संसद के अंदर 20 July 2018 को राहुल गांधी की हरकत पर यह पूरा लेख फ्रायडीय मनोविज्ञान के आधार पर लिखा गया है। राहुल गांधी और उनकी अनैतिक हरकतों पर बलिहारी जाने वाली लेफ्ट-लिबरल्स महिलाओं पर लेखों की एक पूरी श्रृंखला मैं लिख रहा हूं। लेकिन एक विनती है कि जो लोग यौन-मनोविज्ञान को समझते हैं केवल वही इस लेख को पढ़ें। नैतिकतावादी इस लेख से दूर रहें। यदि किसी की भावना इस लेख से आहत होती हो, तो मैं इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकता हूं। मैं चाहूंगा कि ऐसे लोग फ्रायड और जुंग से लेकर हैवॉक एलियस तक के यौन-मनोविज्ञान को पढे, क्योंकि बिना यौन को जाने व समझे आप मनुष्य के बारीक व्यवहारों का अध्ययन नहीं कर सकते हैं। बिना अध्ययन के सवाल पूछने वालों को मैं जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं। धन्यवाद!
संसद के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जबरदस्ती गले पड़े राहुल गांधी की अदा पर लेफ्ट-लिबरल्स महिलाएं जबरदस्त तरीके से फिदा हैं! इनमें अंग्रेजीदां महिला पत्रकार, पार्टीबाज सोशलाइट्स और वामी-कांगी महिलाएं शामिल हैं। इन महिलाओं के द्वारा प्रयुक्त प्रतीकों को जब मैंने देखा और पढ़ा तो पाया कि आलिंगनबद्ध उस घटना को लेकर इनका अचेतन मन यौनिकता का प्रकटीकरण कर रहा है! यौन-मनोविज्ञान को समझने वाला कोई भी शख्स राहुल गांधी पर बलिहारी जा रही इन महिलाओं के शब्दों को पढ़कर समझ सकता है कि इनकी आकर्षण का केंद्र राहुल गांधी की ‘यौनिकता’ है। इनके ट्वीट में एक सनकपन है, जो यौन-उत्तेजना का परिणाम हो सकता है। राहुल गांधी के अधोवस्त्रविहीन ‘गोलघरीय-डोंगे’ और पीएम मोदी के गले को कसकर भींचने के प्रति इन महिलाओं का आकर्षण साफ-साफ झलक रहा है। लेकिन इन महिलाओं के मनोविज्ञान को समझने से पहले आपको राहुल गांधी की रति-ग्रंथि को समझना होगा!
राहुल गांधी की इस हरकत में उनका अचेतन मन साफ-साफ परिलक्षित हो रहा है। फ्रायड के मनोविज्ञान के हिसाब से यदि विश्लेषण करें तो पाएंगे कि राहुल गांधी के अंदर अचानक पीएम को आलिंगनबद्ध करने का भाव नहीं आया, बल्कि वह उनके अचेतन मन की उपज था! पायजामे के अंदर अधोवस्त्र का न पहनना संसद के अंदर क्या एक सांसद का यह अमर्यादित आचरण नहीं है? यदि उन्होंने पायजामे के अंदर अधोवस्त्र नहीं पहना तो यह निश्चित रूप से यौन-ग्रंथि है, जिसके वो शिकार हैं? अपने पुरुषत्व के प्रदर्शन को लेकर उनका ‘दूषित आवेग’ उस दिन संसद के अंदर प्रकट हो गया था! आइए पहले राहुल गांधी की उस दिन की हरकत को क्रमवार तरीके से रखने का प्रयास करते हैंः-
1) 20 जुलाई 2018 को राहुल गांधी ने संसद के अंदर बिना सबूत प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी पर अनाप-शनाप अरोप लगाए। जोर से चीखे-चिल्लाए और फिर कहा ‘पीएम की हिम्मत नहीं हैं कि वह मेरी आंख में आंख डाल सकें।’ ‘आप मुझसे कितना भी नफरत कीजिए, लेकिन मैं आपसे प्रेम करूंगा।’
2) इसके बाद राहुल गांधी सीधे पीएम नरेंद्र मोदी की सीट के पास पहुंचे और उन्हें हाथ के इशारे से उठने को कहा। यानी वह चाहते थे कि पीएम उनके कहने पर खड़े हो जाएं और फिर वह उनके गले लगे।
3) पीएम ने पद की गरिमा को बनाए रखा और अपनी सीट पर बैठे रहे।
4) इसके बाद राहुल गांधी बैठे हुए पीएम के गले पड़ गये।
5) गले पड़ते ही उनके चुस्त कुर्ता-पायजामा से अधोवस्त्रविहीन ‘गोलघरीय-डोंगा’ झांकने लगा।
6) पीएम ने रोक कर बैठे-बैठे ही राहुल गांधी से हाथ मिलाया और उनकी पीठ पर धीरे से थपकी दी।
7) इसके बाद राहुल गांधी ने अपने ही हमउम्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को आंख मारी, जो कैमरे में कैद हो गया।
घटना यही है और इसी क्रम में है। क्या कोई मर्यादित सांसद, बिना अधोवस्त्र के कुर्ता-पायजामा पहनकर संसद में आ जाएगा? इस पर सोचा कभी आपने? अब राहुल गांधी के यौन-मनोविज्ञान को समझने का प्रयास करते हैं!
