जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में खुलेआम ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाहद्’, ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी-जंग रहेगी’, ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’, ‘कश्मीर की आजादी तक, केरल की आजादी तक जंग रहेगी-रंग रहेगी’- जैसे नारे खुलेआम लगाए गए। इन नारों को लगाने वाले छात्रों पर जब दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया और जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया तो बहुत सारे राजनेता से लेकर पत्रकार तक उनके समर्थन में खड़े हो गए।
देशद्रोह के आरोपियों का समर्थन करते हुए एनडीटीवी के रवीश कुमार ने तो अपने न्यूज चैनल का स्क्रीन ब्लैंक छोड़कर यह संदेश तक देने की कोशिश की कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है इसलिए देश में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। सवाल उठता है कि क्या वास्तव में देश के नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न हुआ है या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश करने वाले कुछ लोगों पर कार्रवाई हुई है।
लोगों के लिए यह जानना जरूरी है कि वास्तव में हमारे संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहता क्या है और क्या वह देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी बातों को अभिव्यक्त करने की छूट देता है।
आइए जानते हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर हमारा संविधान क्या कहता है:
‘हमारा संविधान’ में संविधान विशेषज्ञ सुभाष काश्यप लिखते हैं, “संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों को विशिष्ट रूप से छह बुनियादी स्वतंत्रताओं अर्थात् भाषण और अभिव्यक्ति, बिना हथियारों के शांतिपूर्वक सम्मेलन, संगम बनाने, भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र आने-जाने, भारत के किसी भी भाग में निवास करने, बस जाने और किसी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। ये स्वतंत्रताएं नागरिक की हैसियत में अंतर्निहित नैसर्गिक अधिकार मानी गई है।”
लेकिन संविधान हमें इन छह स्वतंत्रताओं को देने के साथ कुछ प्रतिबंध भी आरोपित करता है, जिसकी अकसर चर्चा नहीं किया जाता। हमारी स्वतंत्रता के साथ संविधान ने कुछ जिम्मेदारियां तय की हैं ताकि देश हित अर्थात् कोई भी व्यक्ति या समूह स्वयं की स्वतंत्रता की दलील देते हुए राष्ट्र-राज्य की संप्रभूता को खतरे में न डाल सके।
सुभाष काश्यप के अनुसार, “राज्य की कार्रवाई के विरुद्ध छह स्वतंत्रताओं के संरक्षण का अधिकार सभी नागरिकों को सुलभ है, किंतु यह कोई आत्यांतिक या असीमित अधिकार नहीं है, क्योंकि जैसा कि न्यायमूर्ति दास ने कहा है, ‘ बेहतर होगा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सामाजिक हित अन्य बृहत्तर सामाजिक हितों के अधीन हो।”(ए.के.गोपालन ब नाम मद्रास राज्य, ए आई आर 1950 एस सी 27) ।
काश्यप लिखते हैं- “अत: अनुच्छेद 19 (2) के खंड (2) से (6) तक राज्य को भारत की संप्रभुता तथा अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के लिए प्रोत्साहन के संबंध में उचित कानून बनाकर इस अधिकार के प्रयोग पर ‘युक्तियुक्त’ प्रतिबंध आरोपित करने का अधिकार देते हैं।”
यदि आप जेएनयू मामले को देखें तो पाएंगे कि जेएनयू के अंदर राज्य की सुरक्षा, न्यायालय की अवमानना, मानहानि, अपराध के लिए प्रोत्साहन और भारत की संप्रभुता तथा अखंडता पर साफ तौर पर हमला परिलक्षित होता है। आइए इसे अदालत के पूर्व के कुछ निर्णयों से समझते हैं:
राज्य को नष्ट-भ्रष्ट करने की कोशिश
