Sonali Misra. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटने के बाद काफी कुछ बदला है ऐसा सरकार का दावा है, परन्तु जम्मू क्षेत्र जैसे एक शिकायत ही करता आ रहा है और अब यह मांग उठने लगी है कि जम्मू को एक स्वतंत्र राज्य बनाया जाए। एकजुट जम्मू नामक संगठन बार बार यह मांग कर रहा है। इसके अध्यक्ष अंकुर शर्मा के वीडियो कई मुद्दों पर खासे चर्चित रहे हैं और कुख्यात रोशनी एक्ट भी अंकुर शर्मा के कारण ही जनता के सामने आ पाया था। और वह इस सरकार से भी खासे नाखुश हैं क्योंकि यह सरकार भी उनके अनुसार वास्तविक खतरों को पहचान नहीं पा रही है और उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है, जो पाकिस्तान और आईएसआई का एजेंडा है!
एकजुट जम्मू के अध्यक्ष अंकुर शर्मा के अनुसार पिछले 70 वर्षों से भारत की राज सत्ता की जो पॉलिसी जम्मू कश्मीर को लेकर रही है वह एक पॉलिसी पैराडाइम बन गई है। उस पॉलिसी पैराडाइज में ये निहित था कि जम्मू कश्मीर को हाफ सेपेरेटिज्म के जरिये ही चलाना है। जम्मू कश्मीर में जो पॉलिटिकल कंट्रोल है वह इस्लामिस्ट के हाथ में देकर ही चलाना है। इसी पॉलिसी पैराडाइम को वर्ष 2014 15 में आई सरकार ने भी पूरी तरह अपना लिया। और दुर्भाग्य से वही पॉलिसी जम्मू कश्मीर में चलती रही।
उस नीति में यह था कि राष्ट्रवादी जम्मू है वह सेकंड क्लास, होस्टेज, कोलोनाइज्ड, गुलाम रहेगा। इस्लामी ताकतों को इस तरह पेश किया जाएगा जैसे कि वह मेन स्ट्रीम पार्टी और सेकुलर पार्टी है और इस्लामिस्ट और दिल्ली सरकार के बीच हुए इस अनहेल्दी नेक्सस में इस कांटेक्ट को वैध करने का कार्य भारत सरकार भी करेगी और जम्मू का राष्ट्रवादी संभाग भी करेगा तो इसके परिणाम स्वरूप ऐसा होता रहा कि जम्मू कश्मीर में अलगाववाद इनाम हो गया राष्ट्रवाद के लिए आपके लिए कीमतें निर्धारित हो गई। टेररिस्ट और टेररिज्म पर इंसेंटिव हो गया और घुसपैठ के खिलाफ एवं राष्ट्रवाद के पक्ष में जो ताकतें खड़ी होती थी उनके साथ प्रताड़ना आरंभ हो गई।
जिस समय धारा 370 और 35a हटाई गई, उसी दिन एकजुट जम्मू ने मीडिया में यह बात कही थी इन्हें करना पहला कदम है। आपको धारा 370 और 35a के पूर्णता उन्मूलन के लिए अभी काफी सारे कदम और उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि पहले हमें यह समझना होगा कि धारा 370 35a केवल वही नहीं था कि जो घाटी के विकास को रोक रहा था या फिर जो विकास में बाधक था या जिसने भारत को कश्मीर के भीतर आने से रोका था। धारा 370 दरअसल वह मानसिकता थी जो जिन्ना की मानसिकता थी, जो द्विराष्ट्र वाले सिद्धांत पर आधारित थी जो पाकिस्तान के निर्माण के मूलभूत सिद्धांत पर आधारित थी।
370 और 35a यह सुनिश्चित करता था कि क्योंकि जम्मू और कश्मीर एक मुस्लिम मेजॉरिटी वाला राज्य है तो यहां पर भारत का कोई भी कानून लागू नहीं होगा, क्योंकि मुस्लिम मेजॉरिटी वाला राज्य है तो यहां पर इसका अलग से संविधान होगा, क्योंकि मुस्लिम मेजॉरिटी वाला स्टेट है तो इसलिए यहां का अलग झंडा होगा। राज्य के भीतर एक राज्य और राज्य का आधार बनाया गया मुस्लिम सब नेशनलिज्म। सबनेशलिज्म इसलिए क्योंकि यह मुस्लिम मेजॉरिटी स्टेट है। यह वही सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण किया गया था।
अंकुर शर्मा के अनुसार 1947 के बाद हमने क्या देखा, कि भारत के सेकुलर राज्य में एक पाकिस्तान का बीज बो दिया गया था। चूंकि पाकिस्तान कभी बो दिया गया था तो फिर उसके जो स्वाभाविक परिणाम थे जिसमें देश को रक्तरंजित करना, राष्ट्रवादी ताकतों को नीचा दिखाना, राष्ट्रहित को कंप्रोमाइज करना, इंटरनल सब वर्जन इंट्रोड्यूस करना पिछले 70 वर्षों में देखे। तो यह एक बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही धारा 370 और 35a को हटाने के बाद सरकार ने कदम आगे बढ़ाने के बजाय कदम पीछे देना प्रारंभ कर दिया।
उन्होंने कहा “मैं उन डायरेक्शन की बात कर रहा हूं जो धारा 370 और 35a को हटाने के बाद भारत सरकार की होनी चाहिए थी। किसी ना किसी तरीके से कश्मीरी इस्लामिस्ट रिजीम को यह संदेश देने की कोशिश की गई कि धारा 370 और 35a को हटाना एक एब्रेशन है, माने मामूली विचलन है। मान के चलेंगे कि कुछ बदला नहीं, सत्ता संरचनाएं बदली नहीं है। उनके अनुसार इसी पृष्ठभूमि में हमारी मांग है कि धारा 370 और 35a को पूरे रूप से हटाए जाने के लिए आपको दो बातें करनी हैं: सबसे पहले आपको जम्मू को एक पूरा राज्य घोषित करना है और दूसरा कश्मीर को आपको 2 यूनियन टेरिटरीज में डिवाइड करना है।
क्यों कश्मीर को दो यूनियन टेरिटरी में बांटना है?
