ॐ कामाख्याम कामसम्पन्नाम कामेश्वरिम हरप्रियाम ।
कामनाम देहि मे नित्यम कामेश्वरि नमोस्तुते ॥
Sanoj Kumar Pareek।। माता की शक्ति में जो लोग विश्वास करते हैं वह यहां आकर अपने को धन्य मानते हैं। जिन्हें ईश्वरीय सत्ता पर यकीन नहीं है वह भी यहां आकर माता के चरणों में शीश झुका देते हैं और देवी के भक्त बन जाते हैं। यह स्थान है कामरूप जिसे वर्तमान में असम के नाम से जाना जाता है। असम के नीलांचल पर्वत पर समुद्र तल से करीब 800 फीट की ऊंचाई पर यहां देवी का एक मंदिर है जिसे कामख्या देवी मंदिर कहते हैं। देवी के 51 शक्तिपीठों में से यह भी एक है।
कामाख्या शक्तिपीठ जिस स्थान पर स्थित है, उस स्थान को कामरुप भी कहा जाता है। 51 पीठों में कामाख्या पीठ को महापीठ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। इस मंदिर में एक गुफा है। इस गुफा तक जाने का मार्ग बेहद पथरीला है। जिसे नरकासुर पथ कहते है। मंदिर के मध्य भाग में देवी की विशालकाय मूर्ति स्थित है। यहीं पर एक कुंड स्थित है। जिसे सौभाग्य कुण्ड कहा जाता है। कामाख्या देवी शक्ति पीठ के विषय में यह मान्यता है कि यहां देवी को लाल चुनरी या वस्त्र चढाने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब इस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिर गयी। इसी मान्यता के कारण इस स्थान पर देवी की योनी की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है जिसे यहां अम्बुवासी मेले के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।
चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।
अम्बुवासी मेला : 21 जून से 26 जून 2018
तांत्रिक और छुपी हुई शक्तियों की प्राप्ति का महाकुंभ
कामाख्या शक्तिपीठ देवी स्थान होने के साथ साथ तंत्र-मंत्र कि सिद्दियों को प्राप्त करने का महाकुंभ भी है। देवी के रजस्वला होने के दिनों में उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है। इस महाकुंभ में साधु-सन्यासियों का आगमन आम्बुवाची अवधि से एक सप्ताह पूर्व ही शुरु हो जाता है। इस कुम्भ में हठ योगी, अघोरी बाबा और विशेष रुप से नागा बाबा पहुंचते है। साधना सिद्दियों के लिये ये साधु, तांत्रिक पानी में खडे होकर, पानी में बैठकर और कोई एक पैर पर खडा होकर साधना कर रहा होता है।
कामाख्या देवी मन्त्र
कामाख्ये वरदे देवि नीलपर्वतवासिनि ।
त्वं देवि जगतां मातर्योनिमुद्रे नमोऽस्तु ते।।
साभार: Sanoj Kumar Pareek के फेसबुक वाल से:
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