
Movie Review : ब्रम्हास्त्र से ‘प्रेमास्त्र’ बनने की गति को प्राप्त हुई जौहर की फिल्म
विपुल रेगे। धर्मा प्रोडक्शन की ‘ब्रम्हास्त्र : शिवा पार्ट वन’ पहले दिन ही भरभराकर गिर पड़ी। फिल्म कंटेंट से इतनी गरीब है कि इसके बहिष्कार के लिए लोगों को मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं थी। फिल्म देखने के बाद प्राचीन भारतीय संस्कृति के बारे में गर्वीली अनुभूति नहीं होती। प्राचीन अस्त्रों की इस कथा पर बॉलीवुडिया प्रेम इस कदर हावी हुआ कि ये ब्रम्हास्त्र से ‘प्रेमास्त्र’ बनने की गति को प्राप्त हुई है। ब्रम्हास्त्र के बाद करण जौहर और धर्मा प्रोडक्शन दर्शकों के बीच भरोसेमंद नाम नहीं रह गए है। फिल्म की लागत वसूल नहीं होगी। जौहर इसे ओटीटी और टीवी पर दिखा दे, तब भी ब्रम्हास्त्र का अभिशाप वरदान नहीं बनने वाला है।
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आशंका सत्य सिद्ध हुई। निर्देशक अयान मुखर्जी की फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र : शिवा पार्ट वन’ प्रदर्शन के पहले दिन अधिक दर्शक नहीं बटोर सकी और न ही प्रशंसा पा सकी। इस बार जौहर एन्ड कंपनी ने दर्शकों को रिझाने के जो सैकड़ों प्रयास किये थे, वे नाकाम होते चले गए । पेशेवर यूट्यूबर्स विशेष शो के दिन से ही प्रायोजित पब्लिक ओपिनियन दिखाने में लगे हुए है किन्तु परिणाम शून्य ही प्राप्त हो रहा है।
फिल्म की शुरुआत शिवा नामक कैरेक्टर से होती है। जूनून नामक एक महिला ब्रम्हास्त्र प्राप्त करना चाहती है। ब्रम्हास्त्र के तीन टुकड़े विभिन्न स्थानों पर छुपा दिए गए हैं। जूनून अस्त्रों के रक्षकों को खोजकर समाप्त कर देना चाहती है। शिवा को आग नहीं जलाती है। वह इस रहस्य को खोजना चाहता है। इसी खोज में वह ईशा से मिलता है। ईशा से उसे प्रेम हो जाता है। इस बीच जूनून अस्त्रों के रक्षकों को मारती जा रही है।
शिवा का गुरु प्रयास कर रहा है कि शिवा को उसके भीतर छुपी शक्ति के बारे में पता चल जाए। इस कथा में असीम संभावनाएं छुपी हुई थी, जिन्हे निर्माता और निर्देशक ने निर्ममता से मार दिया। उन्होंने ले देकर एक बॉलीवुड फिल्म का निर्माण कर दिया। आखिरकार वे लोग यही काम अच्छा कर सकते हैं। सो करण जौहर और अयान मुखर्जी ने मिलकर एक ऐसी फिल्म बनाई, जो न दर्शक को समझ आई और न फिल्म वितरकों को।
अयान पर हॉलीवुड की फिल्मों का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। एवेंजर्स की फिल्मों से प्रेरणा लेकर उन्होंने प्राचीन भारतीय संस्कृति को दिखाने वाली कथा चुन ली। जब आप प्राचीन भारत की कहानी लेकर आते हैं और उस पर ट्रीटमेंट हॉलीवुड वाला देते हैं तो आपकी फिल्म मेकिंग की बुद्धिमता की रेंज पता चल जाती है। जौहर ने स्पेशल इफेक्ट्स के लिए फिल्म में अलग से बजट रखा था।
परदे पर वीएफएक्स देखकर सिर पीटने का मन होता है । नब्बे प्रतिशत वीएफएक्स रणबीर के हाथ से निकलने वाली गैसनुमा आग के लिए खर्च कर दिए गए। रणबीर के हाथ से जब आग निकलती है तो लगता है जौहर ने अपने गैस चूल्हे का बर्नर खोल दिया है। नीली आभा तो गैस के बर्नर से ही निकलती है। अयान मुखर्जी मूलतः प्रेम कथाएं बनाते हैं इसलिए ब्रम्हास्त्र पर भी प्रेम प्रभाव दिखाई दिया है।
प्रेम प्रभाव इतना अधिक है कि फिल्म एक्शन से अधिक प्रेम कहानी लगने लगती है। फिल्म का मिजाज निर्देशक को इस बात की इजाज़त नहीं देता था कि प्रेम पक्ष को अधिक हावी दिखाया जाए। प्रेम दिखाने के चक्कर में निर्देशक ने आलिया भट्ट को बहुत अधिक फुटेज दिया है। आलिया के किरदार को रबर की भांति लंबा खींचने की आवश्यकता ही नहीं थी। रणबीर शुरु से लेकर आखिर तक असहज दिखाई देते हैं।
रणबीर मूलतः प्रेमी के किरदार निभाते आए हैं। एक्शन हीरो वाली उनकी इमेज नहीं है। एक भी दृश्य ऐसा नहीं है, जिसमे रणबीर ने डूबकर अभिनय किया हो। उनका और आलिया का प्रेम रसायन बड़ा ही निर्जीव दिखाई दिया है। इसके कारण उन पर फिल्माए जाने वाले गीत फिल्म की लम्बाई बढ़ाते हुए महसूस हुए हैं। ‘ब्रम्हास्त्र : शिवा पार्ट वन’ में ऐसे कोई लम्हे नहीं आते, जब दर्शक के रोंगटे खड़े हो जाए।
फिल्म में ‘वॉव मूमेंट’ एक भी नहीं है। पृथ्वी पर अस्त्र कैसे आए, उनके रक्षकों में ऐसी क्या शक्तियां थी, जो वे उन्हें धारण कर सके, ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जाती है। ऐसे में फिल्म के तर्क आधे-अधूरे प्रतीत होते हैं। फिल्म में शाहरुख़ खान का कैमियो भी है। इसके बारे में बस इतना कहूंगा कि करण जौहर ने शाहरुख़ को फिर से ‘राहुल’ बनाकर पेश कर दिया है।
दर्शक उदासीनता से फिल्म देखता है और ठंडी प्रतिक्रिया देते हुए घर चला जाता है। यही कथा यदि किसी दक्षिण के निर्देशक को मिलती, तो दर्शक की आँखों के सामने एक खिड़की खुलती। उस खिड़की से होकर दर्शक उस प्राचीन काल में चला जाता, जब अस्त्रों-शस्त्रों के रक्षक पृथ्वी पर उपस्थित थे। ये खिड़की अयान मुखर्जी नहीं खोल सकते। उसके लिए मन में निष्ठा और विजन में भारतीयता होनी चाहिए।
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