अंकुर शर्मा के अनुसार कश्मीर को विभाजित करने के पीछे निम्नलिखित कारण हैं: कश्मीर को 2 यूनियन टेरिटरीज में इसलिए बांटा जाए क्योंकि एक हिस्सा उन कश्मीरी हिंदुओं के पास जाएं जिनको 1990 के दशक में वहां से पलायन करना पड़ा था, जो नरसंहार के पीड़ित हैं। इसके लिए बहुत आवश्यक है कि भारत सरकार 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों का जो नरसंहार हुआ था हुआ था और साथ ही जम्मू के राजौरी, डोडा, रामबन, पुंछ आदि के जिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हमारे हिंदू भाइयों का नरसंहार हुआ था, उसे आधिकारिक रूप से नरसंहार घोषित करे क्योंकि भारत सरकार यूनाइटेड नेशन के कन्वेंशन ऑफ़ जनोसाइड की सेक्रेटरी है।
अंकुर शर्मा कहते हैं कि भारत सरकार की इस जिम्मेदारी से भागती रही है। मगर हम चाहते हैं कि कश्मीरी हिंदुओं के साथ जो नरसंहार हुआ है उसको नरसंहार घोषित करें। तो हमारी पहली मांग ही है कि हिंदुओं के नरसंहार के लिए अपराध सुनिश्चित करने से पहले कश्मीर में उनके लिए जो कि वहां पर 5000 साल पहले के निवासी थे, उनके लिए एक निश्चित भूमि निर्धारित करें, जिस का संचालन, नियंत्रण केवल दिल्ली करें।
दिल्ली से उसको मॉनिटरिंग हो। अंकुर शर्मा कहते हैं कि यह कोई कम्युनल तर्क नहीं है कि कश्मीरी हिन्दुओं के लिए एक निश्चित भूमि दी जाए, बल्कि यह सेक्युलर आर्गुमेंट है, और यह भारतीय राज सत्ता की एक लीगल और एक मोरलऔर संवैधानिक उत्तर दायित्व का निर्वहन करने का मौका है, जहां पर वह नरसंहार के पीड़ितों के साथ न्याय करें, नरसंहार के पीड़ितों को सेटल करने के लिए उनको बसाने के लिए, उनके साथ न्याय करने के लिए आप कश्मीर को दो हिस्सों में तोड़ेंगे, जिनमें से एक हिस्सा केवल और केवल कश्मीरी हिंदुओं के लिए ही होगा, और दूसरा रेस्ट ऑफ द कश्मीर।
अंकुर शर्मा कश्मीर की समस्या को बताते हुए कहते है कि जम्मू कश्मीर में जो समस्या है, वह है जिहाद और जहां की शरण स्थली है कश्मीर और जब तक कश्मीर को केंद्र अपने डायरेक्ट कंट्रोल में नहीं लेगा तब तक इस नासूर का तब तक इस कैंसर का कोई भी प्रभावी इलाज नहीं किया जा सकता।
वह कहते हैं कि जिस एरिया में प्रॉब्लम है उस एरिया को आप अपने डायरेक्ट कंट्रोल में ले। दिल्ली से अपने सीधे नियंत्रण होने तो भारत की राजसत्ता का वहां पर सीधा नियंत्रण होगा। अभी वहां पर स्टेट बनाकर, हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन करके और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ठेंगा दिखाकर उनके लोगों को व्यवस्था में शामिल किया गया है, जो अपना इस्लामी आतंकवादी एजेंडा चलाते हैं, उन्हें सशक्त करने के बजाए कश्मीर को एक यूनियन टेरिटरी में बदला जाए तो क्या हम इस अन्याय को रोक सकते हैं क्या हम एब्यूज को रोक सकते हैं।
वह कहते हैं कि फारूक अब्दुल्लाह महबूबा मुफ्ती ताकि सभी लोग जिन्होंने जम्मू कश्मीर पर राज किया, वह सभी सबवर्ट्स थे, उन्होंने सब वर्जन लागू करके भारत की सत्ता पर अंदर से कब्जा किया अर्थात राज्य को भीतर ही भीतर अप्रेटस के रूप में नियंत्रित करना। उन्होंने अपने लोगों को और अपनी नीतियों को राज्य के भीतर लागू करके अप्रेटस के रूप में नियंत्रित किया। और होता फिर यह है कि प्रधानमंत्री फिर कोई भी बन जाए जो राज्य अप्रेटस रिपोर्ट बना कर देगा प्रधानमंत्री उसी के अनुसार कार्य करेंगे। राज्य अप्रेटस अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर, वह जिन विचारों को लेकर बनी है और उसके एजेंडापरक कार्य क्या हैं, अपना फीडबैक देती है और अंततोगत्वा वही होता है जो राज्य अप्रेटस चाहती है।
70 वर्षों से चल रही नीतियां अभी 2014 के 7 वर्षों के बाद भी वापस नहीं ली जा सकती है और आतंकवाद को इनाम देने वाली ही रही है और यही कारण है कि हम कहते हैं कि भारतीय राज्य भारत देश के खिलाफ कार्य कर रहे हैं और जम्मू-कश्मीर इसकी जीती जागती ही नहीं बल्कि सबसे बड़ी मिसाल है। भारत की राज सत्ता इस सनातन इंडिक सभ्यता से केवल विमुख ही नहीं है बल्कि वह शत्रुता का भाव भी लिए है। जाने अनजाने, या फिर अंदर ही अंदर जो उनके भावों का टेकओवर हो गया है, उसके कारण तमाम कारण गिनाए जा सकते हैं।
उनके अनुसार कश्मीर को यूनियन टेरिटरी में बांटने का जो तीसरे सबसे महत्वपूर्ण कारण है भारत की सुरक्षा! उन्होंने कहा कि भारत की सुरक्षा एजेंसियों की या तो आंखें बंद है या फिर जो हमारे राजनेता है उन्होंने उनकी आंखें बंद कर दी हैया फिर जो हमारी व्यवस्था में इतनी घुसपैठ हो गई है उसके कारण, हमारे निर्णय लेने की अक्षमता के कारण इतना सरल लॉजिक समझ नहीं आ रहा है जब पाकिस्तान का उद्देश्य है हमारी सनातन हिंदू व्यवस्था को नष्ट करने का है और इस विध्वंस में उनके मिलिट्री जनरल भी शामिल है जो बार-बार यह कहते हैं कि हिमालय क्षेत्र की इस्लामीकरण की सबसे ज्यादा आवश्यकता है क्योंकि सनातन का जो पालना है, वह तो हिमालय ही है।
