यह लेख सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. शैलेन्द्र कुमार के गहन शोध पर आधारित है। जिहाद, मतांतरण और झारखंड लेख श्रृंखला का प्रथम भाग है। आगे और भाग आएंगे।
डॉ. शैलेन्द्र कुमार झारखंड लंबे समय से जिहाद और मतांतरण का दोहरा दंश झेल रहा है । बांग्लादेश के निकट होने से झारखंड, मुसलमान घुसपैठियों की शरणस्थली और वनाच्छादित होने से वनवासियों के मतांतरण के लिए निरापद स्थान बन गया । कोई आश्चर्य नहीं कि आज झारखंड की जनसांख्यिकी में अभूतपूर्व परिवर्तन हो चुका है । आनुपातिक दृष्टिकोण से झारखंड का हिन्दू समाज और उसका अभिन्न अंश वनवासी समाज — दोनों पिछले सात दशकों से निरंतर घटते रहे हैं । दूसरी ओर, झारखंड का एक जिला ईसाई-बहुल हो चुका है, जबकि लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व एक भी ईसाई इस पूरे क्षेत्र में ही नहीं था । इसी तरह झारखंड के दो जिले — पाकुड़ और साहिबगंज मुसलमान-बहुल होने की ओर अग्रसर हैं । ऐसा परिवर्तन कैसे हुआ और अब क्या किया जा सकता है ? इस आलेख में इन्हीं प्रश्नों पर विचार किया गया है ।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड, जो दो दशक पूर्व तक बिहार का हिस्सा था, में हिन्दू 67.83 प्रतिशत हैं, जबकि बिहार में 82.69 प्रतिशत । इस प्रकार दोनों राज्यों में हिन्दुओं के अनुपात में 14.86 प्रतिशत अंक का अंतर है । इस अंतर का सबसे बड़ा कारण यह है कि झारखंड में वनवासी धर्मावलंबियों की एक पृथक कोटि बनाई गई है, जिसका हिस्सा झारखंड की जनसंख्या में 12.84 प्रतिशत है । बिहार और झारखंड के जनसांख्यिकीय स्वरूप में यह पहला बड़ा अंतर है । दूसरा अंतर यह है कि बिहार में मुख्यतः दो ही संप्रदाय हैं — हिन्दू और मुसलमान, जबकि झारखंड में चार संप्रदाय हैं — हिन्दू, मुसलमान, वनवासी और ईसाई । यहाँ ध्यातव्य है कि जहाँ बिहार में मुसलमान, हिन्दुओं के बाद दूसरे स्थान पर हैं, वहीं झारखंड में भी मुसलमान दूसरे स्थान पर ही हैं । अंतर इतना ही है कि जहाँ बिहार में मुसलमान 16.87 प्रतिशत हैं, वहीं झारखंड में थोड़ा कम अर्थात 14.53 प्रतिशत हैं । इसके बाद झारखंड में वनवासी धर्मावलंबी हैं और अंत में ईसाई हैं, जो 4.3 प्रतिशत हैं ।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामाजिक समरसता बनाए रखने के दृष्टिकोण से झारखंड की स्थिति कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है । मुसलमानों की निरंतर बढ़ती संख्या के अतिरिक्त, जो संयोगवश दोनों राज्यों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, ईसाइयों की बढ़ती संख्या और सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव की चुनौती भी है । फिर झारखंड के समक्ष मतांतरण की स्थायी चुनौती तो है ही । इन चुनौतियों को ठीक से समझने के लिए झारखंड के बदलते जनसांख्यिकीय स्वरूप को समझना हमारे लिए उपयोगी होगा ।
सारिणी 1 के आँकड़ों से स्पष्ट है कि भारतीय धर्मावलंबी अर्थात हिन्दू व अन्य ( वनवासी, बौद्ध, जैन, सिख आदि ) वर्ग का अनुपात 1951 से अनवरत घटा है । दूसरी ओर, हिन्दू व अन्य वर्ग की कीमत पर मुसलमानों और ईसाइयों का अनुपात बढ़ा है । वर्ष 1991 और 2001 के बीच हिन्दू व अन्य का अनुपात 2.01 प्रतिशत अंक से घटा, जबकि वर्ष 2001 से 2011 के बीच 0.93 प्रतिशत अंक से ही घटा । इसका अर्थ यह हुआ कि जहाँ पहले दशक में हिन्दू व अन्य का अनुपात बड़ी तेजी से घटा, वहीं दूसरे दशक में अपेक्षाकृत धीमी गति से घटा । फिर भी यह स्थिति कहीं से भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती, क्योंकि अभी भी हिन्दू व अन्य का अनुपात घट ही रहा है, भले थोड़ी धीमी गति से । इस प्रकार स्पष्ट है कि 1951 से 2011 के बीच जहाँ हिन्दू व अन्य वर्ग 87.79 प्रतिशत से घटकर 81.17 प्रतिशत पर आ गया, वहीं मुसलमान 8.09 से बढ़कर 14.53 प्रतिशत पर पहुँच गए । यह स्थिति समाज, राज्य तथा राष्ट्र के लिए अत्यंत चिंताजनक है ।
सारिणी 1 : विभिन्न सम्प्रदाय ( प्रतिशत में ), 1951-2011
1951 | 1961 | 1971 | 1981 | 1991 | 2001 | 2011 | |
हिन्दू व अन्य | 87.79 | 86.45 | 85.30 | 84.75 | 84.10 | 82.09 | 81.17 |
मुसलमान | 8.09 | 9.38 | 10.35 | 11.26 | 12.18 | 13.85 | 14.53 |