‘क्लीव हरकत’
अंग्रेजी में एक शब्द है CLEAVE(क्लीव)। यह जर्मन शब्द ‘क्लेबेन’ से बना है। ‘क्लेबेन’ का मूल अर्थ है ‘चिपकना’। इस शब्द का मनोविज्ञान बहुत गहरा है। वैसे हर शब्द का मनोविज्ञान गहरा ही होता है। जर्मन मनोविज्ञानी और भाषा विज्ञानी सी.एबल ने ‘क्लीव’ शब्द को उभयलिंग में रखा है, यानी न यह पुल्लिंग है और न ही स्त्ररीलिंग। इसलिए कई बार नपुंसकों के लिए भी ‘क्लीव’ शब्द का उपयोग किया जाता है! राहुल गांधी की यह हरकत एक ‘क्लीव-हरकत’ थी। भाषागत रूप से देखें तो ‘किसी से जबरदस्ती चिपकने वाली हरकत’ और मनोविज्ञान के रूप में देखें तो यह ‘शैशव यौन हीनता-ग्रंथि’ (Castration Complex) है। Castration Complex को हिंदी में शैशव यौन हीनता-ग्रंथि या ‘बधियाकरण ग्रंथि’ कहते हैं। शैशव काल में यौन चेष्टा में यदि कोई रुकावट पैदा की गयी हो तो वह व्यक्ति ता-उम्र इस ग्रंथि का शिकार हो सकता है। ‘शैशव यौन हीनता-ग्रंथि’ का शिकार व्यक्ति उम्र बीतते के बाद भी खुद को मर्द साबित करने के लिए तरह-तरह की हरकत से अपने ‘पुरुषत्व’ के प्रदर्शन का जब-तब प्रयास करता रहता है!
कैथोलिक रिलीजन की पूरी सोच ‘यौन-दमन’ के आसपास घूमती है!
व्यक्ति जो हरकत करता है, उसमें उसका पूरा व्यक्तित्व शामिल होता है और मनोविज्ञान इसका बारीकी से अध्ययन करता है। यहां याद रखिए कि राहुल गांधी की परवरिश एक अंग्रेजी मानिकसता वाले घर में हुई है और जहां तक ‘जेवियर मोरे’ के ‘रेड साड़ी’ का उद्धरण है तो सोनिया गांधी रोमन कैथोलिक ही हैं! कैथोलिक रिलीजन की पूरी सोच ‘यौन-दमन’ के आसपास घूमती है। वहां बचपन से यौन-दमन शुरु हो जाता है। कैथोलिक में स्त्रियों की यौनिकता से अधिक पुरुषों की यौनिकता के प्रकटीकरण पर जोर है। यह रोमन-ग्रीक मिथक का प्रभाव है। ग्रीक मिथक में नग्न पुरुषों की मूर्तियां खूब गढ़ी गयी हैं, लेकिन भारत में अकेले नग्न पुरुषों की मूर्तियों का कोई इतिहास नहीं है। और यह राहुल गांधी के पिता के नाना जवाहरलाल नेहरू ने ही अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में भी लिखा है। वह लिखते हैं कि “यही कारण है कि समलैंगिकता भारत में कभी नहीं रही, बल्कि यह यूरोप की देन है।” यानी पुरुष ‘यौनिकता’ का प्रकटीकरण यूरोप की देन है और यही कारण है कि वहां का मनोविज्ञान भी ‘यौन’ के आसपास ही घूमता रहा है। वह चाहे फ्रायड हों या फिर उनक शिष्य जुंग का मनोविज्ञान।
56 ईंच वाले मोदी बनाम पप्पू राहुल का मनोविज्ञान!