हिमालय में जो सनातन के प्रतीक है सनातन की उपस्थिति है अगर आप उसका इस्लामीकरण कर लें, उसे नष्ट कर दें, फिर चाहे वह अमरनाथ हो वैष्णो देवी हो या फिर हमारे उत्तराखंड के जो हमारे तीर्थ स्थान हों, यह हमारे संतो, ऋषियों या महात्माओं का इतिहास हों, इन सब के कारण हिमालय को ही सनातन का पालना कहा जाता है। पाकिस्तान का उद्देश्य उसे ही पूरी तरीके से इस्लामीकरण करने का है। तो जो कश्मीर पूरी तरीके से इस्लाम के कब्जे में आ चुका है क्या भारत की यह एक रणनीतिक आवश्यकता नहीं है वहां पर एक जियो पोलिटिकल हिंदू फुटहोल्ड खड़ा किया जाए,
कहां पर कश्मीरी हिंदुओं के लिए एक कॉलोनी बसाई जाए, जिसे एक यूनियन टेरिटरी के स्टेटस दिया जाए। वह नार्थ ईस्ट ऑफ रिवर झेलम और उसके आसपास के एरिया में बनाई जाए, जिससे जम्मू और लद्दाख के बीच का संपर्क ना टूटे। जो कश्मीर पूरी तरीके से रणनीतिक रूप से 100% इस्लामिक रत हो चुका है, तो ऐसे में पाकिस्तान के उस सपने को तोड़ने के लिए जिसमें हिमालय क्षेत्र को पूरी तरह से इस्लामीकरण किया जाना शामिल है, एक जियो पोलिटिकल हिन्दू फुटहोल्ड बनाना अनिवार्य है।
और जो आप वहां पर हिंदू फुटहोल्ड बनाएंगे उसके लिए आपके पास एक सेक्युलर आर्गुमेंट भी है। क्योंकि इस सरकार को अपनी सेक्युलर की इमेज की बहुत चिंता है और एक और जब तक इनको मुसलमान या कम्युनिस्ट एक सेक्युलरप्रमाण पत्र नहीं देते हैं तब तक इन्हें बहुत चिंता रहती है। तो सरकार से यह कहा जाए एक कश्मीरी हिंदुओं जो जनसंहार के पीड़ित हैं, हम उनके लिए एक कॉलोनी बसाना चाहते हैं और इससे मुसलमान इसलिए भी इनकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि कहीं ना कहीं मैं खुद भी इसमें शामिल थे।
यह एक बहुत बड़ा झूठ है कि पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हिंदुओं के साथ यह नरसंहार का कार्य किया था। यह सही है पाकिस्तानी भी थे लेकिन स्थानीय मुसलमान इसमें शामिल थे। फिर चाहे वह नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी हो, या उस समय कि कांग्रेस की वहां के नेता हो, लगभग सभी नेताओं के उकसाने वाले भाषण जिनमें हिंदुओं को मारने की बात की गई है उसकी वीडियोज मिल जाएंगे।
वह कहते हैं कि जो सोसाइटी थी, उसने इनके लिए एक बंकर का काम किया। इसी सोसाइटी में वह सभी आतंकवादी रहते थे और इसी सोसायटी ने उन आतंकवादियों को एक नैतिक अधिकार दिया। इसी सोसाइटी ने सिक्योरिटी फोर्स पर पत्थर मार मार कर आतंकवादियों को भगाने का कार्य किया। कश्मीर की सोसाइटी जिहादी युद्ध के लिए एक बंकर है, और इस बंकर को भी ध्वस्त करना बहुत आवश्यक है। और इस सोसाइटी ने 1990 में भी बंकर का काम किया था।
आतंकवादियों ने गोली मारी तो समाज के लोगों ने हिंदुओं के मंदिर, उनका इतिहास उनके प्रति उनकी पहचानें, इस नरसिंहार के कृत्य में तबाह कीं, बर्बाद कीं। गर्भगृह तक उखाड़ दिए गए और घृणा इतनी गहरी थी कि केवल मंदिर ही नहीं तोड़े गए, जिन खम्भों पर मंदिर खड़े हैं उन खंभों को भी निकाल निकाल कर तोड़ा गया और क्या-क्या किया गया शायद हम लोग शब्दों में बताने के लिए सक्षम नहीं है। मूर्तियों के साथ क्या-क्या किया, क्या शिवलिंग के साथ क्या-क्या किया गया, यह सब हम बता नहीं सकते हैं। परंतु यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, तो अब यह कहना है कि फारुख अब्दुल्ला जैसे लोग जो उस नरसंहार वाले कृत्य में, एक्ट में शामिल हो जाते हैं।
उन्होंने उस पूरे दौर और प्रक्रिया को बताते हुए स्पष्ट किया कि उस समय क्या हुआ था. उन्होंने कहा कि आरोप लगाने/अदरिंग का प्रोसेस कि यह इंडिया का एजेंट है, यह हिंदू है यह एक अलग कम्युनिटी है जिसे पूरी तरीके से सबक सिखाना है ऐसे तमाम भाषण और वह भी मेंस्ट्रीम पॉलीटिकल पार्टी के उपलब्ध है , जिसके आधार पर उन्हें जनसंहार विरोधी कानूनों में लपेटा जा सकता है, और जैसे जर्मनी के साथ यहूदी नरसंहार के बाद जैसा किया गया था वैसे इनके साथ भी ट्रायल चला कर फांसी दी जा सकती है।
परंतु हमारा दुर्भाग्य यह है कि भारत सरकार, मुसलमानों के नाराज़ हो जाने के डर के कारण हिंदुओं के साथ नरसंहार हुआ यह तक स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इनका कहना है कि जनोसाइड माइग्रेशन थी, और यह सीधे-सीधे नरसंहार को नकारना है। नरसंहार के ऊपर जितने भी विचारक हैं या फिर शोध करने वाले हैं वह कहते हैं कि जो डिनाइल ऑफ जनोसाइड है, वह क्लाइमैक्स ऑफ जनोसाइड हो जाता है।
अर्थात एक पीड़ित समाज के साथ नरसंहार हुआ लेकिन जो राजसत्ता है वह बोले कि नरसंहार हुआ ही नहीं उसे जनोसाइड का क्लाइमेक्स कहते हैं। आप उनका मनोवैज्ञानिक नरसंहार कर देते हैं, उनको खत्म कर देते हैं। तबाह कर देते हैं इसलिए कश्मीरी समाज को कहना है कि आपने जो भी किया उसको हम नरसंहार घोषित करेंगे। वह स्पष्ट कहते हैं कि इसके लिए रणनीतिक तैयारी की आवश्यकता होती है जो कि दुर्भाग्य से भारतीय सरकार के पास नहीं है।
जम्मू के लिए अलग राज्य का दर्जा क्यों?
