भारत के तथाकथित बुद्धिजीवियों और सेलेब्रीटीज़ की हमेशा से यह मनोवृति रही है कि कोई मुद्दा यदि विदेशों मे अंग्रेज़ों द्वारा, या स्पष्ट तौर पर कहें तो , यदि गोरी चमड़ी वाले लोगों द्वारा उठाया जाता है, तो वो उस मुद्दे को बड़ी गंभीरता से लेते है, या लेने का नाटक करते हैं. और उस मुद्दे को लेकर बोलने पर, अपने विचार प्रस्तुत करने पर, या फिर यह दिखावा करने के लिये कि वे उस मुद्दे के बारे में दिल की गहराइयों से सोचते हैं, एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देते हैं.
कुछ ऐसा ही हमे इस वक्त हाल ही में अमरीका में हुए जार्ज फ्लांयड की मौत के मुद्दे को लेकर दिख रहा है. अमरेका के निवासी जांर्ज फ्लांयड, जो कि अफ्रीकी अमरीकी हैं, उनकी मिन्यौपोलिस शहर में पुलिस कस्टिडी में हुई मौत को लेकर अमरीका मे गैर श्वेत वर्ण या काले लोगों के अधिकारों को लेकर एक पूरा आंदोलन छिड गया. फ्लांयड की मौत के कुछ समय पश्चात ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो आया जिसमे फ्लांयड वहा के पुलिसावाले से अपनी जान की भीख मांग रहे हैं, अपनी जान के लिये याचना कर रहे हैं. लेकिन पुलिसवाला बड़ी ही बेरहमी से उनका दम घोंटकर उन्हे मार डालता है. बस इस वीडियो के बाद से ही पूरे अमरीका में जार्ज फ्लाइड की मौत को लेकर आंदोलन छिड गया जो कि तथाकथित रूप से काले लोगों के अधिकारों के लिये लड़ा जाने वाला एक आंदोलन है. बस फिर ये आदोलन दुनिया भर में फैल गया, दुनिया भर के सेलेब्रिटीज़ इस पर अपने विचार प्रस्तुत करने लगे. बांलीवुड के प्रियंक चोपड़ा और दिशा पटानी जैसे सेलिब्रेटीज़ भी ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ कर के इसके बारे में ट्वीट करने लगे कि किस प्रकार से ये बहुत गलत हुआ है, किसी भी व्यक्ति की जान उसके शरीर के रंग की वजह से नही जानी चाहिये, वगैरह, वगैरह.
बालीवुड सेलिब्र्रिटी कंगना रनौत ने अपने हाल ही में दिये गये एक इंटरव्यू मे इन सेलिब्रिटीज़ के दोगुलेपन की धाज्जियां उडा दी. कंगना , जो कि अपने बोलने के बेबाक अंदाज़ के लिये जानी जाती है, उन्होने खुल कर कहा कि कमाल की बात है, इन सेल्किब्रेटीज़ को कुछ ही हफते पहले हुई पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या नहीं दिखी. इन्होने इस हत्या के मामले में कुछ भी बोलना उचित नही समझा. जबकि ये मुम्बई मे रहते है, और पालघर मुम्बई से कुछ ही दूरी पर है. लेकिन अमरीका में हुई घटना को लेकर इनका दिल एकदम से पसीज उठा और ये उस मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाने लगे.
कंगना ने कहा कि ये बहुत ही दुख और शर्म की बात है कि बांलीवुड सेलिब्रेटीज़ अभी भी ब्रिटिश राज्य के समय की दासता की मनोवृति से ग्रस्त हैं. ये सस्ती पब्लिसिटी के लिये और 2 मिनट क्की लाइमलाइट के लिये एसे हर उस मुद्दे का प्रचार करने को तैयार रहते हैं, जिस मुद्दे को गोरी चमड़ी वाले अंग्रेज़ों ने उठाया हो. और यह कोई हैरानी की बात नही है. इनकी मानसिकता ही ऐसी है. तभी तो बालीवुड नाम भी हांलीवुड से ही लिया गया है.