अब आगे आइए! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान एक 56 ईंच छाती वाले आक्रामक और तेजस्वी पुरुष की है, जो अकेले सारे संकटों का मुकाबला कर सकता है। मोदी की पहचान एक ऐसे पुरुष की है जिसके आभामंडल के आगे हर कोई फीका है। वहीं राहुल गांधी की पहचान एक पप्पू की है। अर्थात् उन्हें नासमझ बच्चे के रूप में देखा जाता है, जिसमें अभी पुरुषोचित गुणों का अभाव है। कई बार तो कांग्रेस नेता और कांग्रेसी पत्रकार भी यह कहते मिल जाते हैं कि ‘राहुल धीरे-धीरे मैच्योर हो रहे हैं।’ खुद राहुल ने संसद में अपने पप्पू होने की घोषणा भी की कि ‘आप मुझे पप्पू कहें, लेकिन मैं आपको प्रेम करूंगा।’ इस वाक्य में भी राहुल ने खुद के पुरुष होने की ही घोषणा की है कि आप लोग भले ही मुझे बच्चा समझें, लेकिन मैं प्रेम करना जानता हूं। याद रखिए, ईसायत प्रेम पर बहुत जोर देता है, मरियम नहीं ईसा के प्रेम पर! यह ईसायत के अचेतन में छुपे यौन-ग्रंथि का नतीजा है!
अब तीसरे बिंदू पर आइए। संसद में खुद को मोदी के समक्ष बड़ा और पुरुष साबित करने का दबाव कहीं न कहीं राहुल गांधी के मस्तिष्क में चल रहा था। इसलिए वह 15 मिनट में ‘भूकंप’ जैसे शब्द का चयन पूर्व में भी करते रहे हैं, क्योंकि उनके अंदर हमेशा खुद को मोदी से सर्वश्रेष्ठ साबित करने का दबाव और दंभ दोनों पल रहा है। यौन और दंभ (ego complex) का चोली-दामन का साथ है। 20 जुलाई को राहुल ने पहले तो आक्रामक भाषण देकर पीएम से खुद को श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास किया। उन्होंने इसके लिए जिन प्रतीकों का सहारा लिया, जरा उस पर गौर फरमाइए-
1) ‘पीएम मेरी आंखों में आंखें नहीं डाल सकते हैं।’
2) ‘आप भले हंसे, लेकिन वह एक क्षण देश ने देख लिया जब उनकी आंखें झुकी थी।’
3) उनका एक अन्य वाक्य भी पढि़ए-‘अकालीदल की सांसद (हरशिमरत कौर बादल) मुझे देख कर मुस्कुरा रही हैं।’
इन तीनों वाक्य को ध्यान से पढि़ए। इसमें ‘पुरुषत्व’ को उद्घाटित करने का भाव है। पहले में है कि मोदी से बड़ा मर्द मैं हूं। मोदी तो मेरी आंख में आंख भी नहीं डाल सकते हैं। दूसरे में कि मैंने पीएम की आंखों को झुका दिया। और तीसरें में है कि देखो विरोधी पक्ष की एक महिला सांसद मुझे देख कर मुस्कुरा रही है, यानी आज मेरा प्रभामंडल इतना बड़ा है कि प्रधानमंत्री मोदी से लेकर विरोधी पक्ष की महिला सांसद तक मेरे कायल हैं!
अधोवस्त्रविहीन ‘गोलघरीय डोंगे’ ने खोल दी यौन-ग्रंथि की गांठ!