जम्मू के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जम्मू को एक अलग राज्य बनाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि अभी तक भारत की जितनी भी सरकारें रही हैं, उनमे जम्मू गलत नीतियों के कारण शोषण का शिकार होता रहा, सेकंड क्लास रहा जिसके कारण जम्मू में जो विकास होना था वह नहीं हो पाया, पब्लिक एंप्लॉयमेंट में जो जम्मू का रिजर्वेशन होना चाहिए था वह नहीं हो पाया, जम्मू में निजी क्षेत्रों में भी निवेश नहीं हो पाया। जम्मू संभाग में कश्मीर से अधिक संभावना वाले पर्यटन स्थान है
परंतु उनका विकास नहीं हो पाया, जो अर्थव्यवस्था और रोजगार दोनों से ही संबंधित है। सबसे महत्वपूर्ण है कि जम्मू राजनीतिक रूप से स्वतंत्र हो जाएगा। अभी तक कश्मीरी इस्लामिक वर्चस्ववादी नीतियों का जो गुलाम रहा था, और यह गुलामी 1947 में भारतीय राज्य सत्ता के द्वारा जो मिली थी उससे जम्मू मुक्त हो जाएगा और स्वतंत्रता से बड़ी कोई चीज नहीं। जम्मू को पूर्ण राज्य बनाए जाने पर जनता की नजरों में आप सशक्तिकरण का भाव देखेंगे।
सशक्तिकरण का भाव है उन लोगों की आंखों में देखना चाहता हूं जो राष्ट्रवादी रहेजिन्होंने भारत का झंडा हमेशा कश्मीर में पकड़ कर रखा है, जिन्होंने अपने सीने पर गोलियां खाकर यहां पर हिंदुस्तान को जिंदा रखा है। और जो बेचारे केवल इसलिए कश्मीरी इस्लामिक वर्चस्व के नीचे पिसते रहे क्योंकि उनको दिल्ली की राजसत्ता नहीं है बताया कि वह यही करके जिंदा रह सकते हैं और यही करके कश्मीर को भारत के साथ जोड़ सकते हैं।
उन्होंने गजवा ए हिंद के बारे में बात करते हुए कहा कि और दूसरी बात यह है कि कश्मीरी जनरल जब यह कहते हैं कि हिमालय के क्षेत्रों का तो इस्लामीकरण करना ही है जो उन्होंने 1990 के दशक में हासिल कर लिया लेकिन गजवा ए हिंद के लिए पूरे उत्तर भारत का इस्लामीकरण करना आवश्यक है और उस उत्तर भारत में सबसे महत्वपूर्ण है जम्मू। जम्मू को बचाने के लिए आप की क्या रणनीति है।
कश्मीर में तो मुश्किल से कश्मीरी हिंदू 5% था हर 500 घरों में शायद दो या तीन घर थे तो वहां से तो उनको मार कर भगा दिया। बहुत सरल था उनको मारकर भगाना, तो भगा दिया गया। लेकिन जम्मू के लिए क्या करेंगे जम्मू के लिए उन लोगों ने डेमोग्राफी चेंज का रास्ता चुना।
जम्मू में जो लैंड जेहाद हुआ उसको लेकर भी हमने काफी कुछ लोगों को जागरूक किया और मीडिया में आकर भी हमने अपनी बात रखी, हमने डाक्यूमेंट्स भी रखे। परन्तु चूंकि कश्मीर एक गैर सेक्युलर मुस्लिम राज्य था, जिसे यह दर्जा भारत सरकार और संविधान में दिया हुआ था तो जम्मू में जो लैंड जेहाद हुआ जम्मू में जो जनसंख्या में बदलाव हुआ वह राज्य द्वारा ही प्रायोजित था।
और इसका पहला सबूत है रोशनी एक्ट, जिसमें सरकारी भूमि को मुसलमानों के नाम कर दिया गया, ऐसा क़ानून बनाया क्या जिसमें कहा गया कि जो भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करता है या अपना घर बना देता है कुछ पैसे देकर आवेदन करके उस जमीन का मालिकाना हक पा सकता है। आईएसआई की साजिश थी क्योंकि जम्मू उनके टारगेट पर था। इस कानून को बनाने का उद्देश्य तक जम्मू की पूरी जनसंख्या को बदलना। कल हिंदुओं ने भी आवेदन किया क्योंकि वह भी कई सरकारी जमीनों पर काबिज़ थे।
परन्तु उनका जो आवेदन था वह पूरी तरीके से कानूनी था क्योंकि भूमि सुधार लाने के बाद बहुत सारी जमीन जो थी जो जमींदारों के पास उनकी सीलिंग क्षमता से अधिक थी, वह सरकार ने अपने पास रख ली थी। उस जमीन पर जिन का कब्जा था वह वही लोग थे जिन्हें एग्रेगेरियन रिफार्म के बाद संभावित स्वामी का दर्जा दिया हुआ था। यह सरकार का उत्तरदायित्व था कि पहले इसे सरकारी जमीन बनाकर और फिर एग्री गेरियन एक्ट की धारा 3 और 4 के अंडर, इस जमीन को वहां पर टेलिंग करने वाले काश्तकारों के नाम पर कर दिया जाए। परन्तु चूंकि जम्मू को पूरी तरह से जनसांख्यकीय रूप से बदलना था तो उन्हें जरा भी नहीं दी गईं और उन्हें संदिग्ध ही श्रेणी में रखा, जबकि कानून में वह संभावित ओनर था। तो उन्हें न ही रोशनी एक्ट और न ही कृषि क़ानून में जमीन मिली।
और जम्मू में कठुआ, साम्बा, ऊधमपुर में बाहर से ला ला कर मुसलमानों को बसाया गया और जो हिन्दू बहुल क्षेत्र थे उनमें छोटी छोटी टाउनशिप बसा दी गईं और कई लाख कनाल जमीन इस तरह दे दी गयी। इसे हमने सरकारी जेहाद का नाम दिया। अर्थात जिस जिहाद को कानूनी रूप से और सरकारी तरीके से किया जाए और इसे ही हम इंटरनल सबवर्जन कहते है और इसकी परिभाषा अंकुर शर्मा ने बताई कि जब आप सेक्युलर तरीके से सेक्युलर व्यवस्था में घुसकर जिहाद करते हैं और पूरा सरकारी तंत्र इसके क्रियान्वयन में लग जाता है।
