लुटियन पत्रकार सुप्रीम कोर्ट का एजेंडा सेट करने लगे हैं! सोनिया गांधी के बेहद खास शेखर गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों की प्रेस वार्ता के आयोजक बनते हैं, और एलिट वर्ग का खासम-खास करण थापर इनके ‘माउथ-पीस’! लुटियन दिल्ली के हार्बर्ड क्लब ऑफ इंडिया में लुटियन पत्रकार करण थापर को न्यायाधीश चेलामेश्वर ने साक्षात्कार देने से पहले जरा भी नहीं सोचा कि वह सुप्रीम कोर्ट की गरिमा से खिलवाड़ करने जा रहे हैं!
ताज्जुब देखिए कि सुप्रीम कोर्ट की गरिमा भूलने वाले मी-लॉर्ड को लोकतंत्र की गरिमा की याद आ रही है! जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस कुरियन जोसेफ कह रहे हैं- ‘सरकार और न्यायपालिका के बीच जरूरत से अधिक मित्रता लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।’ अच्छा है कि इन दो न्यायधीशों को अपने तीन दशक के न्यायिक करियर में यह ‘इलहाम’ अब हुआ है! लेकिन माननीय, ‘पत्रकार और सुप्रीम कोर्ट के पदेन न्यायाधीश के बीच मित्रता उस न्याय के लिए ही खतरनाक है, जो किसी भी लोकतंत्र का मूल आधार है!’ पद पर रहते हुए न्यायधीश किसी पत्रकार को साक्षात्कार नहीं दे सकते, प्रेस वार्ता नहीं कर सकते, लेकिन हद देखिए, इन माननीय ने न्याय के तय मानकों का ही चोला उतार फेंका और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को तार-तार कर दिया!
लुटियन पत्रकारों को सत्ता, जमीन और हथियार की दलाली करते हुए तो अनेकों बार देश की जनता ने देखा है, लेकिन न्याय के सबसे बड़े मंदिर सुप्रीम कोर्ट में इन लुटियन मीडिया की सेंध देश पहली बार देख रहा है! क्या यह सच नहीं है कि भारत की न्याय व्यवस्था को कुछ पत्रकारों, कांग्रेस के सांसद वकीलों और न्यायधीशों ने केवल इसलिए बंधक बनाने का प्रयास किया है कि उनकी पसंद की कांग्रेस पार्टी को देश की आम जनता ने नकार दिया है?
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के बाद वरिष्ठता में दूसरे नंबर पर आने वाले जस्टिस चेलमेश्वर ने मौजूदा मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को खत में लिखा है कि ‘सरकार और न्यायपालिका के बीच जरूरत से अधिक मित्रता लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।’ और हद देखिए कि न केवल यह पत्र लुटियन मीडिया को जारी किया गया, बल्कि एक बड़े लुटियन अंग्रेजी-दां पत्रकार को साक्षात्कार भी दिया गया! जनसत्ता अखबार के अनुसार, जस्टिस चेलामेश्वर ने यह तक कहा कि ‘भविष्य में जस्टिस रंजन गोगोई यदि मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाए गए तो समझ लेना कि सारे शक सही हैं।’ शक? क्या उनका इशारा यह है कि भारत की मोदी सरकार और वर्तमान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बीच सांठ-गांठ है?
मोदी सरकार और जस्टिस दीपक मिश्रा के बीच सांठ-गांठ का तो पता नहीं, लेकिन जस्टिस चेलामेश्वर और जस्टिस कुरियन बेचैन क्यों हैं? क्या इसलिए कि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की कोर्ट राम मंदिर पर सुनवाई कर रही है? और जिसे रोकने के प्रयास में कांग्रेस पार्टी ने अपने सांसद वकील कपिल सिब्बल को लगा रखा है? कपिल सिब्बल ने तो सुप्रीम कोर्ट में साफ कहा था कि राम मंदिर की सुनवाई 2019 के चुनाव के बाद की जाए!
अब जस्टिस चेलामेश्वर और जस्टिस कुरियन ने सरकार पर दबाव बनाने और खुद को निष्पक्ष दिखाने के लिए यह कह रहे हैं कि वह रिटायरमेंट के बाद किसी भी तरह का सरकारी पद नहीं लेंगे! क्या उन्हें यह मुद्दा 10 साल के यूपीए सरकार के कार्यकाल में नहीं उठाना चाहिए था? टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 26 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया। तब से लेकर अब तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद पर रहे न्यायधीशों में से 44 ऐसे हैं, जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से ऑफर किए गए पद को स्वीकार किया। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के जजों में 161 जज ऐसे हैं, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद सरकारी या गैर सरकारी संस्थानों में पद लिया है। मिंट अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, 12 फरवरी 2016 तक सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने वाले 100 जजों में से 70 जजों ने रिटायरमेंट के बाद पद लिया। मिंट ने ‘लीगल पॉलिसी’ के थिंक टैंक ‘विधि सेंटर’ की स्टडी के हवाले से कहा है कि बड़ी संख्या में सुप्रीम कोर्ट के जज केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न पदों नियुक्त किए जाते रहे हैं।
कांग्रेस की सरकार के समय इस पर चुप्पी और आज मुखरता, बहुत कुछ सवाल उठाती है माननीय? माननीय न्यायधीश जस्टिस चेलामेश्वर व जस्टिस कुरियन साहब लुटियन पत्रकारों के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को गिराने के लिए देश आपको हमेशा याद रखेगा!
URL: journalists and judiciary collaboration is harmful for justice and democracy
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