अब चौथे चरण में चलिए। राहुल भाषण के बाद पीएम मोदी की सीट के पास पहुंचे और उन्हें खड़ा करने का प्रयास किया ताकि उन्हें आलिंगनबद्ध कर सकें। यदि पीएम खड़े होते तो राहुल को अपने ‘पुरुषत्व’ का और अधिक गर्व होता कि देखो मैंने भरी संसद में मोदी जैसे पीएम को एक इशारे में खड़ा कर दिया। लेकिन मोदी खड़े नहीं हुए तो राहुल उनसे जबरदस्ती लिपट गये। और लिपटने में पीछे से उनके टाइट कपड़े से यह झांकने लगा कि वह अधोवस्त्र पहनकर नहीं आए हैं और यहीं उनकी ‘यौन-ग्रंथि’ की गांठ खुल गयी!
दरअसल राहुल जानबूझ कर बिना अधोवस्त्र पहने आए थे ताकि जब वह पीएम मोदी को आलिंगनबद्ध करें तो उन्हें अपने ‘पुरुषत्व’ का ऐहसास करा सकें! मर्यादित रूप में मैं तो केवल इतना ही लिख सकता हूं। लेकिन यौन मनोविज्ञान कहता है कि ‘शैशव यौन हीनता-ग्रंथि’ का शिकार पुरुष हमेशा अपने पुरुष शिश्न का प्रदर्शन करना चाहता है ताकि सामने वाला उसे मर्द माने! ‘पप्पू’ के कारण अपने दबे हुए व्यक्तित्व के शिकार राहुल गांधी ने यही प्रयास किया था, लेकिन पीएम मोदी तो खड़े ही नहीं हुए। यदि खड़े होते तो संभव है, पीएम राहुल गांधी की अभद्रता को भांप जाते, लेकिन उनके खड़े नहीं होने की वजह से राहुल की पूरी ‘यौन-ग्रंथि’ देश के समक्ष प्रकट हो गया!
फ्रायड ने इसे ‘कैस्ट्रेशन कांप्लेक्स’ कहा है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी अभी भी शैशवीय मानसिक दशा में जी रहे हैं, इसलिए शैशवीय यौन-चेष्टा में आयी रुकावट (कैस्ट्रेशन कांप्लेक्स) से पीडि़त हैं और खुद को मर्द साबित करने के लिए झूठे आरोपों और आक्रामक शब्दों से लेकर अधोवस्त्रविहीनता तक के करतब को आजमा रहे हैं! निश्चित रूप से बालपन में यह यौन रुकावट कैथोलिक परिवार के अंदर समाजीकरण का हिस्सा रही होगी।
बचपन में कैसी यौन रुकावट?
कई लोग सोचेंगे कि शैशवकाल में किस तरह का यौन रुकावट हो सकता है? तो आप अपने घर के बच्चों को गौर से देखिए। वह जब भी अपने शिश्न से खेलना चाहता है, बाल-मनोविज्ञान से अनभिज्ञ मां-बाप उसे छी-छी, गंदा आदि कह कर उसके उर्जा के नैसर्गिक खेल में बाधा पहुंचा देते हैं और उसके हाथ को उसके शिश्न से हटा देते हैं। ऐसी और भी कई शारीरिक क्रिया है, जिसका जिक्र फ्रायड ने ईड, ईगो, सुपर-ईगो को समझाते हुए समाजीकरण के तहत किया है।
यही कैस्ट्रेशन कांप्लेक्स (Castration anxiety is an overwhelming fear of damage to, or loss of, the penis; one of Sigmund Freud’s earliest psychoanalytic theories.) या ‘शैशव यौन हीनता-ग्रंथि’ है, जो कुछ लोगों में बड़े होने पर भी विकसित होता चला जाता है और यौन विकृति का रूप ले लेता है। इस ग्रंथि के शिकार व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व के विकास पर इसका असर पड़ता है। वह सामने वाले से हमेशा दबा-दबा महसूस करता है, शादी करने से घबराता है, समलैंगिक संबंध की ओर अग्रसर होता है और भी बहुत कुछ। इस ग्रंथि का शिकार व्यक्ति जानबूझ कर आक्रामक दिखने की कोशिश करता है, अपने शिश्न (पुरुषत्व का प्रतीक) के प्रदर्शन की ताक में रहता है और ‘अपने मुंह मिया मिट्ठू’ बनते हुए खुद को हर तरह से मर्द घोषित करता रहता है!
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URL: is rahul gandhi suffering from any sexual complex like castration complex?
Keywords: Rahul Gandhi, Narendra modi, No Confidence Motion, sexual complex