आजकल एक ट्रेंड बन चुका है, या यू कहें आदत हो चुकी है, वह आदत है हिन्दू धर्म, संस्कृति का मजाक बनाने की, देवी-देवताओं का अपमान करने की। बिना शास्त्रों को पढ़े कुछ भी शास्त्रों के नाम पर उधृत करने की। क्योंकि इन चालाक लोगों को पता है कि सहिष्णु हिन्दू समाज ‘सर तन से जुदा’ करने की धमकी नहीं देगा और न ही कोई फ़तवा जारी करेगा। न ही हिन्दू समाज किसी का घर तोड़ेगा और न ही दुकाने लूटेगा। इसलिए करते रहो बकवास! ऐसा ही कुछ ट्विटर पर देखने को मिला। ट्विटर पर जन की बात @Jankibaat1 के एडिटर-इन-चीफ प्रदीप भंडारी के ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया था। जिसमें कैप्शन के साथ एक वीडियो पोस्ट था। कैप्शन में लिखा था,”कुत्ते द्वारा चाटें जाने वाले घी की तुलना माता सीता से “दृष्टि आईएएस ट्रेनिंग के संस्थापक विकास दिव्याकीर्ति की यह काल्पनिक बातें भगवान राम के हर भक्त की भावना को आहत कर रही हैं। लेकिन क्योंकि इन्होंने हिन्दू धर्म का मज़ाक़ उड़ाया है इसलिए इनको FIR नहीं पुरुस्कार मिलेंगे।”
दृष्टि आईएएस ट्रेनिंग देने के लिए भारत में प्रसिद्ध है इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन सुप्रसिद्ध है तो क्या विडियो में दिख रही कुटिल हंसी के साथ कुछ भी कहने का अधिकार है उनको? उनका वीडियो देखकर मन दुःखी और भावनाएं आहत हुई है। मैंने भी ट्वीट किया है जिसमें दृष्टि आईएएस से प्रमाण देने और क्षमा मांगने की बात कही है, नहीं तो कानूनी कार्यवाही का भी कहा है।
मैं विधि के जानकार लोगों से भी सम्पर्क में हूँ और क़ानूनी प्रक्रिया पर विचार जारी है।
ऐसा कई बार होता है कि इस तरह की कुटिल मानसिकता के साथ हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने के कुत्सित प्रयास होते हैं। मेरे ट्वीट पर मुझे इनका विडियो पूरा देखने का परामर्श दिया गया था, और एक लिंक पोस्ट किया गया था, मैंने वो 2 मिनट 20 सेकंड का विडियो देखा और अब उसी विडियो का विश्लेषण यहाँ कर रहा हूँ। मेरे ट्वीट पर ये लिंक भी पोस्ट किया गया था
पहले पूरा वीडियो देखें उसके बाद में अपनी राय दे।
बिना किसी जांच-पड़ताल के आप ऐसी पोस्ट करके भ्रांति न फैलाएं, इनसे पढ़कर बहुत से आईएएस बने है।
विकास सर कभी भी बिना किसी तथ्य के बात नहीं करते हैं। pic.twitter.com/SNrZBSlPK0
— 𝐵𝒽𝓊𝓅𝑒𝓈𝒽 𝒟𝑒𝓋𝓇𝒶𝓉𝒽 ✍️ (@Devrath_B) November 11, 2022
विडियो में कोचिंग के मास्टर साहब बोल रहे हैं,”एक लेख मैंने पढ़ा, पुरुषोत्तम अग्रवाल जी का लेख था शायद …….
यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है मास्टर साहब शायद शब्द बोल रहे हैं, क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि इनको संदेह है कि जो ये बोल रहे हैं वो प्रमाणिक नही है?
