आज 9 अगस्त है। आज ही के दिन 1942 में महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ को क्रियान्वित किया था। आज राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी जिस कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सांठगांठ कर सत्ता हथियाने की फिराक में है, उस कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों का साथ देकर आंदोलन और देश के साथ गद्दारी की थी। कम्युनिस्ट इसे छुपाते हैं, लेकिन मेरी पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ में पूरे दस्तावेज मौजूद हैं कि किस तरह से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने अंग्रेजों से हाथ मिलाकर देश और आंदोलन को धोखा दिया था।
1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से कहा था, ‘भारत को ईश्वर के हाथों में अथवा अराजकता में छोड़ दो।’ 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने ‘अंग्रेजों से देश छोड़ कर चले जाने’ का प्रस्ताव पारित किया और 8 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में ‘भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ का प्रस्ताव पारित कर दिया। नौ अगस्त को सभी सड़क पर उतर पड़े, लेकिन इसी दिन गांधीजी सहित कांग्रेस कार्यकारिणी के सभी सदस्य बंदी बना लिए गये। इसका फायदा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) ने उठाया और पूरे आंदोलन को नष्ट करने के लिए अंग्रेजों की मदद करने लगे।
सोवियत संघ के हित में अंतरराष्ट्रीय कॉमिन्टर्न ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) को आदेश दिया था कि वह ब्रिटेन की मदद करे और यही कम्युनिस्ट पार्टी कर रही थी। आश्चर्य कि ‘कॉमिन्टर्न’ निर्देशित पंडित नेहरू भी अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव के खिलाफ थे, लेकिन गांधी के दबाव में वह इसके लिए राजी हो गये थे। नेहरू कितने बड़े कम्युनिस्ट थे और किस तरह सोवियत हितैषी अंतरराष्ट्रीय ‘कॉमिन्टर्न’ का हिस्सा थे, इसके लिए आप सभी को ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ को पढ़ना होगा।
Kahani Communisto Ki: Khand 1: 1917 se 1964 tak Vampanth Ka Chaal Charitra aur Chehra Paperback
1942 के आंदोलन के साथ विश्वासघात करते हुए कम्युनिस्टों व अंग्रेजों को मदद पहुंचाने वाले पंडित नेहरू को एक्सपोज करते हुए डॉ राममनोहर लोहिया ने लिखा, “मेरी मान्यता है कि सन् 1942 के कुछ महीनों में श्री नेहरू बीज रूप में ‘सहकारवादी’ थे।…श्री नेहरू आधिपत्य जमानेवाली सरकार (ब्रिटिश सरकार) के साथ सहकार करने के लिए तत्पर थे।…नेहरू हमेशा ब्रिटिश-वामपंथ के दोस्त भी रहे। फासिस्ट विरोधियों और ब्रिटिश वामपंथ से उनकी असाधारण दोस्ती के जरियों की जांच करनी चाहिए।”
उधर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) द्वारा मदद पहुंचाए जाने से खुश ब्रिटिश सरकार ने 1934 से प्रतिबंधित इस पार्टी से 23 जुलाई 1942 को प्रतिबंध हटा लिया, जिसके बाद अगस्त क्रांति में कम्युनिस्ट खुलकर भारतीयों के खिलाफ और ब्रिटेन के पक्ष में उतर गये। अंग्रेजों ने कम्युनिस्ट पार्टी के सारे नेताओं को जेल से आजाद कर दिया और उनकी पत्र-पत्रिकाओं पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। फिर क्या था, कम्युनिस्ट पार्टी अपने मुखपत्र ‘पीपुल्स वार’ के जरिए महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के खिलाफ गालियों की बौछार कर अपने ब्रिटिश मालिक को खुश करने के प्रयास में जुट गये!
‘कहानी कम्युनिस्टों की’ में राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद ब्रिटिश सरकार का वह दस्तावेज मौजूद हैं, जिसमें सरकार के गृह सदस्य मैक्सवेल के साथ आंदोलन को ध्वस्त करने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के महासचिव पी.सी.जोशी लगातार बैठक कर रहे थे। यही नहीं, वह दस्तावेज भी पुस्तक में मौजूद हैं, जिससे पता चलता है कि ब्रिटिश सरकार ने कम्युनिस्ट नेताओं को अपने हित में मदद लाने के लिए मास्को भेजा था।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ समझौता कर भारत छोड़ो आंदोलन को पूरी तरह से विफल बनाने का प्रयास किया। कम्युनिस्ट पार्टी ने इस समझौते के लिए अपने महासचिव पी.सी.जोशी और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव एन.एम.जोशी को कई बार वायसराय काउंसिल के गृह सदस्य मैक्सवेल के पास भेजा। इस बैठक में पी.सी.जोशी ने मैक्सवेल से कहा कि कांग्रेस में नेहरू और मौलाना आजाद जापान विरोधी हैं, इसलिए उन्हें आसानी से अपने साथ मिलाया जा सकता है।
पी.सी जोशी ने तो अंग्रेजों से यह तक कहा कि हम आपके सहयोग से एक सरकार का गठन करेंगे, जिसमें नेहरू जैसे गैर-गांधीवादी नेता हमारी मदद करेंगे! इस नीति को अमल में लाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस में शामिल वामपंथियों को पार्टी के अंदरे विद्रोह करने के लिए उकसाया ताकि भारत छोड़ो आंदोलन पूरी तरह से नष्ट हो सके। पार्टी के आह्वान पर कांग्रेस में शामिल कम्युनिस्टों ने खुलकर इस आंदोलन का विरोध करना शुरु कर दिया, और आंदोलन के खिलाफ उतर आए। अभिलेखागार में 120 पेज का एक दस्तावेज ऐसा है, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन की विफलता में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा अंग्रेजों को किए गये सहयोग की चर्चा खुद कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव पी.सी.जोशी ने किया था।
आज भी टुकड़े-टुकड़े गैंग में हम नेहरू और कम्युनिस्ट विचारधारा, यानी राहुल गांधी और कन्हैया-उमर खालिद-शाहिला राशिद-जिग्नेश मवानी आदि को एक साथ देख सकते हैं! नेहरूवादी कांग्रेस और कम्युनिस्टों के इस गठजोड़ ने हमेशा से भारत से द्रोह किया है!
URL: kahani-communiston-ki-1942-movement-and-communist-party-1
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