मुसलमानों के पक्ष में क़ानून तोड़ने की इजाजत इतना ही नहीं जम्मू को जीतने के लिए वर्ष 2018 में महबूबा मुफ्ती ने 14 फरवरी को एक आदेश निकाला, जम्मू संभाग के लिए; जिसमें उसने यह कानूनी रूप से डीएम, एसएसपी आदि को निर्देश दिए थे कि अगर कोई मुसलमान जम्मू में कहीं पर भी कोई भी जमीन कब्ज़ा कर लेता है, तो उस पर डीएम, एसएसपी द्वारा उन पर कोई भी कार्यवाही नहीं होगी और चूंकि गौ हत्या और बछड़ों की हत्या के नाम पर जम्मू संभाग में मुस्लिमों पर बहुत अत्याचार होते हैं, तो ऐसे में यदि वह गौ हत्या करते हुए भी पाए जाएं, तो उन पर पशु क्रूरता अधिनियम भी लागू न हो और अधिकारियों को यह आदेश दिया गया कि उन पर कोई भी कार्यवाही न हो।
और यह आदेश कोई मौखिक नहीं थे, बल्कि यह लिखित में थे और इन्हें पब्लिक नहीं किया गया था। पांच पन्नों में एक सबसे महत्वपूर्ण आदेश यह भी था कि यदि न्यायालय के आदेश के कारण इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए कोई टीम आती भी है तो एसएसपी को यह लिखित में आदेश दिया गया था कि पुलिस की टीम उनके साथ नहीं जाएगी। इस प्रकार लिखित रूप से मुसलमानों को क़ानून तोड़ने की आज़ादी दी गयी। इस तरीके से भी हज़ारों मुसलमानों को बसाया था।
फिर अंकुर शर्मा ने बताया कि किस तरीके से नदियों के किनारे किनारे मुस्लिमों की बस्ती बसाई गयी। जम्मू शहर मुख्य लक्ष्य है। जम्मू तवी नदी के किनारे स्थित हैं। और तवी को सूर्यपुत्री का स्थान प्राप्त है। हिन्दुओं के लिए नदियाँ माँ का स्थान रखती हैं। तो जिला एवं सत्र न्यायालय जम्मू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया और उस समिति में कई अधिकारी भी सम्मिलित थे। उसमें प्रश्न किए गए कि जम्मू की सीमा में तवी पर कितना कब्ज़ा किया गया। 668 लोगों का विवरण निकाला गया, कि कितनी संपत्ति बनाई, कितना अतिक्रमण किया तो उसमें से केवल एक गैर मुस्लिम था और 667 लोग मुसलमान थे।
वन जिहाद: इसके बाद अंकुर शर्मा ने बताया कि जम्मू संभाग में दस जिले हैं और इन दस जिलों के आसपास जो वन क्षेत्र हैं, उन वन क्षेत्रों में जानबूझकर शासन की मदद से मुस्लिमों का कब्ज़ा कराया गया। उन वनों को कंक्रीट के जंगलों में बदला गया और यही मॉडल हर जगह दोहराया गया। और इसी साजिश के तहत ही वह रसाना वाला, कठुआ वाला काण्ड भी महबूबा मुफ्ती द्वारा रचा गया था। उस समय न ही देश को और न ही सरकार को यह समझ आया था कि जम्मू क्यों सीबीआई जांच की मांग कर रहा है, मगर यह यही मॉडल है कि जो भी हिन्दू बहुल क्षेत्र हैं, उनके आसपास मुस्लिम घेटोवाली कॉलोनी बना दी जाए।
वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की सूची जो उच्च न्यायालय के पास है, उसमें 90% से अधिक अतिक्रमण करने वाले मुसलमान हैं और जिन्हें सरकारी तंत्र के अंतर्गत सरकारी रूप से बसाया गया है। फिर अंकुर शर्मा पूछते हैं कि आखिर जम्मू को इस नरसंहार से कौन बचाएगा? जब तक राजनीतिक रूप से आत्मनिर्भरता नहीं आएगी तब तक इस जिहादी रणनीति से कैसे लड़ेंगे? कैसे जम्मू सशक्त हो पाएगा? पाकिस्तान के विस्तार के आइडिया को कौन रोकेगा?
डीलिमिटेशन द्वारा धारा 370 और 35 ए को बैकडोर एंट्री को लाने का षड्यंत्र
भारत सरकार तो जल्दी जल्दी षड्यंत्र को सुगम बना रही है। धारा 370 और 35 ए को हटाने के बाद जिस प्रकार से डोमिसाईल लॉ के द्वारा, उस फ्रॉड 2011 की जनगणना के आधार पर बैक डोर एंट्री से धारा 370 और 35 ए लाने की कोशिश हो रही है, यह उचित नहीं है। नीति के आधार पर मैं मैं कहूं तो भारत सरकार और यहां का जो एलजी प्रशासन है वह कहीं ना कहीं पाकिस्तान की और आईएसआई की बी टीम की तरह काम कर रहा है। गजवा ए हिंद को और भी सरल बनाने का काम कर रही है। जाने अनजाने या फिर कैसे भी मुझे नहीं पता, पर जो जो पाकिस्तान चाहता है जम्मू और कश्मीर में वही हो रहा है।
अंकुर शर्मा के अनुसार सरकार ने धारा 370 और 35a को खत्म करने के बाद यह कहां धारा 370 और 35a का सबसे बड़ा पीड़ित जम्मू था और यह भी कहते हैं कि जम्मू ही था जिसने की धारा 370 और 35a की होने की सबसे बड़ी कीमत चुकाई। धारा 370 35a हटाने के बाद सबसे पहले जो कदम इनका होना चाहिए था कि जम्मू और कश्मीर को राजनीतिक रूप से स्वतंत्रता में प्रदान करना परंतु उन्होंने क्या किया, उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में 90 सीट होंगी। तो उन्होंने सात सीटें और बढ़ा दीं। और इन 90 सीट पर डीलिमिटेशन होगा डीलिमिटेशन का आधार बना दिया 2011 की जनगणना।
वह जनगणना जिसे भाजपा के नेता खुद ही फ्रॉड कहते थे। इस घटना के विरोध में मैंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देशवासियों के समक्ष सभी तथ्य रखे थे और वीडियो और वह प्रेस कॉन्फ्रेंस बहुत वायरल हुई थी जिसे भाजपा के आईटी सेल के हेड में भी रीट्वीट किया था। हम ने यह बताया था कि किस तरीके से 2011 की जो जनगणना है, वह पूरी तरीके से धोखे से भरी है। पूरी तरीके से फ्रॉड है।
इस वर्ष 2001 से 2011 के बीच में जम्मू संभाग की जनगणना थी, उसे माइनस में दिखाया था। यह तभी होता है जब यहाँ पर अकाल पड़े, कोई बड़ा नरसंहार हो जाए, धरती निगल जाए। यदि ऐसा होता तो वहां की सरकार यहां की राज्य सरकार की राज्य सत्ता किसी ना किसी समिति का गठन करती, रिपोर्ट मंगवाती और प्रश्न करती कि आखिर इतनी जनसंख्या गयी कहाँ?
