फिल्मों से बहुत लगाव कभी नहीं रहा। इसीलिए कभी रील लाईफ की अभिनेत्री के लिए दिवानगी नही रही। हां कॉलेज की वो सहपाठी मुझे माधुरी दीक्षित सी दिखती थी इसीलिए युवा मन धक-धक गर्ल को पर्दे पर तलाशता था लेकिन रजत शर्मा के शो अापकी अदालत में आज कंगना रनौत, अपनी बेबाकी की वो छाप छोड़ दी की कह सकता हूं कि रोम रोम वाह वाह कर के रह गया।
मैं बार बार नहीं ,हजार बार बेबाकी ने कहुंगा कि हिंदुस्तान में यदि किसी पत्रकार को इंटरव्यू लेने की कला जाननी है तो वो रजत जी के आपकी अदालत को देखे। हिंदी और अंग्रेजी का भारत का कोई पत्रकार इस मामले में उनके सामने दूर दूर तक दिखाई नहीं देता। कंगना ने आज जो कुछ भी बेबाकी से कहा वो रजत जी के स्टाईल के पत्रकार से ही संभव था। लेकिन आपकी अदालत में भारतीय सिनेजगत ने अपने जिस अदाकारा को आज देखा उस पर उसे गर्व हो या न हो , हमें आज पहली बार गर्व हो रहा है।
शुक्रिया कंगना! अलौकिक और लाव्यमयी जगत को धुंआं धुंआ करने के लिए। भारतीय सिनेजगत में कोई तो इतना बेबाक,निडर और आत्मबल वाला कलाकार है जो पैसे के बल पर मूंह खरीद लेने और करिअर तबाह करने की हैसियत रखने वाले मूवी माफिया को उसकी औकात बता रहा है। भारतीय सिनेजगत में रह कर एक आम घर की साधारण लड़की की ये निडरता, तुम्हें बार बार सलाम करने को मन करता है कंगना। हर भारतीय की तरह दीवाना तो मैं भी अमिताभ बच्चन का रहा, कभी प्रियंका चोपड़ा तो कभी सोनाली बेंद्रे ,अतित में राजकपूर की फिल्मे देखने की चाह रही. लेकिन सिने जगत में आज तक किसी के बोल ने मुझे, इस कदर प्रभावित नहीं किया।
तुम्हारे यह बोल “हम डरते हैं,इसलिए हैं कि हम खो देंगें”, इसीलिए हम अत्याचार सहते हैं, वो आप ही की तरह तो इंसान है जिससे आप कुछ खो देने के लिए डरते है जबकि नीति नियंता तो सिर्फ भगवान है” क्या बात! जब तक हम यह सोचते हैं, रीढ़विहीन होकर एक अत्याचारी और कोढ समाज बनाते हैं ,यह एहसास दिलाया।
फिल्म पुरस्कार को ठेंगें पर रखते हुए, इस पुरस्कार के पीछे के खेल के बंदरबांट ,महिला आयोग की निर्लज्जता, फिल्म पत्रकारों के अनैतिकता, सबके कारनामें जगत के सामने रख कर जो आईना तुमने दिखाया वो भारतीय सिनेजगत ही नहीं पूरे भारतीय समाज को आईना दिखाता रहेगा। कोई नैतिक बल वाली कलाकार ही मूवी माफिया से कह सकती है उसे ये चुनौती दे सकती है कि तुम एक साल से कह रहे हो तुम्हारा चेहरा बेनकाब कर दुंगा मैं इंतजार कर रही हूं।
कंगना का यह कहना कि चार- पांच परिवार ने भारतीय फिल्म जगत कैद कर रखा है अपना गुलाम बना रखा है और उसका आतंक चलता है यह सिर्फ फिल्म जगत के लिए सच नहीं है। मैने इसे बहुत नजदिक से भारतीय न्याययिक दुनिया में देखा है,भारतीय राजनीति में इसका कितना असर रहा है ये तो दशकों से हम सब ने जाना है। तो सार यह है कि सकारात्मक बदलाव की आस के लिए हर क्षेत्र को कंगना रनौत चाहिए। लेकिन इसके लिए वो निडरता,वो जिगरा भगवान सबको नहीं देता। न इसके लिए चांदी के चम्मच के साथ पैदा होने के सौभाग्य की दरकार है उसके लिए नैतिक बल चाहिए होता है। वो तब आता है जब हम खोने का डर खत्म कर देते है.सलाम कंगना….