NSG में भारत के प्रवेश पर विरोध स्वरुप वीटो पावर का प्रयोग करने वाले चीन को सयुंक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन) में एंट्री दिलाने में जवाहरलाल नेहरू की भूमिका महती रही है। संदीप देव की किताब ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ लोकार्पण के उपलक्ष्य में बोलते हुए सुब्रमनियम स्वामी ने कहा कि “यदि नेहरू चाहते तो भारत सयुंक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य होता! लेकिन चीन हमारा कॉमरेड देश है कह कर नेहरू ने सयुंक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव को लेने से मना कर दिया।” या यों कह लीजिये नेहरू ने सयुंक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता उपहार स्वरुप चीन को थमा दी! ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ किताब में भी यह खुलासा किया गया है कि किस तरह से नेहरू तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर से विनती कर रहे थे कि अमेरिका चीन को UNO की सदस्यता दिलाने में मदद करे, लेकिन आइजनहावर ने नेहरू को दुत्कार दिया और चेताया कि भारत के लिए चीन बड़ा खतरा है। जो 1962 में साबित भी हुआ।
जानिये सयुंक्त राष्ट्र की अवधारणा क्यों बनाई गयी?
प्रथम विश्व युद्ध के बाद विश्व में शांति और भविष्य को युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए राष्ट्र संघ का गठन किया गया। राष्ट्र संघ प्रभावहीन था और उसकी शक्तियां भी सीमित थीं जो विश्व में समन्वय बनाए में नाकाम हुआ जिसके लिए उसका गठन हुआ था परिणामस्वरूप द्वितीय विश्वयुद्ध से सम्पूर्ण मानवता लहू लुहान हुई और हुए भयंकर नरसंहार से विश्व काँप उठा। द्वितीय विश्युद्ध के बाद विजयी देशों ने सयुंक्त राष्ट्र की अवधारणा को महसूस करते हुए सयुंक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन) का गठन किया जिसमें चालीस देशों ने इस संविधा पर इस आशय से दस्तखत किये किये कि भविष्य में युद्धों को रोका जा सके, मानव कल्याण में जीवन स्तर को बेहतर बनाया जाये और बीमारियों आदि की रोकथाम के लिए नयी योजनायें बनाई जा सके।
24 अक्टूबर 1945 को सयुंक्त राष्ट्र की स्थापना की गयी जिसमें 5 स्थायी सदस्यों ने वीटो पावर के साथ हस्ताक्षर किये। ये देश थे रूस, अमेरिका और इंग्लॅण्ड और फ्रांस और एक राष्ट्र एशिया से लेना मंजूर किया! भारत उस समय गुलाम देश था इसलिए भारत के नाम पर विचार नहीं किया गया और चीन को इसका सदस्य बना लिया गया किन्तु तत्कालीन चीन में गृह युद्ध जैसे हालात थे! साम्यवाद धीरे- धीरे मजबूत होता जा रहा था और राष्ट्रीय सरकार बाहरी मदद की आस लगाए अमेरिका का मुंह देख रही थी लेकिन अमेरिका जानता था कि इन हालातों में उनकी मदद से भी साम्यवादियों को नहीं रोका जा सकता है इसलिए उन्होंने चीन की मदद से हाथ पीछे खींच लिए! चीन में उस समय के भारतीय राजनयिक पणिक्कर ने बताया था कि “चीन में चल रही राजनैतिक हलचल में एक यूरोपीय देश साम्यवादियों की मदद कर रहा था।” यूरोपीय देश की मदद और चीन की राष्ट्रीय सरकार के सेनापतियों के देशद्रोह और असहयोग के कारण चीन की राष्ट्रीय सरकार का पतन हुआ और एक अकटूबर 1949 को माओत्सेतुंग के नेतृत्व में नयी साम्यवादी सरकार का गठन हुआ।
चीन की इस राजनैतिक उठक पटक के बीच सयुंक्त राष्ट्र ने चीन को सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् से हटा कर भारत को सदस्य बनने का निमंत्रण दिया किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने पत्र लिख सदस्यता लेने से इनकार करते हुए लिखा कि चीन हमारा कॉमरेड देश है इसलिए उसे ही इसका सदस्य रहने दिया जाए!
जवाहरलाल नेहरू की सदस्यता से इनकार करने के कारणों पर से पर्दा उठते हुए स्वामी ने कहा कि “यह सब कुछ रूस के दवाब में किया गया क्योंकि उनके पास नेहरू आदि को ब्लैकमेल करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज थे जिन्हें वह सबके सामने लाकर उनकी गढ़ी छवि को बिगाड़ने की धमकी देते थे।” जवाहरलाल नेहरू की उस भयंकर भूल का परिणाम भारत आज भी भुगत रहा है, कभी NSG में चीन भारत के प्रवेश को लेकर वीटो पावर का गलत उपयोग करता है तो कभी आतंकवादी अजहर मसूद के पक्ष में भारत के खिलाफ खड़ा हो जाता है! जवाहरलाल नेहरू के एक गलत कदम ने भारत को चीन का मोहताज बना दिया उस चीन का जिसको सयुंक्त राष्ट्र की सदस्यता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने थाली में सजा कर दी थी।