विडियो में शायद के बाद मास्टर साहब बोलते हैं.. “तो उन्होंने संस्कृत का एक कथन कोट किया, वाल्मीकि रामायण का है या उसके नजदीकी किसी रचना का है, आप चाहेंगे तो मैं उसे लाकर दिखाऊंगा।
ध्यातब्य है, यहाँ मास्टर साहब फिर आश्वस्त नही हैं कि वो कथन किस रचना का है, लेकिन इन्होने बंदूक वाल्मीकि रामायण पर चला दी। लेकिन वो जो बोलने वाले हैं वह प्रमाणिक है इसे सिद्ध करने के लिए यह सगुफा छोड़ दिया कि यदि छात्र चाहेंगे तो वो लाकर दिखा देंगे।
इसके बाद मास्टर साहब कहते हैं,” जब राम युद्ध जीते रावण से.. सीता मुक्त हुई..सीता ..जैसे फिल्मों में नही होता भागते हुए नायक नायिका भाग रहे हैं एक दूसरे की ओर स्लो मोशन में, वैसा दृश्य बनना चाहिए था कि नही, इतने दिनों के बाद इतना बड़ा युद्ध जीतने के बाद फायनली हम लोग मिले हैं, कोई मजाक थोड़ी न है। हिंदी फिल्मों में तो नायक नायिका तब मिलते हैं जब नायिका का पिता जब हार मान लेता है, फिर देखिये क्या दृश्य बनता है उसके बाद।
मास्टर साहब आगे बोलते हैं,”…..तो सीता प्रफुल्लित हैं कि मेरे राम ने रावण को नष्ट कर दिया है, फायनली मैं अपने घर जाउंगी। वो राम के पास आ रही है, राम समझ गए कि ये थोडा ज्यादा खुश हो रही है ये, तो राम को लगा कि थोडा ठीक कर दूँ ज्यादा खुश नही होना चाहिए, तो राम ने कहा,” रुको सीते! सीता रुक गई, बोली कुछ पूजा पाठ करनी होगी पहले कुछ। राम ने जो वाक्य बोला है वो बड़ा खराब वाक्य बोला है, मैं तो बोलते हुए मेरी जुबान कट कर गिर जायेगी, पर बोलना होगा क्या करें (फिर घृणित हंसी से कमरा गूंज उठता है) तो ऐसा वाक्य बोला है, वो वाक्य ये हैं कि हे सीते! अगर तुम्हे लगता है कि युद्ध मैंने तुम्हारे लिए लड़ा है तो तुम्हारी ये गलतफ़हमी है, युद्ध तुम्हारे लिए नही लड़ा है, युद्ध अपने कुल के सम्मान के लिए लड़ा है, और रही तुम्हारी बात जैसे कुत्ते द्वारा चाटे जाने के बाद घी भोजन योग्य नही रहता है वैसे तुम अब मेरे योग्य नही हो।
मास्टर साहब आगे जो बोलते हैं उसको लेकर लोग हमें सुना रहे हैं कि विडियो पूरा देखना चाहिए। आगे मास्टर साहब बोल रहे हैं,” संस्कृत के एक ग्रन्थ में राम के मुंह से ये कहलवाया गया है। ये राम नही कह रहे हैं लेखक कह रहे हैं। लेखक लोग अपने मन की बातें चरित्रों के मुंह से कहलवाते हैं, और छवि बनती है चरित्र की, छवि बिगडती है उसकी।
यहाँ मैं मास्टर साहब से सहमत हूँ। लेखक लोग सब अपने हिसाब से करते रहते हैं।
लेकिन इसके आगे मास्टर साहब ने क्या कहा उस पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। इसके आगे मास्टर साहब हंसते हुए और उपहासपूर्ण तरीके से कहते हैं,”तुलसीदास जी एकदम चुपचाप गोल कर गये इस मामले को, उनको पता था कि फेमिनिज्म पैदा होने वाला है 300-400 साल बाद और उस समय की महिलायें बैंड बजा देगी, हालांकि ऐसी बातें कह गए हैं कि बैंड बजाने के लिए पर्याप्त कारण हैं.…..