इसके विपरीत कश्मीर का 1990 का अगर हम डाटा देखते हैं तो पाते हैं कि वहां से तो कम से कम 5 से 6 लाख लोग कम हो गए थे क्योंकि हिंदुओं को तो उन्होंने नरसंहार करके भगा दिया था। उस समय वहां पर 24% की इनक्रीस दिखाई थी। अंकुर शर्मा के अनुसार कई और चौंकाने वाले तथ्य हैं जैसे कि मुसलमानों की संख्या में 4.2% की वृद्धि का इजाफा होना और मुस्लिम की जनसंख्या में 4.2 प्रतिशत की कमी होना। इसलिए उन्होंने कहा कि 2011 का जनगणना है पूरी तरीके से फ्रॉड हैऔर भाजपा का भी अधिकारी की स्टैंड यही है कि जम्मू कश्मीर में हुई तमाम जनगणनाएँ फ्रॉड हैं।
जब इतना सब कुछ पता था लेकिन उसके बाद भी जब डीलिमिटेशन का काम आया तो उन्होंने जो डीलिमिटेशन का कार्य था उसको वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार निर्धारित कर दिया। तो प्रक्रिया जब यह सकता था कि जम्मू आगे रहेगा या कश्मीर फ्रंट सीट पर रहेगा उस समय सबवर्जन के माध्यम से ऐसी व्यवस्था कर दी गई कि केवल और केवल कश्मीर ही आगे रहे।
अंकुर शर्मा का दर्द यही है कि सत्तर सालों में यही हुआ कि जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम कश्मीर के हाथ में सत्ता सौंप कर चलाना है। पहले यह तर्क दिया जाता था कि चूंकि एक हिन्दू देश भारत में जम्मू और कश्मीर एक मुस्लिम बहुत राज्य है, जिसमें लोकतंत्र मुस्लिम चला रहे हैं, तो यह विश्व के सामने कितना बड़ा सेक्ल्युलरिज्म का उदाहरण है।
अंकुर शर्मा के अनुसार धारा 370 और 35ए हटाने के बाद भी हमें उन्हीं ताकतों के हवाले किया जा रहा है, जिन्होनें हमें अपने जिहाद का पिछले सत्तर वर्षों से शिकार बना रखा है, और जिन ताकतों ने हमें हमेशा जिहाद के लिए पंचिंग बैग की तरह यूज़ किया है और हमारा जनसंहार किया है, हमें नीचा दिखाया है, हमें रक्तरंजित किया है, हमारे साथ हमेशा भेदभाव किया और हमें अपने जिहादी एजेंडा को चलाने के लिए हमेशा स्प्रिंग बोर्ड की तरह इस्तेमाल भी किया।
स्कॉलरशिप घोटाला?
दिल्ली, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय और कोलकता विश्वविद्यालय में होने वाले प्रदर्शनों के बारे में उन्होंने कहा कि यह वही कश्मीरी हैं, जो भारत सरकार से तमाम फेलोशिप लेकर देश के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यह तो प्रदर्शन कर रहे हैं, पर इन्हें पैसा कौन दे रहा है? स्पेशल स्कॉलरशिप तो भारत सरकार ही दे रही है न?
अंकुर शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2016 में उन्होंने भारत सरकार के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने प्रश्न उठाए थे कि चूंकि जम्मू और कश्मीर एक मुस्लिम बहुत क्षेत्र है तो वहां पर अल्पसंख्यक तो हिन्दू हुए और अन्य हुए। तो ऐसे में जम्मू और कश्मीर में अल्पसंख्यकों के लिए सुविधाएं मुस्लिमों को कैसे दी जा सकती हैं।
परन्तु न्यायालय में भी सरकार ने यही कहा कि कश्मीर चूंकि मुस्लिम बहुल राज्य है, संवेदनशील है, इसलिए कश्मीर में यह मुस्लिमों को मिलना चाहिए। फिर भी न्यायालय में 12 मार्च 2018 को यह सबमिट किया गया कि कश्मीर में हम हिन्दुओं को अल्प्संख्यक मानेंगे और अल्पसंख्यकों के अधिकार देंगे। और इस प्रकार मामला समाप्त हो गया, सरकार के साथ कोई हमारी लडाई ही नहीं रही क्योंकि उन्होंने मान लिया।
अंकुर शर्मा कहते हैं कि उच्चतम न्यायालय में हलफनामा देने के बाद भी, भारत और जम्मू कश्मीर सरकार ने अभी तक मुसलमानों को गैर मुसलमानों के हक देने बंद नहीं किये हैं। पीएमओ से पंद्रह सूत्रीय कार्यक्रम चलता है, जिनमें पंद्रह प्रकार की स्कालरशिप हैं माइनोरिटी के लिए, और उसमें यह क्लॉज़ संख्या 7 में लिखा है कि जम्मू और कश्मीर में इन योजनाओं का लाभ मुस्लिमों को नहीं बल्कि अन्य सूचीबद्ध माइनोरिटी को मिलेगा।
परन्तु फिर भी अपने ही कार्यालय की इम्प्लीमेंटेशन गाइडलाइन का हनन करते हुए, प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पंद्रह की पंद्रह योजनाओं का फायदा मुसलमानों को दिया जा रहा है। साठ से सत्तर कुल योजनाएं हैं और एक एक स्कॉलरशिप में आठ से नौ सौ लोगों को स्कॉलरशिप दी जाती है। और स्कॉलरशिप भी चार पांच लाख रूपए की हाई पावर वाली स्कॉलरशिप हैं। एक वर्ष में करोड़ों रूपए जाते हैं, तो इतने वर्षों में कितने हज़ार करोड़ रूपए बर्बाद हुए होंगे? और यह केवल घोटाला ही नहीं है बल्कि यह देश के खिलाफ दुश्मन खड़े किए जा रहे हैं और वह भी देश के ही धन से!
अंकुर शर्मा कहते हैं कि इस तंत्र में जो इस्लामी चाहते हैं वही होता है, उन्होंने कहा कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि चर्चा करने के लिए कभी सरकार ने जम्मू से किसी राष्ट्रवादी नेता को बुलाया हो, हमेशा घाटी के नेताओं को ही बुलाया जाता रहा है। लोन को बुलाया, अब्दुल्ला और मुफ्तियों को बुलाया, मगर कभी जम्मू की आवाज़ को बुलाकर नहीं पूछा गया कि आखिर क्या चल रहा है? और जिन्हें बुलाते हैं वह पाकिस्तानी गुर्गे हैं। जिन्हें बुलाते हैं, वह घोषित अलगाव वादी हैं, जो सेक्युलर का चोला पहने खड़े हैं। अंत में एजेंडा किसका चला रहे हैं, एजेंडा अभी भी पाकिस्तानी और आईएसआई का ही चल रहा है।
अल्पसंख्यकों का षड्यंत्र?
