नागरिक कानून के विरोध में मुस्लिमों द्वारा किए गए जामिया हिंसा एवं दंगे को पूरा एक साल हो गया। एक साल पहले जामिया विश्वविद्यालय के बाहर छात्र सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे और इस धरना- प्रदर्शन के दौरान अचानक कुछ प्रदर्शनकारी उग्र होकर पुलिस बल पर पथराव करने लगे। जिसके बाद हिंसा ने दंगे का रूप ले लिया था। बाद में इस हिंसा की लपटें पूर्वोत्तर दिल्ली तक पहुंची और भीषण दंगे में 53 लोग मारे गए थे।
पुलिस सूत्रों के अनुसार 15 दिसंबर 2019 को जामिया विश्वविद्यालय के बाहर एवं अंदर पुलिस छात्रों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था। उससे पहले यहां मौजूद मुस्लिम लोग नागरिक कानून के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन इस बीच छात्रों की तरफ से पुलिस टीम पर पथराव किया गया था, तो वहीं पुलिस की तरफ से भी कैंपस में घुसकर कथित तौर पर छात्रों के साथ मारपीट की गई थी।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि अभी तक इस मामले में कुछ छात्रों सहित 22 आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं जबकि इनके खिलाफ आरोपपत्र भी दाखिल हो चुका है और अदालत में मामले की सुनवाई चल रही है। पुलिस सूत्रों का दावा है कि 15 दिसंबर 2019 को जामिया विश्वविद्यालय के बाहर जब तक छात्र सीएए के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे तब तक कुछ नहीं हुआ लेकिन प्रदर्शन के दौरान अचानक कुछ प्रदर्शनकारी उग्र होकर पुलिस बल पर पथराव करने लगे। जिसके बाद पुलिस जब उनके पीछे गई तो सभी कैंपस में चले गए ।
इतना ही नहीं कैंपस के अंदर से पुलिस पर पथराव किया गया था, जिसके चलते पुलिस ने भी कैंपस में घुसकर छात्रों को पीटा था। इस घटना को लेकर जामिया प्रशासन सामने आया और पुलिस पर छात्रों की पिटाई के आरोप लगाए गए। लेकिन पुलिस ने छात्रों की पिटाई से इनकार किया लेकिन इतना जरूर कहा कि उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पुलिस कैंपस में जरूर घुसी थी।
इस घटना की कुछ सीसीटीवी फुटेज भी सामने आई थी और जांच के दौरान यह पाया गया कि इस घटना में लगभग 150 लोग घायल हुए थे, जिनमें 95 पुलिसकर्मी एवं अन्य छात्र शामिल थे। जामिया हिंसा में कई बसे तथा बाइकों को जलाया गया और हद तो तब हो गई जब दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पुलिस पर ही आगजनी के आरोप लगा दिए थे लेकिन जांच में यह आरोप झूठा साबित हुआ जिसके बाद आम आदमी पार्टी की आलोचना भी की गई थी।
इसी घटना में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान के भी विवादित भाषण और मुस्लिम लोगों के उकसाने के वीडियो वायरल हुए, जिसको लेकर उन पर प्राथमिकी भी दर्ज की गई लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। पुलिस का तो यहां तक कहना है कि जामिया हिंसा से पहले दिल्ली दंगे के सूत्रधार रहे उमर खालिद तथा सरजील इमाम तथा अन्य लोगों ने भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसके बाद शाहीन बाग का धरना शुरू हुआ था।
दिल्ली पुलिस का कहना था कि 15 दिसंबर के इस हंगामे को लेकर पुलिस की तरफ से दंगे की एफआइआर दर्ज की गई थी और इसकी जांच क्राइम ब्रांच की इंटरस्टेट सेल द्वारा की जा रही है। क्राइम ब्रांच ने बताया कि इस मामले की जांच के दौरान अब तक उन्होंने 22 लोगों को गिरफ्तार किया है और इनमें जामिया छात्र आसिफ इकबाल तन्हा, मीरान हैदर, जेएनयू छात्र शरजील इमाम एवं क्षेत्रीय नेता आशु खान आदि शामिल है।
इस मामले पर अदालत संज्ञान ले चुकी है और ट्रायल चल रहा है। बताया जाता है कि राजधानी में फरवरी 2020 में हुए दंगों के लिए जामिया हिंसा को भी जिम्मेदार माना जाता है जबकि दिल्ली दंगों को लेकर दाखिल किए गए आरोपपत्र में कई जगहों पर पुलिस ने इस जामिया हिंसा का जिक्र किया है। उनका दावा है कि दिल्ली दंगों की साजिश जामिया हिंसा के समय से ही शुरू हो गई थी और यह जांच मेंं स्पष्ट है कि कुछ लोगों ने आपस में मिलकर दिल्ली दंगे की साजिश रची जबकि इस साजिश को लेकर स्पेशल सेल द्वारा यूएपीए एक्ट का मामला दर्ज किया गया ।
हिंसा की साजिश के इस मामले में लगभग एक दर्जन आरोपियों को स्पेशल सेल की टीम गिरफ्तार कर चुकी है और इनमें शरजील इमाम, उमर खालिद, आसिफ इकबाल तन्हा, मीरान हैदर, सफूरा जरगर आदि शामिल है । दिल्ली पुलिस का कहना है कि जामिया हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस की तरफ से एक पोस्टर जारी किया गया था ,जिसमें लगभग 70 आरोपियों की तस्वीरें थी और यह लोग जामिया हिंसा में शामिल हैं और इनके बारे में जानकारी देने वाले को इनाम दिया जाएगा क्योंकि यह आरोपी अब तक पकड़े नहींं गए हैं । पुलिस का कहना है कि जामिया हिंसा से लेकर पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगे मामले की जांच अभी भी चल रही है और पुलिस टीमें फरार विभिन्न आरोपियों को पकड़ने में जुटी हुई है।