कंगना रनौत की संजय दत्त से मुलाक़ात के बाद उनके प्रशंसक नाराज़ हैं। उनके प्रशंसक सवाल कर रहे हैं कि एक ओर वे ड्रग्स के विरुद्ध अभियान चलाती है तो दूसरी ओर ड्रग्स के जीते-जागते प्रतीक संजय दत्त के साथ मुलाक़ात करती हैं। वैसे तो इस मुलाक़ात में कुछ गलत नहीं है। ये एक औपचारिक मुलाक़ात थी। हालांकि कोरोना काल में ऐसी मुलाकातें कहर ढाती दिखाई दे रही है।
पिछले माह मुंबई में दो बड़े नेताओं की मुलाक़ात कुछ ऐसा रंग लाई कि एक नेताजी अपना राज्य छोड़ केंद्र में राजनीति करने के लिए विवश हो गए। कंगना को जितनी लोकप्रियता ड्रग्स के विरुद्ध लड़ाई में प्राप्त हुई, वह उनकी सारी फिल्मों की लोकप्रियता के कुल जोड़ से बहुत अधिक थी। वे इस युद्ध में एक नायिका बनकर उभरी थी।
हालांकि कंगना को इस बात का अहसास नहीं था। अहसास होता तो वे संजय दत्त से मुलाक़ात नहीं करती। संजय दत्त का ड्रग्स और अपराध का एक इतिहास रहा है। हाल ही में सड़क-2 के प्रमोशन पर ऐसी ख़बरें आई थी कि संजू ने कैंसर की बीमारी की झूठी खबर फैलाई थी, ताकि उनकी फिल्म को दर्शकों की सहानुभूति मिल जाए।
कैंसर की एडवांस स्टेज से दो माह में स्वस्थ होकर निकल आना और तुरंत नई फिल्मों की शूटिंग पर लग जाना दर्शा रहा है कि उनकी बीमारी संदेहास्पद थी। सुशांत की मौत के बाद फिल्म उद्योग दो खेमों में बंट गया। एक खेमे में कंगना रनौत, शेखर कपूर, शेखर सुमन, मुकेश खन्ना जैसे लोग थे और दूसरे खेमे में सलमान खान, संजय दत्त, दीपिका पादुकोण, करण जौहर व अन्य कई लोग थे।
अब कंगना की संजय दत्त से मुलाक़ात उनके प्रशंसकों को नहीं पच रही है। निश्चित ही कंगना के इस मूव से सुशांत के लिए चल रही लड़ाई पर नकारात्मक प्रभाव आएगा। सुशांत की मौत के बाद बॉलीवुड और मीडिया के लिए एक सत्याग्रह शुरु हो चुका है। वहां ऊपर बैठे सितारों और नेताओं को इस सत्याग्रह की कोई खबर नहीं है। ये खबर कंगना को भी नहीं थी।
होती तो वे संजय दत्त से मुलाक़ात का सोचती भी नहीं नहीं। बॉलीवुड और राजनीति इस बात से निश्चिन्त है कि सुशांत केस अब दबा दिया गया है। वे इस बात से भी निश्चिन्त हैं कि भारत के लोगों की स्मरण शक्ति कमज़ोर है। काश कि वे कभी सोशल मीडिया पर घूम कर आए तो उनकी ये निश्चिंतता चिंता में बदल जाएगी। न्याय के लिए युद्ध अब भी जारी है।
न्याय के लिए लड़ने वाले जानते हैं कि कुछ लोगों ने सुशांत की मौत को बेच खाया है लेकिन फिर भी वे लड़ रहे हैं। इस लड़ाई को केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार और बॉलीवुड पूरी तरह अंडररेस्टिमेट कर रहे हैं। वहां ऊपर बैठे प्रभावशाली लोगों और जमीन पर रहने वाले आम लोगों के बीच कोई सीधा संपर्क नहीं होता। ज़मीन की बातें आसमान तक कभी पहुंच ही नहीं पाती।
यही कारण है कि पंद्रह साल से सत्ता में रहा नेता जब पराजित होता है, तो वह उस पराजय का कारण ही नहीं समझ पाता। आप लोगों के गुस्से को शांत कर सकते थे लेकिन नहीं कर सके। बॉलीवुड के पास एक मौका था कि वे लोगों के बीच जाकर बात करे लेकिन वे तो अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध कोर्ट चले जाते हैं।
राजनेता और बॉलीवुड लगातार जनता के सत्याग्रह को नकार रहे हैं। ये अहंकार की पट्टी जिस दिन उतरेगी, वे पाएंगे कि भारत के आम आदमी ने उनका पचास हज़ार करोड़ का साम्राज्य जलाकर राख कर दिया है। महाराष्ट्र की राजनीति को सुशांत की मौत वैसे ही खा जाएगी, जैसे बॉलीवुड को कच्चा चबा रही है।