ईसाई | 4.12 | 4.17 | 4.35 | 3.99 | 3.72 | 4.06 | 4.30 |
स्रोत : बजाज ( 2015 )
यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि जिसे हम ‘ हिन्दू व अन्य वर्ग ’ कहते हैं, उसमें कितने उपसंप्रदाय आते हैं । इस वर्ग में हिन्दू, वनवासी धर्मावलंबी, बौद्ध, सिख, जैन आदि उपसंप्रदाय आते हैं । परंतु संख्या की दृष्टि से हिन्दू तथा वनवासी समाज ही महत्वपूर्ण हैं । जहाँ 2001 में हिन्दू और वनवासी समाज क्रमशः 68.5 प्रतिशत तथा 13.04 प्रतिशत थे, वहीं 2011 में घटकर 67.83 प्रतिशत तथा 12.52 प्रतिशत पर आ गए । इस प्रकार हिन्दू और वनवासी दोनों समाजों का अनुपात निरंतर गिरता रहा है ।
चूँकि संख्या की दृष्टि से झारखंड में मुसलमान दूसरा सबसे बड़ा वर्ग है, इसलिए पहले इसी की विस्तृत क्षेत्रवार चर्चा की जा रही है । सुविधा के लिए पूरे झारखंड को पाँच क्षेत्रों में बाँटा गया है — पलामू, हजारीबाग-धनबाद, संथाल परगना, राँची और सिंहभूम । सारिणी 2 में दिए आँकड़ों के अनुसार, पलामू क्षेत्र में 1951 में मुसलमानों का प्रतिशत था 9.88, जो 2011 में बढ़कर हो गया 12.6 प्रतिशत । पलामू से भी तेज गति से मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ा हजारीबाग-धनबाद क्षेत्र में । पलामू और हजारीबाग से भी अधिक गति से मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ा राँची और सिंहभूम क्षेत्रों में, जहाँ मुसलमानों का अनुपात लगभग दुगुना हो गया । परंतु संथाल परगना क्षेत्र की स्थिति तो चौंकानेवाली है, क्योंकि यहाँ मुसलमानों का अनुपात लगभग ढाई गुना बढ़ा है । यह अनुपात मात्र 9.44 प्रतिशत से बढ़कर 22.73 प्रतिशत पर पहुँच गया है । अब इस क्षेत्र में मुसलमानों का अनुपात लगभग एक चौथाई होने को है । इस प्रकार छह दशक पूर्व इस क्षेत्र में जहाँ दस में एक से भी कम मुसलमान था, वहीं अब दस में ढाई मुसलमान हैं । वैसे इस सारिणी में देखने वाली बात यह है कि निरपवाद रूप से सभी क्षेत्रों में मुसलमानों के प्रतिशत में बढ़ोतरी ही हुई है । संथाल परगना के विषय में बजाज बताते हैं कि इस क्षेत्र में राज्य के सर्वाधिक अर्थात एक-तिहाई मुसलमान निवास करते हैं । पिछले छह दशकों में इस क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 2.19 लाख से बढ़कर 15.84 लाख पर पहुँच गई है । अर्थात साठ वर्षों में 7.3 गुनी बढ़ोतरी । जबकि भारतीय धर्मावलंबियों में मात्र ढाई गुनी बढ़ोतरी हुई ।
सारिणी 2 : झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में मुसलमान ( प्रतिशत में ), 1951-2011
पलामू | हजारीबाग-धनबाद | संथाल परगना | राँची | सिंहभूम | |
1951 | 9.88 | 11.03 | 9.44 | 5.32 | 3.27 |
1961 | 9.69 | 11.41 | 13.77 | 5.74 | 3.75 |
1971 | 10.49 | 12.53 | 14.62 | 7.27 | 3.95 |
1981 | 11.13 | 13.04 | 16.44 | 7.78 | 4.56 |
1991 | 11.49 | 13.71 | 18.25 | 8.35 | 5.10 |
2001 | 12.51 | 15.00 | 20.59 | 10.72 | 6.32 |
2011 | 12.60 | 15.61 | 22.73 | 10.58 | 6.29 |
स्रोत : बजाज ( 2015 )
क्षेत्रों से तो मौटे तौर पर ही हमें मुसलमानों के अनुपात की जानकारी मिलती है । इसलिए यदि जिले को ईकाई मानकर देखें, तो हमें और भी सटीक जानकारी मिलेगी । सारिणी 3 में दिए गए जिलों के आँकड़ों पर ध्यान देने से पता चलता है कि पाकुड़ जिले में मुसलमान सर्वाधिक अर्थात 35.87 प्रतिशत हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि पाकुड़ में एक तिहाई से अधिक मुसलमान हैं । लगभग ऐसी ही स्थिति साहिबगंज ( 34.61% ) की भी है । इन दो जिलों के बाद क्रमशः गोड्डा, जामताड़ा, गिरिडीह, लोहरदग्गा और देवघर हैं । इस प्रकार झारखंड के 24 जिलों में से 7 जिले ऐसे हैं, जिनमें मुसलमानों का अनुपात 20 प्रतिशत से अधिक है । इन जिलों के बाद 9 जिलों में मुसलमानों का अनुपात 10 प्रतिशत से अधिक है । राज्य के शेष आठ जिलों में मुसलमानों का अनुपात 10 प्रतिशत से कम है । यदि समग्रत: देखा जाए तो राज्य के 24 जिलों में से 21 में मुसलमानों की प्रभावकारी उपस्थिति है, जबकि मात्र तीन जिलों — पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा और खूँटी में मुसलमानों का अनुपात नगण्य कहा जा सकता है ।
……..शेष अगले भाग में। ….