अंकुर शर्मा के अनुसार इस सरकार की यह भी समस्या है कि महत्वपूर्ण पदों पर गैर महत्वपूर्ण लोगों को बैठाया गया है। और चूंकि राज्य को भीतर से गुलाम बना दिया गया है, तो वह चाहते हैं कि उनका अजेंडा चलता रहे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय से यह प्रश्न किये जाने चाहिए, कि आप अपनी ही गाइडलाइन का विरोध क्यों कर रहे हैं, इससे केवल यही नहीं हो रहा कि राज्य का पैसा कहीं और जा रहा है, बल्कि इससे देश विरोध करने वाले भी मजबूत हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कश्मीर के मुसलमानों के साथ पूरी दुनिया की सहानुभूति इसीलिए है क्योंकि उनके पास माइनोरिटी स्टेटस है। और जो संयुक्त राष्ट्र का जो चार्टर है उसके अनुसार राज्य के खिलाफ अल्पसंख्यकों को मानवाधिकार प्राप्त हैं। उन्होंने कहा कि उस चार्टर के अनुसार मानवाधिकार केवल और केवल अल्पसंख्यकों के पास हैं, बहुसंख्यकों के लिए उनके शेष अधिकार हो सकते हैं।
जैसे संवैधानिक अधिकार, मूलभूत अधिकार, मगर मानवाधिकार केवल अल्पंख्यकों को ही मिलेंगे और वह भी राज्य के खिलाफ। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कोई हिन्दू किसी मुसलमान को थप्पड़ मारता है, तो वह मानवाधिकार का हनन नहीं हुआ, परन्तु यदि कोई सेना या पुलिस का व्यक्ति ऐसा करेगा तो वह मानवाधिकार हनन में आएगा। और मीडिया में यह झूठी खबर फैलाने के लिए खूब पैसे दिए जाते हैं कि भारतीय सेना, पुलिस ने इतने लोगो का मानवाधिकार हनन किया। और यह सब मानवाधिकार के अंतर्गत है, यह मानवाधिकार के अंतर्गत क्यों आया क्योंकि कश्मीर के मुसलमान गैर कानूनी तरीके से अल्पसंख्यक में आते हैं।
अंकुर शर्मा इस प्रक्रिया को आगे समझाते हुए कहते हैं कि फिर वह यह सारा पुलिंदा लेकर यूएन या संबंद्ध संस्था के पास जाते हैं। यूएन चार्टर के अनुसार यदि किसी देश में मानवाधिकार हनन होता है, तो दूसरे देश को यह अधिकार है, कि वह किसी भी देश की संप्रभुता पर प्रहार कर सके, तो इस आधार पर वह कश्मीर की समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण करते हैं। और यूएन और उससे जुड़ी संस्थाओं का साथ अपने अलगाव वादी एजेंडा में पाते हैं। जिसके कारण अलगाववाद को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलता है।
अंकुर शर्मा पूछते हैं कि क्या जम्मू और कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा पाकिस्तान दे रहा है, यूएस दे रहा है? यह भारत सरकार की राजसत्ता ही तो है जो अलगाववाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन एकत्र कर रही है। क्या भारत राज्य ही भारत देश के विरुद्ध युद्ध में नहीं है? क्या भारत राज्य भारत राष्ट्र की शत्रु नहीं है? क्या भारतीय राज्य सनातन इंडिक स्टेट से विमुख नहीं हो गयी है? अंकुर शर्मा का कहना है कि यही चुनौतियां हैं, जिन्हें देखा जाना है। अंकुर शर्मा कहते हैं कि इन सभी बातों को खत्म करने के लिए हमने कई लड़ाइयां लड़ी हैं।
और ऐसा नहीं है कि हम जीतते नहीं हैं, हमने रोशनी एक्ट 2020 में धाराशायी कराया और हमने कानूनी जिहाद को धाराशायी कराया, इसी के साथ 14 फरवरी का सिटिंग मुख्यमंत्री का आदेश जनता के सामने लाकर प्रेस कांफ्रेंस करवाकर रद्द करवाया। इस कदम के बाद अंकुर शर्मा पर कानूनी शिकंजा कसने की कोशिश हुई, पर वह असफल हुई।
अंकुर शर्मा फिर अफ़सोस जताते हुए कहते हैं कि हम तो इनके खिलाफ जीत जाते हैं, परन्तु भारत सरकार हमें हराती है। दिल्ली जम्मू को हमेशा हरवाती हुई आई है। अंकुर शर्मा के अनुसार जम्मू की पीठ में हमेशा से छुरा भोंका जाता रहा है। उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल ने कहा कि जो लोग जम्मू को अलग राज्य की मांग करते हैं, वह बेसिरपैर की मांग है।
चुनौतियाँ
अंकुर शर्मा ने इस बात पर निराशा व्यक्त कि क्यों भारत सरकार पाकिस्तान द्वारा जम्मू के इस्लामीकरण के विरोध में कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है। यह प्रश्न सभी को सरकार से पूछना चाहिए। अंकुर शर्मा कहते हैं कि जम्मू कश्मीर का इस्लामीकरण पूरी सनातन हिन्दू सभ्यता के इस्लामीकरण के समान होगा, इसे हमें समझना होगा।
यदि शेष राज्य यह सोचते हैं कि कश्मीर का ही तो इस्लामीकरण हुआ था, या फिर अब जम्मू का ही तो इस्लामीकरण हो रहा है तो हम बच जाएंगे, तो वह भ्रम में हैं। आपको कोई बचाने नहीं आएगा! भारत सरकार भी आपके बचाव में नहीं आएगी। कश्मीर में नब्बे के दशक में सेना को भी हिन्दुओं को बचाने के लिए नहीं जाने दिया गया था। वह भी राज्य स्पोंसर्ड आतंकवाद था।
और आप जब भी भारत सरकार से पूछेंगे कि आप शांत क्यों हैं, आपने कदम क्यों नहीं उठाए तो वह कहते हैं कि यदि हम कोई कदम नहीं उठा रहे हैं तो यह हमारी ग्रांड स्ट्रेटजी का हिस्सा है, और यह स्ट्रेटजी कभी सामने नहीं आती। अंकुर शर्मा कहते हैं कि जब जम्मू पर ध्यान नहीं दिया गया तो हमने एकजुट जम्मू बनाया और यह केवल जम्मू के लिए नहीं है, यह हिन्दुओं के लिए है।
