विपुल रेगे। पांच वर्ष से लगातार फ्लॉप चल रही कंगना रनौत के लिए मुख्य भूमिकाओं के अवसर तेज़ी से ख़त्म होते जा रहे हैं। उनकी आगामी फिल्म ‘इमरजेंसी’ आखिरी उम्मीद है। भारतीय सिनेमा में एक महिला कलाकार की ‘ऑन स्क्रीन आयु’ दस वर्ष से अधिक नहीं होती। कंगना की बयानबाज़ी उनके उतार की गति और तेज़ कर रही है। अपनी ‘इंस्टा स्टोरी’ में उन्होंने कहा है कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के लिए बोलने पर उन्हें आर्थिक नुकसान सहना पड़ा है।
कंगना रनौत की फ़िल्मी यात्रा पर नज़र दौड़ाई जाए तो 2006 से लेकर अब तक उन्होंने लगभग 40 फिल्मों में अभिनय किया है। उनकी पहली फिल्म ‘गैंगस्टर’ थी, जो सफल रही थी। कंगना की चालीस फिल्मों में से छह फिल्मो ने सफलता का मुंह देखा है। गैंगस्टर, वंस अपान टाइम इन मुंबई, तनु वेड्स मनु, क़्वीन, कृष 3, मणिकर्णिका उनकी सफल फिल्मों में आती हैं। मणिकर्णिका को औसत सफलता मिली थी क्योंकि कंगना रनौत ने निर्देशक से विवाद के बाद स्वयं निर्देशक की सीट संभाल ली थी।
उनकी नाव 2014 के बाद से ही संकट में थी। ‘क़्वीन’ (2013) और ‘कृष’ (2014) के बाद उनकी नौ फ़िल्में लाइन से पिट गई। ‘क़्वीन’ से बनी ‘एकल महिला सितारा’ छवि के कारण विज्ञापन मिलते रहे और दाल रोटी चलती रही। आज वे कहती हैं कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व पर बोलने के कारण उनके हाथ से तीस करोड़ के विज्ञापन चले गए। जबकि वास्तविकता ये है कि कंगना की वार्षिक आय लगभग 32 करोड़ प्रतिवर्ष आंकी जाती है। उनकी नेटवर्थ 136.16 करोड़ है। प्रति वर्ष उनकी कुल आय का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा विज्ञापनों से आ रहा है।
जब कंगना ने अपनी छवि बदली तो इससे उन्हें नुकसान नहीं बल्कि लाभ ही हुआ है। सन 2021 में कंगना उत्तरप्रदेश सरकार के ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ की ब्रांड एम्बेसेडर बनीं। क्या ये एक लाभदायक पद नहीं था ? विज्ञापन की कंगना को कभी कमी नहीं रही। सन 2015 में उन्होंने एक फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन की 2 करोड़ की डील ठुकरा दी थी। वास्तविकता ये है कि जब कंगना ने अपनी छवि एक आक्रामक हिंदूवादी अभिनेत्री के रुप में बनाई तो उनकी ब्रांड वेल्यू और बढ़ गई थी। फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार कंगना ने सन 2019 में अच्छा पैसा कमाया।

उन्होंने फोर्ब्स की शीर्ष 100 सेलिब्रिटी सूची में सत्तरवां स्थान प्राप्त किया। कंगना अपनी बदली हुई छवि के बल पर सोशल मीडिया और ब्रांड प्रचार से अच्छा पैसा कमा रही हैं। कंगना ये क्यों नहीं बताती कि लगातार फ्लॉप फ़िल्में देने के कारण उनकी मार्केट वेल्यू तेज़ी से नीचे आई है और इसी कारण उन्हें नुकसान हो रहा है। हालाँकि नुकसान ऐसा भी नहीं है कि कंगना को भूखा मरने की नौबत आ गई हो। जब कंगना आर्थिक नुकसान को तीस करोड़ की संख्या में बताती हैं तो ऐसा लगता है कि वे हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर दिए गए बयानों की कीमत बता रही हैं।
इनमे से अधिकांश बयान एक ऐसी पार्टी के समर्थन में दिए गए, जिसकी सरकार वाराणसी में मंदिर ढहाने में व्यस्त थी और इधर आँखों पर पट्टी बांधे झूमते समर्थक अपने बीच एक सिंहनी को पाकर खुश थे। क्या कंगना इससे इनकार कर सकती हैं कि आक्रामक बेलाग बोलने के हुनर ने उन्हें हिंदूवादियों में लोकप्रिय बनाया और उनकी ब्रांड वेल्यू में भी वृद्धि हुई। अब समय बदल रहा है। कंगना की बयानबाज़ी उनके समर्थकों को आकर्षित नहीं करती।
जबसे उन्होंने पैसों के लिए एकता कपूर का भद्दा शो ‘लॉकअप’ किया है, तभी से उनकी लोकप्रियता का सूरज ढलने लगा था। इंदिरा गाँधी पर बनाई गई ‘इमरजेंसी’ कंगना की आखिरी उम्मीद है। इसके चलने के आसार बड़े कम दिखाई देते हैं। कंगना के प्रशंसक उनके इस बयान से संतुष्ट होंगे। अब वे जान गए हैं कि कंगना ने हिंदुत्व की कीमत 30 करोड़ लगाई है। यदि वे सच में समर्पित होती तो हिंदुत्व को पैसों में नहीं तोलती, ये बात अब उनके झूमते मदमस्त प्रशंसकों को समझ आ जानी चाहिए।