“ऐसे प्रत्येक भाषण को, जिसमें राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर देने की प्रवृत्ति को, दंडनीय बनाया जा सकता है।”( संतोष सिंह बनाम दिल्ली प्रशासन, ए.आई.आर. 1973 एस.सी 1091)। यहां आप जेएनयू में लगे नारे- ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’ आदि को राज्य को नष्ट-भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति का भाषण कह सकते हैं।
देश के संवैधानिक पदों एवं सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना
संविधान के अनुच्छेद 129 तथा 215 क्रमश: उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को उनकी अवमानना किए जाने के लिए दंड देने का अधिकार देते हैं। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 129 के अधीन अवमानना की विधि को अनुच्छेद 19(2) के अधीन युक्तियुक्त ठहराया है। ( सी.के.दफ्तरी बनाम ओ.पी.गुप्ता ए.आई.आर 1971 एस.सी 1132)
सुभाष कश्यप लिखते हैं- “ई.एम.एस. नंबूद्रीपाद बनाम टी.एन.नांबियार ( ए.आई.आर 1970 एस.सी 2015) के मामले में न्यायालय ने टिप्पणी की कि भाषण की स्वतंत्रता हमेशा अभिभावी होगी, सिवाय उस स्थिति के जहां न्यायालय की प्रत्यक्ष, विद्वेषपूर्ण या वास्तव में अवमानना की गई हो।”
जेएनयू के छात्रों ने ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।’ का नारा देकर साफ तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की है, क्योंकि अफजल गुरु की हत्या किसी ने नहीं की, बल्कि उसे फांसी की सजा देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनाई थी। उसे अदालत में खुद को निर्दोष साबित करने के लिए 8 से 9 साल का वक्त दिया गया था और इतने लंबे ट्रायल के बाद निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने उसे दोषी पाया था और अंत में देश के राष्ट्रपति ने भी उसे क्षमा दान देने से इनकार कर दिया था। ऐसे में 9 फरवरी 2016 की रात जेएनूय के साबरमती ढाबे पर अफजल गुरु की बरसी मनाने वाले और उसमें ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’- का नारा लगाने वालों ने न केवल सुप्रीम कोर्ट, बल्कि देश की पूरी कानूनी व संवैधानिक प्रक्रिया और देश के राष्ट्रपति तक को उसका कातिल कहा, जो साफ तौर पर देश के कानून, संविधान व संवैधानिक पदों के प्रति उन सबकी अवमानना दर्शाता है।
अपराध के लिए प्रोत्साहन:
सुभाष काश्यप के मुताबिक, “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का यह आधार भी 1951 में जोड़ा गया था। उच्चतम न्यायालय का मत है कि हत्या या अन्य हिंसक अपराधों के लिए प्रोत्साहित करने से आमतौर पर राज्य की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। अत: इस आधार पर लगाया गया कोई प्रतिबंध अनुच्छेद 19(2) के अधीन विधिमान्य होगा।” (बिहार राज्य बनाम शैलबाला देवी ए.आई.आर. 1952 एस.सी.329)
आप यदि जेएनयू में लगे नारों को देखें तो वहां साफ तौर पर ‘जंग चलेगी- जंग चलेगी’ का नारा वहां उपस्थित एवं कश्मीर, केरल आदि के लोगों को राज्य के प्रति बगावत व अपराध के लिए उकसाने का कार्य कर रही थी।
भारत की संप्रभुता तथा अखंडता पर हमला
सुभाष काश्यप के अनुसार, “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने का यह अधिकार 1963 में 16 वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था ताकि कोई भी व्यक्ति भारत की अखंडता या संप्रभुता को चुनौती न दे सके या भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग के अध्यर्पण का प्रचार न कर सके।”
जेएनयू में ‘कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी’, ‘केरल की आजादी तक जंग रहेगी’ और इसके कुछ दिनों बाद ही जेएनयू के समर्थन में बंगाल के यादवपुर विश्वविद्यालय में’हमें चाहिए मणिपुर की आजादी’- जैसे नारों में साफ तौर पर भारत की संप्रभुता और अखंडता पर हमले की ध्वनि सुनी जा सकती है।
नोट: इस पूरे लेख में संवैधानिक अनुच्छेद, अदातली निर्णय व उसकी व्याख्या संविधान विशेषज्ञ सुभाष काश्यप की पुस्तक ‘हमारा संविधान'(1995) , प्रकाशक- नेशनल बुक ट्रस्ट से लिया गया है।