी गुजरात के युवा फायरब्रांड नेता डा. प्रवीण तोगड़िया में संघ को अपना नया घोड़ा दिखाने लगा अतः तोगड़िया पर डोरे डालना प्रारम्भ कर दिया। संघ को लगा अशोक सिंघल को हटा देंगे तो तोगड़िया हमारी मुठ्ठी में आ जाएंगे और परिषद पर हमारा अधिकार पुनः हो जाएगा। अशोक सिंघल जी को हटाकर डा. तोगड़िया को परिषद की कमान सौंप दी गई पर संघ की इच्छा पूर्ति हो न सकी । तोगड़िया पर सवारी करने की संघ की इच्छा धरी की धरी रह गई । अब संघ फिर अशोक जी के शरण गया पर अशोक जी अब शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं थे । संघ को हाथ मलने के सिवा कोई चारा नहीं था अतः चुपचाप नए घोड़े की तलाश तेज कर दी । एकाएक संघ को गुजराती तोगड़िया को काबू करने के लिए गुजराती नरेंद्र मोदी में रब दिखने लगा। केशु भाई पटेल के शासन में जिनकी तूती बोलती थी ऐसे तोगड़िया और अपनी मनमानी के लिए जाने वाले मोदी के बीच की खटास में संघ को अपना माखन नजर आने लगा । संघ ने कभी तोगड़िया और मोदी के समाधान का कोई प्रयास नहीं किया उलटा मौन रहकर आग में घी डालते रहे। वास्तव में संघ को मोदी प्रति कोई प्रेम नही था अपितु उन्हें एक नया घोड़ा चाहिए था । संघ ने ऐसी जाल बिछाई की डा. तोगड़िया परिषद से बुरी तरह भागे या छोड़ने को मजबूर हुए ।
नए घोड़े पर सवार संघ सत्ता की मलाई खाने लगा, सत्ता से संघ की बुद्धि भ्रष्ट होने लगी। मुसलमानों से DNA मिलाने लगे, अमीर खुशारो की कवाली गाने लगे, काशी विश्वनाथ की जगह दारा शिकोह की कब्र ढूंढने लगे, तीर्थ यात्रा की जगह मद्रेसा में तकरीर सुनने जाने लगे । महात्मा गांधी में उनकी श्रद्धा गहरी होने लगी । राजकीय निवेदन बाजी होने लगी । मोदी संघ की ही संतान है वह भी घोड़े बदलने में माहिर थे । मोदी ने कौन कौन से घोड़े बदले वह कहानी फिर कभी ।
तोगड़िया के हटने के बाद संघ की जगह मोदी हावी हो गए संघ पर । नागपुर का रिमोट बनने की बजाय नागपुर को ही मोदी रिमोट बनाके चला रहा है यह स्थापित होने लगा । मोदी पर सवारी करने की इच्छा रखने वालों पर मोदी ही सवार हो गए । अब संघ की दशा ” भई गति साप छछुंदर केरी” हो गई । दस साल तक मलाई चाटने वाले को गत लोकसभा के परिणाम के बाद मोदी नामक घोड़े में कमियां दिखने लगी। एकाएक मोदी को विष्णु का अवतार मानने वाले संघ मंडली को मोदी में खोखलापन दिखाई देने लगा । मोदी की स्तुति करने वाली पूरी भागवत कथा अपने देवता के विरुद्ध लाम बंध होने लगी। संघ को मराठी नागपुरी नितिन गडकरी को नया घोड़ा बनाकर मोदी के सामने दाव लगाने की तैयारी करने लगा है । मोदी और अमित शाह की लोकप्रियता के सामने गडकरी खड़े नही हो सकते अतः उन्हें और घोड़े चाहिए । अब मोदी अमित शाह को मात देने के लिए घोड़े इकट्ठा करने के लिए संघ के मुखिया ने संघ – मोदी से दुखियाँ लोगो को निमंत्रण देकर “आवो मिलकर हिंदू हित की बात करे” टाइटल पोग्राम का आगाज़ किया ।
आर्य समाज, हिंदुमहासभा, सनातन धर्म परिषद, अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद को निमंत्रण दिया जाने लगा । जो कभी आमने सामने थे उन लोगो को एक दूसरे में रब दिखने लगा है । मोहन भागवत को गाली देने वाले को उनमें हिंदुहित का प्रखर पुरुष दिखने लगा है । अनेक हिंदू शोभा यात्रा पर हमले करने वाले विधर्मी के सामने चुप रहने वाले, वीर कमलेश तिवारी की हत्या के समय मौन धारण करने वाले, यति नरसिंगानंद जी निंदा करने वालों के साथ एक मोदी को ही समाप्त करने की इच्छा से एक दूसरे में रब देख रहे हैं। यह हिंदुओं के लिए नहीं अपितु अपने हित के लिए इकट्ठा हो रहे हैं ।
गोधरा के बाद जेल में सड़ रहे हजारों युवाओं का जीवन बरबाद हो गया। यह लालची भले एक हो रहे हो पर हिंदुओं अपने बच्चों को इनसे बचना । न कोई सत्ता हिंदू वादी है न कोई संगठन । आपका उपयोग होगा फिर डस्टबिन में फेंक दिए जाओगे ।
डा. स्वामी गौरांगशरणदेवाचार्य
संपादक : हिंदू स्पिरिट ( विकली)
हिम्मतनगर