इधर हम लोगो का ध्यान प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा और कर्नाटक के चुनाव पर टिका हुआ है उधर पी चिदंबरम के द्वारा एकत्रित किए गए काले धन की जानकारी सामने आ रही है। आयकर विभाग के अनुसार चिदंबरम और उनके परिवार ने 14 देशो में 3 बिलियन डॉलर या लगभग 20,000 करोड़ रुपए की संपत्ति गैरकानूनी तरीके से अर्जित की है। जब उनकी यह चोरी पकड़ी गयी, तो चिदंबरम ने जवाब दिया कि लापरवाही के कारण उनका परिवार, जिसमे उनकी पत्नी, बेटे और बहू शामिल हैं, अपने आयकर रिटर्न में विदेशों में अर्जित करोड़ों रुपए की संपत्ति शामिल नहीं कर पाए।
देवगौड़ा के प्रधानमंत्रित्व काल में पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे और मुझे उनके साथ कार्य करने का अवसर मिला था। जब उनको प्रेस क्लिपिंग भेजी जाती थी तो वह एक-एक प्रेस क्लिपिंग को ध्यान से पढ़ते थे और विषेकर संपादकीय पेज पर छपे लेखो को अपनी टिप्पणी के साथ वापस करते थे। कई बार एक लेख पे 5 से 6 कमेंट होते थे जिसमें वह लिखते थे कि “कैसे यह पत्रकार इस विषय पे मेरी आलोचना कर सकता है? उस समय तो मैं वित्त मंत्री ही नहीं था।” मतलब वह इशारा मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री काल की तरफ कर रहे होते थे। फिर वह उसी क्लिपिंग के बगल में लिखते थे कि उस लेखक या संपादक से बात करो और उसे बताओ कि उसने गलत क्यों लिखा है और उसका खंडन करो। बाद में वह पूछते थे कि आपने “उस” पत्रकार से बात की। और हम लोग सहमते, मिमियाते हुए जवाब देते थे कि हां बात करी थी। लेकिन उसने खंडन नहीं छापा। फिर वह उसी समय पत्रकार या संपादक को फोन लगाने को कहते और उस को खरी-खोटी सुनाते थे।
इस घटना को सुनाने से मेरा अभिप्राय यह है कि पी चिदंबरम छोटी सी छोटी बात पर भी निगाह रखते थे, तथ्यों को लेकर उनकी सूझ-बूझ की कोई सानी नहीं थी और उनकी बुद्धिमता पर संदेह नहीं किया जा सकता है। आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि अपने स्वयं के परिवार के आयकर रिटर्न को भरने के समय उनकी बुद्धिमता, उनकी सूझ-बूझ और छोटे से छोटे तथ्यों पर पकड़ जैसे गुणों ने उनका साथ छोड़ दिया? स्वयं चिदंबरम, उनकी पत्नी और उनके पुत्र ने कानून की पढ़ाई की है, वित्तीय मामलों को लंबे समय से संभाल रहे हैं, और ऐसा मानना थोड़ा सा मुश्किल हो जाता है कि करोड़ों की संपत्ति को टैक्स रिटर्न में शामिल करने में उनसे कोई लापरवाही हो गई हो। प्रश्न यह भी उठता है कि क्या पी
चिदंबरम वित्त मंत्री के रूप में एक आम करदाता की लापरवाही को भी ऐसे ही माफ कर देते?
मैं यह बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि पी चिदंबरम और उनके परिवार ने ऐसे सभी आरोपों का खंडन किया है। काफी समय से मैं लिखता आ रहा हूं कि भारत ने स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी प्रगति इसलिए नहीं की कि हमारे देश में प्रतिभा, कार्य करने की क्षमता और रचनात्मकता में कुछ कमी है। बल्कि हमारे देश में प्रगति इसलिए नहीं की क्योंकि भारत के संसाधनों और संपत्ति पे अभिजात वर्ग ने कब्जा कर लिया था और वह उस धन को देश के बाहर भेजने में लगा रहा था। इस लूटपाट ने देश के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने सक्रिय भूमिका निभाई। क्योंकि सभी के हाथ भ्रष्टाचार में लिप्त थे तभी कई राजनीतिज्ञों में अपार प्रतिभा होने के बाद बावजूद भी वे एक परिवार की गुलामी करने को मजबूर हो गए और एक अयोग्य प्रौढ़ युवा को देश के प्रधानमंत्री के रूप में थोपने का प्रयास कर रहे हैं।
साभार: उमेश नंदा के फेसबुक वाल से
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