
जावड़ेकर ओटीटी के लिए कानून नहीं बनाएँगे बल्कि आपको गाइडलाइंस से बहलाएंगे
राष्ट्रपति द्वारा ओटीटी पर लगाम कसने के लिए दी गई शक्तियों को तीन माह तक अपने तरकश में रखने के बाद सूचना व प्रसारण मंत्री ने एक और घोषणा की है। उन्होंने अब कहा है कि ओटीटी पर आ रहे आपत्तिजनक कंटेंट पर नियंत्रण के लिए सरकार कुछ गाइडलाइंस जारी करने जा रही है। इसके पूर्व मंत्री महोदय ने कहा था कि वे ओटीटी पर निगाह रखने के लिए एक समिति बनाने जा रहे हैं।
9 नवंबर 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कानून बनाने की शक्तियां केंद्र सरकार को प्रदान की थी। अब से चार माह पहले मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने समिति बनाने की हवा छोड़ी थी। उनकी नई घोषणा का अर्थ ये होता है कि विगत चार माह से इस आवश्यक कानून को बनाने के लिए उन्होंने कोई तीर नहीं मारा है।
गत वर्ष वे सार्वजानिक रुप से कहते पाए गए कि सरकार मीडिया की स्वतंत्रता पर कोई पाबंदी लगाना नहीं चाहती है। उनके इस बयान के बाद एक बदनाम वरिष्ठ पत्रकार 26 जनवरी के दिन ट्वीट करता है कि एक किसान पुलिस की गोली से मारा गया। उसके इस ट्वीट के बाद दिल्ली में भयानक हिंसा का तांडव मचता है। मामले की गंभीरता समझते हुए राष्ट्रपति स्वयं इस पत्रकार के मीडिया हॉउस को पत्र लिखते हैं।
जब देश का सूचना व प्रसारण मंत्री ऐसा लिजलिजा रवैया रखेगा तो ऐसे एजेण्डावादी पत्रकार झूठी खबर तो पूरे दम से फैलाएंगे ही। ओटीटी कंटेंट को लेकर मंत्री जी का रवैया तो राष्ट्र देख ही रहा है लेकिन सरकार नहीं देख पा रही। जिस मंत्री को आज से चार माह पूर्व सख्त कानून बनाना था, वह आज भी नियम बनाने की सिर्फ बात ही करता है।
वह नहीं बताता कि उसकी समिति ने विगत चार माह में क्या उखाड़ लिया। वह नहीं बताता कि उसने फिल्म तांडव के खिलाफ, वायुसेना का अपमान करने वाली फिल्म ‘एके वर्सेज एके’ पर कोई दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की, जबकि राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त शक्तियां उसके पास थी। मंत्री महोदय ने घोषणा की है कि वे ओटीटी पर नियंत्रण के लिए गाइडलाइंस यानी दिशा-निर्देश जारी करेंगे। जबकि बात तो कठोर कानून बनाने की हुई थी।
अब ज़रा दिशा-निर्देशों और कानून के बारे में अंतर जान लेना आवश्यक है। गाइडलाइंस का पालन अनिवार्य नहीं होता। इन्हें न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इनको मानना बाध्यकारी नहीं होता। इन्हें कानून की संज्ञा तो कतई नहीं दी जा सकती है। प्रकाश जावड़ेकर एक कठोर कानून बनाते तो इसका नोटिफिकेशन जारी किया जाता। क्या सरकार गाइडलाइंस जारी कर कानून बनाने से बचना चाह रही है।
स्पष्ट है कि गाइडलाइंस से बॉलीवुड में वह भय नहीं होगा, जो कानून बनाने से उनके मन में समाएगा। सरकार मनोरंजन क्षेत्र के साथ अत्याधिक उदारता बरत रही है, जबकि बॉलीवुड इन गाइडलाइंस को लेकर भी आक्रोशित हो रहा है। बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक इस प्रतीक्षा में हैं कि जावड़ेकर कब गाइडलाइंस जारी करें और वे लोग न्यायालय की शरण में चले जाए। वहां न्यायालय जावड़ेकर जी की गाइडलाइंस का भुर्ता बनाने में एक क्षण नहीं हिचकने वाला है।
उत्तर-पूर्व मुंबई से भाजपा सांसद मनोज कोटक ओवर-द-टाप (ओटीटी) प्लेटफार्म पर नियंत्रण व नियमन के लिए संसद में प्राइवेट मेंबर बिल लाने की तैयारी कर रहे हैं। इन्होंने 17 जनवरी को भारत सरकार के इन सुप्त मंत्री जी को एक पत्र भी लिखा है। वे पत्र में साफ़ तौर पर ओटीटी पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार का ये मंत्री न जनता की मांग सुनना चाहता है और न ही अपनी पार्टी के नेताओं की मांग को सुनने या स्वीकार करने के लिए तैयार है।
ओटीटी पर देश विरोधी, धर्म विरोधी कंटेंट बहुतायत में पाया जा रहा है। हाल ही में ड्रग्स केस में फंसे एक फिल्म निर्माता ने ‘रामायण’ पर फिल्म बनाने की घोषणा कर डाली है। यदि जावड़ेकर ने किसी समिति का गठन किया होता तो आज कुछ परिणाम तो देखने को मिलते। बॉलीवुड को इतनी राहत कि कानून बनाने की कोई बात नहीं की और गाइडलाइंस भी अब तक नहीं बनाई गई है।
केंद्र सरकार को इस तथ्य का अनुमान ही नहीं है कि उसके किये अभूतपूर्व कार्यों पर एक मंत्री की निष्क्रियता कालिख बनकर छा रही है। जब तक केंद्र सरकार जागे और मंत्री महोदय को बाहर का रास्ता दिखाए, तब तक कहीं बहुत देर न हो जाए। देश की जनता का गुस्सा इस मंत्री के लिए घृणा का रुप ले चुका है। और कब जागेगी केंद्र सरकार
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