उन्होंने कहा कि हम इसके माध्यम से जिहाद के पूरे कांसेप्ट को लोगों को समझा पा रहे हैं और उन कानूनों को ध्वस्त कर रहे हैं, जो हिन्दुओं के शोषण का आधार हैं। उन्होंने लोगों कहा कि वह साथ आए और सरकार से प्रश्न करें कि हिमालय के इस्लामीकरण को रोकने के लिए आप क्या कर रहे हैं? कश्मीर को सीधे अपने नियंत्रण में लीजिये और कश्मीर को दो युनियन टेरिटरी में बांटिये, एक वहां के हिन्दुओं के लिए और दूसरा रेस्ट कश्मीर के लिए और जम्मू को एक पूर्ण राज्य बनाएं।
अंकुर शर्मा ने हिन्दुओं के राजनीतिक जमीर पर भी बात करते हुए कहा कि जहां जहां हिन्दू नरसंहार का सामना करता है तो कुछ लोग उसी पर दोषारोपण करके उसे चुप कराने का कार्य करते हैं। कश्मीरी हिन्दुओं से कहते हैं कि तुम तो कम्युनिस्ट थे, तुम तो नेहरू के साथ थे, नेहरु तो तुम्हारा था, तुम बुजदिल थे और चूंकि तुम्हें बन्दूक नहीं उठाई, तो तुम्हारे कारण ही तुम्हारा नरसंहार हुआ है ऐसा ही पश्चिम बंगाल में भी कहते हैं कुछ लोग कि तुम लोग तो कम्युनिस्ट को ही सत्ता में रखते हो, तो पीड़ितों को ही आरोपी ठहराना एक आदत जैसी बन गयी है।
अंकुर शर्मा कहते हैं कि वैचारिक स्तर पर हिंदुत्व संगठनों का जो सबवर्ज़न है वह अलग अलग है जैसे सावरकर का हिंदुत्व अलग था, अरविंदो घोष का भिन्न था और वर्तमान में आरएसएस का अलग है। अरविंदोघोष के हिंदुत्व में धरती को माँ माना गया है, क्योंकि इसने सनातन को जन्म दिया है, उसमें सनातन मूल था। सावरकर जी ने भी लगभग यही अवधारणा ली और उन्होंने कहा कि यह ठीक है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस देश में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है, पर कौन सा व्यक्ति हिन्दू कहला सकता है?
हिन्दू वह है जो इस धरती को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि माने, अब इन तीन शर्तों के चलते मुसलमान तो हिन्दू हो नहीं सकते। दो वर्ष पहले संघ ने भी अपना क्षेत्रीय हिंदुत्व बताते हुए कहा कि सभ्यता से तो संघ का लेना देना नहीं है, पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक की धरती पर जो भी रह रहा है, वह हिन्दू है और इस्लाम के बिना हिंदुत्व अधूरा है।
अंकुर शर्मा ने कहा कि इन तीन चीज़ों में अंतर समझना होगा। एक सभ्यतागत हिंदुत्व है, एक सीमाओं में बंधा हुआ अर्थात टेरिटोरियल हिंदुत्व है और फिर बाद में टेरिटोरियल हिंदुत्व की शर्तों को भी साइड में रखकर कह दिया गया कि इस्लाम के बगैर हिंदुत्व अधूरा है। और जब इस्लाम के बिना हिंदुत्व अधूरा है तो मुसलमानों का दिल तो जीतना ही होगा। और वह कहते हैं कि मुसलमानों का दिल जीतने के लिए हिन्दुओं के हितों के साथ समझौता तो करना ही होगा। और मुसलमानों की सोच एकदम स्पष्ट है।
उन्हें क्या करना है, उन्हें भली भांति पता है। उन्होंने अपना लक्ष्य पाने के लिए बताइए, एक सेक्युलर देश में नॉन-सेक्युलर राज्य बना दिया और वह भी भारत के संविधान का प्रयोग करते हुए। अंकुर शर्मा ने कहा कि मुसलमानों ने अपनी मजहबी नीतियों को एक सेक्युलर चोला पहनाकर स्वीकृत भी करा लिया। और आप उनके कार्य करने की नफासत को समझिये, कितनी उत्कृष्टता से वह काम करते हैं, और आप कैसे काउंटर ओफेंसिव कैसे बनाएंगे?
अंकुर शर्मा कहते हैं कि सबसे पहले तो हमें समस्या को समस्या मानना ही होगा, जिहाद एक युद्ध रूप है, उसे जिहाद मानना होगा। मगर हमारे यहाँ समस्या यही है कि बीमारी को बीमारी ही माना नहीं जा रहा है। बीमारी है कैंसर और कहा जा रहा कि उसे फोड़ा कहा जाए! जिहाद हर तरीके से हो रहा है, उसमें रोज़ नई चीज़ें जुड़ जाती हैं। मगर जिहाद को पहचानने की ताकत ही नहीं है, और ताकत इसलिए नहीं है क्योंकि पिछले एक हज़ार वर्षों की गुलामी ने डॉक्ट्रिन ऑफ इस्लामिक विल को भारत में स्थापित कर दिया है।
अंकुर शर्मा कहते हैं कि हम अभी तक मानसिक गुलाम है, यह इस्लाम की इच्छा है कि उसे एक लाइन में रहकर आलोचना की जाए और हिन्दू ऐसा ही करता है। वह मामला बिगड़ने पर भी सच नहीं बोलता है, इस पर परदे डालता है और यह और कुछ नहीं बल्कि जिहाद ही है, मुसलमान इसे साफ़ कहते हैं। यह हिन्दू ही है, जो बार बार कहता है कि यह जिहाद नहीं है या फिर जिहाद इसे नहीं कहते हैं।
अंकुर शर्मा कहते हैं कि मुसलमान ने कभी भी ओसामा बिन लादेन की जिहाद की अवधारणा को अस्वीकार नहीं किया, हिन्दू ने किया। और इसे ही डॉक्ट्रिन ऑफ इस्लामिक विल कहते हैं। अंकुर शर्मा ने कहा कि यह राष्ट्रीय हित में है कि यह मांग उठाई जाए कि जम्मू को यूनियन टेरिटरी में बदला जाए। उन्होंने कहा कि यह कश्मीर के जनरल की किताब में लिखा है कि कैसे गजवा ए हिन्द के लिए जम्मू जरूरी है, और इसीलिए रोशनी जैसा एक्ट राज्य की विधानसभा से पारित हो जाता है और 14 फरवरी जैसे आदेश पारित हो जाते हैं, जो पाकिस्तान के और आईएसआई के एजेंडे पर बना हुआ आदेश था।
इसलिए सभी लोग आवाज़ उठाइये, हिन्दुओं के हितों के लिए आवाज़ उठाइये! अंकुर शर्मा, अध्यक्ष “एकजुट जम्मू” के साथ पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के साक्षात्कार पर आधारित!