मास्टर साहब का 2 मिनट 20 सेकंड का विडियो यहाँ रुक जाता है।
अब यहाँ विडियो में मास्टर साहब के कहे हुए शब्दों को लिखने के बाद मेरे कुछ प्रश्न हैं:
- जिस लेखक (पुरुषोतम अग्रवाल) के लेख से मास्टर साहब बात शुरू करते हैं क्या उस लेख में ये भी लिखा है कि जब राम युद्ध जीते रावण से.. सीता मुक्त हुई..सीता ..जैसे फिल्मों में नही होता भागते हुए नायक नायिका भाग रहे हैं एक दूसरे की ओर स्लो मोशन में, वैसा दृश्य बनना चाहिए था कि नही? इतने दिनों के बाद इतना बड़ा युद्ध जीतने के बाद फायनली हम लोग मिले हैं, कोई मजाक थोड़ी न है? या ये बात स्वयं मास्टर साहब की कल्पना है? इसका कोई प्रमाण?
ध्यातब्य है कि विडियो में यही सब कहकर मास्टर साहब भूमिका बाँध रहे हैं और बड़े ही रोचक ढंग से समझा रहे हैं।
- या फिर क्या ये सब वाल्मीकि रामायण में कहीं लिखा है? या रामचरितमानस में? या इनके पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेख में?
- क्या पुरुषोत्तम अग्रवाल के उस लेख में या वाल्मीकि रामायण ये भी लिखा है कि राम समझ गए कि ये थोडा ज्यादा खुश हो रही है ये, तो राम को लगा कि थोडा ठीक कर दूँ ज्यादा खुश नही होना चाहिए? या ये मास्टर साहब की कपोल कल्पना है?
असली कहानी यहाँ से शुरू होती है, जब मास्टर साहब हंसते हुए कहते हैं: तुलसीदास जी एकदम चुपचाप गोल कर गये इस मामले को, उनको पता था कि फेमिनिज्म पैदा होने वाला है 300-400 साल बाद और उस समय की महिलायें बैंड बजा देगी। हालांकि ऐसी बातें कह गए हैं कि बैंड बजाने के लिए पर्याप्त कारण हैं।…..
ध्यान रखिये बात वामपंथी लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने अपने लेख में क्या लिखा से बात शुरू हुई थी, उसके बाद मास्टर साहब ने वाल्मीकि रामायण का नाम लिया, उसके बाद अगर छात्र चाहेंगे तो प्रमाण लाकर दिखाने की बात की, फिर बॉलीवुड वाली बात और फिर श्रीराम ने जो माता सीता से कहा वो बताया। फिर मास्टर साहब ने लेखक क्या करते हैं ये बताया और फिर छद्म हंसी के साथ तुलसीदास की बैंड बजाते हुए या बैंड बजाने के मंतव्य से तुलसीदास जी की एंट्री कराई।
अब प्रश्न उठता है:
- क्या मास्टर साहब बतायेंगे कि आखिर पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेख का तुलसीदास जी के साथ क्या सम्बन्ध है? क्या जेएनयु के अध्यापक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने क्या कहा या लिखा उसको तुलसीदास ने चुपचाप गोल कर दिया या फिर वाल्मीकि रामायण में जो लिखा है उसको तुलसीदास जी ने गोल कर दिया? विडियो से स्पष्ट है मास्टर साहब ने ऐसा कुछ न बताया।
- प्रश्न यह भी उठेगा कि पुरुषोत्तम अग्रवाल ने तुलसी दास जी से पहले लिखा है या फिर तुलसीदास जी ने पुरुषोत्तम अग्रवाल से पहले लिखा है?
