गायत्री दीक्षित। वाराणसी में सनातन संस्कृति संस्था के समाजसेवी ब्रजेश सिंह एवं संतोष सिंह द्वारा आयोजित सेमिनार को सम्बोधित करते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की राष्ट्रवादी छात्रा गायत्री दीक्षित ने जेएनयू में चल रही राष्ट्रविरोधी षड्यंत्रकारी हरकतों के बारे में लोगों को सचेत किया। उन्होंने 2011 से लेकर अबतक आयोजित सभी राष्ट्रद्रोही तत्वों का नाम ले लेकर सिलसिलेवार ढंग से उनका पर्दाफाश करते हुए कहा कि कथित बुद्धिजीवियों और दलित विचारकों ने वामपंथ प्रायोजित भारत विखण्डन की नीति अपना रखी है।
महिषासुर शहादत दिवस आदि के नाम पर ईसाई वामपंथी दलों ने हिंदुत्ववादी एवं देशभक्त छात्रों का जीना हराम कर दिया है। जो संस्कृत एवं संस्कृति की बात करते हैं उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है तथा उन्हें बदनाम करने की भरपूर कोशिश की जाती है जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन भी पक्षपात की नीति अपनाता आ रहा है। जो लोग हिन्दू धर्म के विषय में गहराई से जानते हैं वे लोग भी तटस्थ भाव अपनाकर मौन साध लेते हैं। ऐसे में साधारण हिन्दू भ्रमित हो जाते हैं, उन्हें मार्गदर्शन नहीं मिलता अतः शिक्षक और धर्मगुरु वर्ग को आगे आकर अपने भाषण और लेखों से देश की सहायता करनी चाहिए।
मौके पर उपस्थित जेएनयू के ही एक अन्य प्रखर छात्र नेता अम्बाशंकर वाजपेयी जी ने कहा कि भारत के मूल धर्म, विचार और संस्कृति को शोषणकारी, भेदभाव युक्त तथा घिसी पिटी बता कर भोलेभाले युवाओं में राष्ट्र विद्वेषण और हिन्दू विरोध की भावना भरी जा रही है। ज्ञात हो कि अम्बा शंकर वाजपेयी वही छात्र नेता हैं, जिनके दल की बदौलत कन्हैया कुमार आदि का वास्तविक चेहरा सामने आया, वो हिरासत में लिया गया और देश इनके षड्यंत्र से अवगत हुआ।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर कपिल कुमार ने सभा को सम्बोधित करते हुए यह बताया कि व्यापक स्तर पर शिक्षा के पाठ्यक्रम को जानबूझकर विक्षेपित किया गया और उसमें हिन्दू विरोधी बातें छद्मभावों के साथ डाली गयी हैं। इतिहासकारों के विचारों में प्रदूषण व्याप्त हो गया है। लोग शोध की प्रवृत्ति छोड़कर केवल धन कमाने में लगे हैं और अपने ही विषय में विनाशकारी नीतियों के शिकार हो रहे हैं।
बौद्धिक विकास सम्पदा सम्मान (इंटेलेक्चुवल प्रॉपर्टी राइट्स अवॉर्ड) से सम्मानित डॉ रजनीकांत ने शिल्पकारों के जीवन स्तर को सुधारने पर जोर देते हुए कहा कि पूर्वकाल में भारत में हर व्यक्ति अपने रोजगार का निश्चित और सम्मानित अधिकार प्राप्त करता था। बाद में अंग्रेजों और उनके द्वारा परोक्ष नियंत्रित सरकारों ने भारत ने कौशल, कला, हस्तशिल्प और स्वारोजगार की मानो हत्या सी कर दी है। गरीब बुनकरों के लिए जो योजनाओं की बात सरकार करती हैं, उनमें से अधिकांश लाभ केवल धनी और गैर अधिकृत लोग ही ले रहे हैं जिस भ्रष्टाचार में बहुत बड़ा वर्ग मुसलमानों का है।
प्रयागराज से पहुंचे हुए देश के जानेमाने चिकित्सक एवं सामाजिक राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ त्रिभुवन सिंह ने कहा कि आर्य और द्रविड़ की भावना विदेशियों ने बड़े ही सुनियोजित षड्यन्त्र के तहत भारत में थोपी है। वास्तव में जब हम मुसलमान, ईसाई, यहूदी की बात भारत में करते हैं तो इनके उद्भव, विचार और प्रसार का एक स्पष्ट विवेचन मन में बैठता है लेकिन यदि हम हिंदुओं की बात करें तो भारत के अलावा, बाहर से इनके आने का कोई प्रमाण नहीं मिलता अपितु यहीं से बाहर जाने के असंख्य प्रमाण उपलब्ध होते हैं। द्रविड़ शब्द, जो एक भौगोलिक पहचान मात्र है, उसे नस्लीय पहचान बना कर प्रस्तुत किया गया।
इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली में पत्रकारिता एवं जनसम्पर्क विभाग के प्रोफेसर डॉ चन्द्रकांत प्रसाद सिंह ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि समस्या लोगों के जीवन में नहीं, लोगों के मन में है। पहले भौतिक सुखविलासिता की सामग्री कम अवश्य थी, लेकिन मानसिक रूप से हम अपने स्वामी स्वयं थे। परंतु हमें मानसिक रूप से गुलाम बना लिया गया है, और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हमें इसका पता ही नहीं है। पाश्चात्य अंधानुकरण की होड़ में हम जड़ों को काट कर पत्तों को सींच रहे हैं।
कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित प्रवक्ता में जाने माने हिन्दू धर्मगुरु एवं आर्यावर्त सनातन वाहिनी “धर्मराज” के राष्ट्रीय महानिदेशक महामहिम श्रीभागवतानंद गुरु (Shri Bhagavatananda Guru) भी उपस्थित रहे। उन्होंने जीवन में आयाम जगत के वैज्ञानिक रहस्य, संस्कारों की प्रधानता, राष्ट्र और धर्म की परिभाषा और विश्व उत्थान की बातों पर अपना आशीर्वचन दिया। कार्यक्रम में प्रवक्ता समालोचन और मंच संचालन के प्रभार के लिए इंडियन एक्सप्रेस तथा जनसत्ता के पूर्व सम्पादक रह चुके सुमंत भट्टाचार्य जी ने किया।
साभार: श्री भगवतानन्द गुरु के फेसबुक वाल से
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