राज्यसभा सांसद डाॅ सुब्रहमनियन स्वामी ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू वैचारिक रूप से एक कम्युनिस्ट थे, जो सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंटों से घिरे रहते थे। यहां तक कि लाॅर्ड माउंटबेटन की पत्नी और नेहरू की महिला मित्र एडबिना माउंटबेटन भी केजीबी की एजेंट थी। महात्माा गांधी की हत्या और सरदार पटेल की आकस्मिक मृत्यु के बाद कोई ऐसा नहीं बचा था, जो नेहरू से सवाल-जवाब कर सके। एक एडबिना ही उनसे सवाल पूछ सकती थी और वह भी केजीबी की एजेंट थी, इसलिए नेहरू ने भारत में कम्युनिज्म को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया। डाॅ. स्वामी रविवार को प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ पुस्तक लोकार्पण अवसर पर बोल रहे थे। पत्रकार व लेखक संदीप देव की पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ का लोकार्पण डाॅ सुब्रहमनियन स्वामी सहित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के निदेशक रामबहादुर राय और वरिष्ठ पत्रकार अंशुमन तिवारी ने किया।
डाॅ. स्वामी ने कहा, यह समझ नहीं आता कि एक कम पढ़े-लिखे व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू के नाम पर जेएनयू का नाम क्यों रखा गया? जवाहरलाल नेहरू ब्रिटेन में परीक्षा में फेल हो गए थे, लेकिन औपनिवेशिक भारत के राजे-राजवाड़े और संभ्रांत तबके के बच्चों को उत्तीर्ण करने के लिए वहां एक ‘जेंटलमैन पास’ श्रेणी का निर्माण किया गया था और नेहरू को इसी के तहत पास घोषित किया गया था। डाॅ. स्वामी ने कहा, इसीलिए जेएनयू का नाम कम पढे लिखे नेहरू के नाम से बदलकर पढ़े-लिखे सुभाषचंद्र बोस के नाम पर होना चाहिए। जेएनयू में वैचारिक कीटनाशक के छिड़काव कर उसे साफ करना चाहिए। यह पुस्तक इसका कार्य करेगी।
इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय काल केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि कम्युनिस्ट गद्दार होते हैं, यह 1962 की लड़ाई में मैंने अपनी आंखों से देखा है। कम्युनिस्ट उस समय कहते थे कि चीन ने भारत पर हमला नहीं किया है, बल्कि भारत ने उसे उकसाया है। आज भी कम ही कम्युनिस्ट इसे मानते हैं कि चीन ने भारत पर हमला किया था। यह पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ कम्युनिस्टों का पहला व्यवस्थित इतिहास है, जिसे पढ़कर न केवल कम्युनिस्टों के बारे में, बल्कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में भी देश में एक नई सोच बनेगी, ऐसा मेरा मानना है।
इंडिया टुडे के संपादक व वरिष्ठ पत्रकार अंशुमन तिवारी ने कहा कि साम्यवादी-समाजवादी अर्थव्यवस्था ने हमेशा अधिनायकवाद और क्रोनी कैप्टलिज्म को बढ़ावा दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था वैदिक काल से मुक्त अर्थव्यवस्था थी, लेकिन देश की पहली सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को कम्युनिज्म पैटर्न पर डालकर इसे बंद कर दिया। समाजवाद और साम्यवाद के नाम पर हमेशा देश को अधिनायकवादी रास्ते पर ढकेलने का प्रयास होता रहा है।
लेखक संदीप देव ने बताया कि उन्हेें यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में देश विरोधी नारों की गूंज से मिली। आखिर अपने ही देश को तोड़ने का विचार कैसे किसी के अंदर कौंध सकता है- जब इसकी खोज की तो पता चला कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने तो 1946 में ही केबिनेट मिशन के समक्ष देश को 16 टुकड़ों में बांटने की वकालत की थी। यही नहीं, 1972 तक कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान में देश के राज्यों को तोड़ कर अलग करने की बात मौजूद थी। 1972 में इसे कागजों से तो हटा दिया गया, लेकिन विचारों में यह आज भी मौजूद है, जो यदाकदा जेएनयू से लेकर बस्तर तक देखने को मिलती रहती है।
गौरतलब है कि दुनिया के बड़े प्रकाशकों में से एक व हैरी पोटर सिरीज के प्रकाशक ब्लूम्सबरी पब्लिकेशन ने संदीप देव की पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ का प्रकाशन किया है। 15 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय और कई बेस्ट सेलर पुस्तकों के लेखक संदीप देव ने काफी शोध के बाद 1917 से 1964 के कालखंड में भारत के अंदर साम्यवादी विचारधारा के विकास का इतिहास लिखा है। पुस्तक का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन, हाॅल नं-8 के साहित्य मंच पर किया गया।