सब जानते हैं उत्तर होगा तुलसीदास जी ने पहले लिखा है, इस प्रकार यह बात तो सिद्ध हो गयी कि मास्टर साहब बड़े ही हास्यपूर्ण ढंग से तुलसीदास जी द्वारा चुपचाप बात गोल करने की बात बोल रहे हैं, वह बात पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेख से कुछ गोल करने की तो बिल्कुल नही है। क्या इसका मतलब यह है कि जो बात तुलसीदास जी ने मास्टर साहब के अनुसार गोल की वो वाल्मीकि रामायण से थी?
पुनः ध्यान दिला रहा हूँ मास्टर साहब ने पुरुषोत्तम अग्रवाल के बाद वाल्मीकि जी का नाम लिया था। अब प्रश्न उठता है:
- क्या मास्टर साहब ने बताने की कोशिश की है कि तुलसीदास जी ने जो बात गोल की है वह वाल्मीकि रामायण में लिखी है? यदि ऐसा है तो फिर उसका प्रमाण?
- क्या इसका मतलब यह नही निकालना चाहिए कि मास्टर साहब छद्म रूप से ये सिद्ध करने की साजिश कर रहे हैं कि वाल्मीकि रामायण में ये सब लिखा हुआ है? क्योंकि वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास रचित रामचरितमानस ही सर्वाधिक प्रचलन में हैं।
- विडियो में मास्टर साहब कहते हैं,”संस्कृत के एक ग्रन्थ में राम के मुंह से ये कहलवाया गया है। प्रश्न उठता है किस संस्कृत के ग्रन्थ में ये सब कहलाया गया है? मास्टर साहब ने ये तो बताया नही! क्या मास्टर साहब किसी पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेख या पुस्तक को हिन्दू ग्रन्थ मानते हैं?
- विडियो में मास्टर साहब ये भी कहते हैं लेखक लोग अपने मन की बातें चरित्रों के मुंह से कहलवाते हैं, छवि बनती है चरित्र की, छवि बिगडती है उसकी। क्या मास्टर साहब स्वयं वही काम नही कर रहे हैं जिसको उन्होंने लेखकों के ऊपर थोपा है कि लेखक अपने मन की बात चरित्र के मुंह से बुलाते हैं?
- बिना प्रमाण के श्रीराम और माता सीता के प्रसंग में बॉलीवुड की छिछोरी फिल्मों के दृश्यों से भूमिका बाँधने को क्या कहा जाए?
- यदि इनको लेखकों की मानसिकता का विश्लेषण ही करना था तो इनको हिन्दुओं के आराध्य देव ही मिले? दूसरे मत पन्थ के आराध्यों पर ऐसे झूठ गढने की हिम्मत क्यों नही की?
- क्या मास्टर साहब में हिम्मत है कि वे ऐसा विश्लेषण अहिंदू मत पंथों की पुस्तकों या आराध्यों पर करेंगे?
- आखिर इस तरह के आक्षेप केवल हिन्दू धर्म पर ही क्यों?
- और क्या इसे ‘शायद’ तथा ‘सुनने वालों की इच्छा हो तो बाद में प्रमाण लाकर दिखाने की बात कहकर’ स्वयं को सही सिद्ध करने की और फेक नैरेटिव खड़ा करने की साजिश नही समझना चाहिए?
- मास्टर साहब तुलसीदास जी का बैंड बजाने की कौन सी मानसिकता से आईएस की कोचिंग देते हैं?
- क्या मास्टर साहब बतायेंगे कि उनको कैसे पता कि जो बात तुलसीदास जी गोल की उसके लिए 300-400 साल बाद मास्टर साहब की चहेती फेमिनिज्म वाली तुलसीदास जी का बैंड बजायेंगी? इसका क्या प्रमाण है?
- क्या वाल्मीकि जी और तुलसीदास जी का वर्णन अपनी कुत्सित मानसिकता को स्थापित करने के लिए उचित है?
- क्या हिन्दुओं के आराध्य भगवान राम और माता सीता को बॉलीवुड के छिछोरों के समकक्ष करना भी आईएस की कोचिंग का हिस्सा है?