कंगना ने फिर ये भी कहा कि जब पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की बात आती है, तो भी ये लोग किसी गोरे टीनेज बच्चे के पीछे ही भागते हैं, उसका समर्थन करते हैं. लेकिन अपने देश में ही पर्यावरण के लिये चुपचाप काम करने वाले ऐसे लोग इन्हे दिखाई नहीं देते , जो कि पद्मश्री से भी सम्मनित हो चुके हैं, लेकिन फिर भी ये किसी प्रकार की लाइमलाइट मे नही हैं. शायद साधु और आदिवासी लोग बांलीवुड के इन सेलिब्रिटीज़ और उनके अनुयायोयों के लिये उतने दिलचस्प नहीं हैं, कंगना का कहना है.
कंगना की बात आज के समय के परिपेक्ष में बिल्कुल सटीक बैठती है. बांलीवुड के अधिकतर सेलिब्रेटीज़ के लिये आजकल अपने आप को लेफ्टिस्ट या वामपंथी दिखाना एक प्रकार का फैशन स्टेटमेंट हो गया है. क्योंकि लेफ्ट लिबरल ने बरसों से जो बौद्धिकता का फर्ज़ी जाल फैलाया है, उससे वह देशभर में बौद्धिकता का ठेकेदार टाइप बन बैठा है. ऐसे में अपनी इमेज को अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रोग्रेसिव दिखाने के लिये बहुत से सेलिब्रिटीज़ सतही तौर पर ऐसे अंतराष्ट्रीय या राष्ट्रीय मुद्दों का सोशल मीडीया आदि चैनलों द्वारा समर्थन करते हैं जिन्हे लेफ्ट लिबरल ने एक बड़े स्तर पर उठाया हो. जार्ज फ्लांयड की मौत से जुड़े आंदोलन का मुद्द एक ऐसा ही मुद्दा है. अमरीका मे उनकी मौत के बाद जो आंदोलन शुरू हुआ होगा, उसमे भले ही शुरुआत में लोग अपनी इच्छाशक्ति से वास्तविकता में अमरीका में काले लोगों की दशा दुधारने के इरादे से सम्मिलित ज़रूर हुए होंगे. लेकिन फिर लेफ्ट लिबरल ने धीरे, धीरे, ये मुद्दा हाइजैक कर लिया, इसका अपहरण कर लिया और अब इसका इस्तेमाल अपना उल्लू सीधा करने के लिये कर रहा है. तो बांलीवुड के जो सेलिब्रिटीज़ दिखावे के लिये इस आंदोलन के पक्ष मे उतर रहे हैं, वो भी उसी ब्राइगेड का हिस्सा हैं.
इसका दूसरा और काफी चिंताजनक पहलू यह है कि ये सेलिब्रिटीज़ जिस मुद्दे के नाम पर खड़े होने का दावा कर रहे हैं, जिस मानसिकता के खिलाफ लड़्ने का दावा कर रहे हैं, उस मानसिकता को वो अपने देश में खुद ही बढ़ावा देते हैं. प्रियंका चोपड़ा और दिशा पटानी जैसी अभिनेत्रियों ने जार्ज फ्लायड की मौत पर काले लोगों के अधिकारों में उनके साथ होने का दावा किया है. और ये दोनों अभिनेत्रिया हीं फेयरनेस क्रीम्स यानि गोरे होने वाली क्रीम्स के विज्ञापनों में आ चुकी हैं. और इनके इस दोगुलेपन पर तमाम ट्विटर यूज़र्स ने भी इन्हे बुरी तरह लताड़ा है. सारा खेल पैसे का भी है. जब कोई भी मुद्दा बड़ा बनने लगता है, तू उससे तमाम स्पांसर्शिप, फिल्म प्रोजेक्ट , कैम्पेन इत्यादि जुड़ जाते हैं जिस सब में मोटा पैसा होता है. और इसीलिये भी भारतीय सेलिब्रिटीज़ लेफ्ट लिबरल द्वारा उठाये गये इन मुद्दों से जुड़ने का ढोंग करते हैं. धन्यवाद.