विपुल रेगे। भूपिंदर की सांसों के तार ऐसे टूट गए, जैसे गिटार का कोई तार टूटकर उलझ जाता हो। कोलोन कैंसर से भूपिंदर की मृत्यु हुई लेकिन कोलोन तो एक बहाना था। अपने अंतिम वर्षों में वे संगीत के वर्तमान सिस्टम से दुःखी थे। उन्होंने संगीत का स्वर्णिम युग जिया है और उसके ख़त्म होने पर जीना उन्हें गवारा नहीं हुआ। उनको स्मोकी वाइस का गायक माना जाता था। वह एक ऐसी आवाज़ थी, जो शब्दों के भावों को विस्तार देती थी।
भूपिंदर को आप उन कलाकारों की श्रेणी में बिना विवाद रख सकते हैं, जिनकी आवाज़े श्रोता को समाधिस्थ कर सकने की ताकत रखती थी। भूपिंदर को पहला ब्रेक सन 1964 में मिला। चेतन आनंद की हकीकत में उन्होंने अन्य गायकों के साथ एक गीत गाया। गीत के बोल थे ‘होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा।’ इस गीत में उनके साथ मोहम्मद रफ़ी, मन्ना डे और तलत महमूद जैसे गायक थे। ऐसे सिद्धहस्त गायकों के बीच अपनी पहचान बना पाना निश्चित ही दुष्कर रहा होगा।
संगीतकार मदन मोहन ने उस समय भूपिंदर की गायन क्षमता पहचान ली थी। ऑल इंडिया रेडियो के तत्कालीन प्रोड्यूसर अशोक राय के सम्मान में दिए गए एक भोज में भूपिंदर ने अपनी प्रस्तुति दी थी। उस समय मदन मोहन ने उन्हें नोटिस किया था। गजलों की दुनिया में स्पेनिश गिटार की एंट्री कराने का श्रेय भूपिंदर को ही जाता है। वे एक बेहतरीन गिटारिस्ट थे। संगीतकार नौशाद कहते थे कि जहाँ गिटार की बात आती है, भूपेंद्र सिंह तक कोई पहुँच नहीं सकता है।
कितने मज़े की बात है कि जो संगीत प्रशंसक भूपिंदर की अलहदा आवाज़ को पसंद नहीं करते थे, वे भी अनजाने में भूपिंदर की कला के कायल थे। दरअसल भूपिंदर ने बड़े संगीत निर्देशकों के लिए गिटार बजाया है। चुरा लिया है तुमने जो दिल को, दम मारो दम, महबूबा-महबूबा, चिंगारी कोई भड़के, आने वाला पल जैसे किशोर और रफ़ी के गीतों में भी भूपिंदर वादक के रुप में मौजूद रहे। न केवल मौजूद रहे बल्कि स्टार वादक कहलाए जाने लगे।
भूपिंदर को समकालीन संगीतकारों और गायक कलाकारों के बीच बहुत प्रेम मिला। गुलज़ार और आरडी बर्मन के तो वे बहुत प्रिय थे। जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें भी उसी दुःख ने खा लिया, जिसने राहुल देव बर्मन को खाया था। संगीत इंडस्ट्री में हुए बदलावों से वे खफा थे। भले ही अपने विनम्र स्वभाव के चलते उन्होंने स्पष्ट नहीं कहा लेकिन संकेत अवश्य दिए। एक बार उन्होंने कहा था कि आज के संगीतकार को पता ही नहीं चलता कि गीत कब रिकार्ड हो गया, आज के वादक को मालूम नहीं होता कि उसने अपना म्यूजिक पीस किस गीत के लिए बजाया है।
भूपिंदर की तरह पुराने गायक कलाकारों को इंडस्ट्री का वर्तमान सिस्टम संगीत की कब्र खोद देने वाला लगता है। चूँकि भूपिंदर उस ज़माने से थे, जब कई बार गीतों की रिकार्डिंग लाइव की जाती थी। जयदेव के संगीत निर्देशन में गाया एक गीत उनकी पहचान बन गया। वैसे तो उन्होंने सभी गीत लाजवाब गाए थे लेकिन ये वाला कोहिनूर था। फिल्म दूरियां के लिए उन्होंने ‘मेरे घर आना, आना ज़िंदगी’ गाकर सदा के लिए अपना नाम संगीत प्रेमियों के हृदय पर लिख दिया था। इस गीत के अन्तरे में बोल है ‘मेरे घर का सीधा सा इतना पता है, ये घर जो है, चारों तरफ से खुला है, न दस्तक ज़रुरी न आवाज़ देना, मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं है।
इंसानी शरीर की सीमाओं से निकलकर उनकी आवाज़ अब आज़ाद है। वह ईश्वर का घर है, जो चारो ओर से खुला है और भूपिंदर की अब स्मृति ही शेष है।