सुरेश चिपलूनकर। जेपी नड्डा ने भाजपा और संघ के रिश्तों को लेकर जो बयान दिया है… उससे कई हकीकतें लोगों के सामने आ गयी हैं… बहुत सी पुरानी बातें बाहर आ गयी हैं… ये दो उदाहरण देखिये…
१) २०१४ में जीत के बाद मोहन भागवत जी ने कहा था कि संघ कभी भी व्यक्तिवादी नहीं होता… वह विचारधारा के आधार पर चलता है और चुनावों में जीत किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं मिलती…
२) फिर सरकार का एक वर्ष पूर्ण होने पर २०१५ में दिल्ली के संघ भवन में मोहन भागवत जी ने लगातार तीन दिनों तक मोदी सरकार के सभी मंत्रियों को एक एक करके बुलाया और उनसे एक वर्ष का रिपोर्ट कार्ड माँगा गया… यहाँ तक कि मोदी को भी उनके सामने पेश होकर अपना रिपोर्ट कार्ड देना पड़ा था…
यह आधिकारिक रूप से संघ-भाजपा की “अंतिम बैठक” थी… यानी नौ वर्ष पहले… क्या आज की तारीख में कट्टर संघी ये दावा कर सकते हैं कि आज स्वयं मोदी और उनकी सरकार के मंत्री मोहन भागवत जी के सामने अपनी रिपोर्ट रखेंगे?? अथवा क्या भागवत जी ऐसा कोई कदम उठा सकते हैं?? क्योंकि 2019 में जब संघ ने मोदी को सलाह दी थी कि राम मंदिर के लिए संसद से क़ानून बनाया जाए… तब मोदी ने साफ़ इंकार करते हुए सुप्रीमकोर्ट के निर्णय का इंतजार करने को कहा था…
संघ का सबसे निचला स्वयंसेवक भी अब इस बात को जान गया है कि वह अब केवल वोट बटोरने और भाजपा को सत्ता में बनाए रखने का एक “TOOL” भर रह गया है… संघ के स्वयंसेवक का काम हाँ में हाँ मिलाना भर रह गया है… तथा राज्यसभा में गए अशोक चव्हाण, नवीन जिंदल से लेकर भाजपा में “बाहर से आए हुए 108 कांग्रेसी” उम्मीदवारों के लिए दरी बिछाना, चाय पिलाना तथा चुनाव प्रचार करने जैसे बेइज्जती झेलने का है…
परन्तु संघ स्वयं अपनी इस दुर्गति के लिए जिम्मेदार है… अब संघ के पूर्णकालिक प्रचारक, त्याग, सादा जीवन वगैरा छोड़कर जमीनी सच्चाईयों से काफी हद तक कट चुके हैं… इनके बल पर सत्ता पाकर भाजपा ने इन्हें भी करप्ट कर दिया है… जेबों में दो दो आईफोन… हर समय चौपहिया वाहन की उपलब्धता… निचले दर्जे के सामान्य लोगों के साथ अथवा दलित बस्ती में भोजन करना भी लगभग ख़त्म होने से लेकर दर्जनों मूलभूत चीज़ों के लिए संघ के मध्यम दर्जे के अधिकारी भी “भाजपा के ईमानदार नेताओं” के अहसानों के तले दबे हुए दिखाई देते हैं… शंकर शरण जैसे वरिष्ठ लेखक भी इस विषय को लेकर पिछले पांच साल से काफी कुछ लिखते रहे हैं…
अब जबकि नड्डा ने इस विषय को छेड़ ही दिया है, और संघ से पल्ला झाड़ने वाली भाषा कर दी है, तो संघ के स्वयंसेवकों के मन में खटास उभरना तथा आँखों पर बंधी पट्टी थोड़ी सी हटाकर चारों तरफ देखने की शुरुआत हो चुकी है… तथा मन ही मन वे सोच में पड़ गए हैं कि आखिर वे कर क्या रहे हैं?? किन लोगों के लिए कर रहे हैं?? क्यों कर रहे हैं??
तय है कि इन असुविधाजनक प्रश्नों पर “त्याग, बलिदान, सेवा, हिंदुत्व” वगैरा के बौद्धिक झाड़े जाएंगे,,, परन्तु अन्दर ही अन्दर वो लोग भी जानते हैं कि पिछले दस साल में मोदी ने अब संघ की क्या हैसियत बना दी है…