गब्बर सिंह ने ठीक कहा था , जो डरता है सो मरता है ;
हिंदू इसीलिये मरता है , क्योंकि हिंदू डरता है ।
राक्षस मारे , गुंडा मारे , शासन और प्रशासन मारे ;
सदा ही अत्याचार झेलता , बने हुये ऐसे बेचारे ।
देशभक्त को जेल मिल रही , गद्दारों को बेल ;
कितनी गंदी राजनीति है ? कैसा गंदा खेल ?
पराधीनता से भी बदतर , भारत की ऐसी आजादी ;
सारी उन्नति व्यर्थ हो गई , इतनी बढी़ हुई आबादी ।
कहने को कानून का शासन , पर कहीं नहीं कानून है ;
लूट , डकैती , रेप व दंगे , विफल हुआ कानून है ।
गधे पंजीरी खाते रहते , सूअर खाये अंगूर ;
अंधेरी नगरी – चौपट राजा , हूर के गले में लंगूर ।
वोट – बैंक की महिमा न्यारी ,आरक्षण बढ़ता जाता ;
राष्ट्र हो गया सबसे पीछे , तुष्टीकरण बढ़ता जाता ।
खुली छूट है राष्ट्र को तोड़ो , पता नहीं क्या है एजेंडा ?
गुंडे लाल किले में घुसकर , लगा रहे अपना झंडा ।
पुलिस हमेशा पिटती रहती , ऊपर का आदेश है ;
खुली छूट गुंडागर्दी की , जाने कैसा ये देश है ?
ऐसी मती फिरी शासन की , सच्चाई मजबूर है ;
जैसी मती वैसी गती, किस्सा ये मशहूर है ।
विनाशकाले विपरीत बुद्धि: , एकदम सही ये बात है ;
पता नहीं क्या भाग्य देश का ? अपने ही करते घात हैं ।
अपने हुये पराये ऐसे , जैसे तोता मुंह फेरे ;
अच्छा हुआ भ्रम टूट गया , खुल गये भेद जो थे तेरे ।
अब तू न सही कोई और सही,अब नया मार्ग हम खोलेंगे;
सपूत राष्ट्र के अनगिनत अभी ,हम उनमें से कोई खोजेगें।
अबकी देखेंगे ठोंक बजाकर , ढूंढेंगे अबकी खरा सोना ;
हर राष्ट्रभक्त अब उठ बैठा , जागृत है राष्ट्र का हर कोना ।
जितने भी दल हैं दलदल हैं , ऐसी है गंदी राजनीति ;
सब राष्ट्रभक्त मिल जायेंगे व लायेंगे अब राष्ट्र नीति ।
लेकर आयेंगे एक नया दल,जो केवल राष्ट्र का कार्य करे ;
भारत को हिंदू -राष्ट्र बनाकर , रामराज्य चरितार्थ करे ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”
uttam vicharo se bhari hui kavita hai