- क्या कोचिंग के मास्टर को यह पता नही है कि जिन माता सीता और भगवान राम का वो विश्लेषण के नाम पर मजाक उड़ा रहे हैं उनका चित्र संविधान निर्माताओं ने भारत के संविधान पर अंकित किया है?
- क्या इन मास्टर साहब का मानना है कि भगवान राम और माता सीता का उपहास सुनकर और अपमान पर हंसने वाले आईएस के अभ्यार्थी उस संविधान का पालन करेंगे या करवा पायेंगे जिस पर भगवान राम और माता सीता का चित्र अंकित है?
- ऐसे मास्टर की कुत्सित मानसिकता पर कितने प्रश्न खड़े किये जा सकते हैं। निर्णय देश के लोगों और विशेषकर हिन्दू समाज को करना है, ये उन माता पिता को तय करना है कि उनके बच्चे भगवान राम का मजाक उड़ाने वाली और अपमान करने वाली की कोचिंग में क्या कर रहे हैं?
- मेरे ट्वीट पर मास्टर साहब के शुभचिंतक महाभारत एक सन्दर्भ दे रहे हैं, उनसे प्रश्न है कि क्या आपके मास्टर साहब ने विडियो में महाभारत का नाम लिया है? उनकी बात तो प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल से शुरू हुई फिर वाल्मीकि जी का नाम लिया, महाभारत की बात उनके विडियो में कहाँ है?
- प्रश्न यह है कि भगवान राम के चरित्र को जानने के लिए रामायण स्त्रोत या सन्दर्भ होगा या महाभारत? या फिर कोई पुरुषोतम अग्रवाल? क्या मास्टर साहब ने महाभारत का नाम विडियो में लिया?
- प्रश्न ये भी उठता है कि जब मास्टर साहब स्वयं आश्वस्त नही है कि किस शास्त्र में ऐसा लिखा है तो फिर वाल्मीकि रामायण के कंधे पर बंदूक चलाकर ये सब मजाक करना ही क्यों?
दृष्टि आईएस कोचिंग के मास्टर दिव्यकीर्ति ने विडियो में जो भी कहा उससे उनकी हिन्दूधर्म विरोधी मानसिकता उजागर होती है, वे चाहें कुछ भी बोल ले या बचाव कर लें, उनकी पोल खुल चुकी है।
सुप्रसिद्ध पत्रकार प्रदीप भंडारी के ट्वीट पर मैंने को ट्वीट किया था, उस विडियो का विश्लेषण और मेरी प्रतिक्रिया इस लेख में है। मैंने अपने ट्वीट में दृष्टि आईएएस को टैग करके प्रमाण मांगे हैं और माफ़ी मांगने की बात कही है, साथ ही क़ानूनी कार्यवाही की अपनी बाध्यता भी लिखी है। मेरा ट्वीट भी वायरल हुआ है, बहुत से लोगों की प्रतिक्रिया उस ट्वीट पर आई है, ये लेख उनके समक्ष प्रस्तुत है।
अब जानकारी मिली है कि मास्टर साहब ने लल्लनटॉप यूट्यूब चैनल पर प्रमाण दिए है। मुझे भी एक मित्र ने लिंक भेजा है। मैंने अभी विडियो नही देखा है, विडियो देखकर प्रतिक्रिया दूंगा और उस फिर दूसरा लेख लिखूंगा। एक बात तो अच्छी है कि मास्टर साहब प्रमाण लेकर आये, उनको बाध्य होना पड़ा। इससे हिन्दू आस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों को सीख लेनी चाहिए कि बिना प्रमाण के कुछ नही बोलना चाहिए। मास्टर साहब ने प्रमाण दिए उसके लिए उनका विडियो देखे बिना ही धन्यवाद। बाकी लल्लनटॉप चैनल का विडियो देखकर प्रतिक्रिया दूंगा। जय श्री राम