मैथिली में एक कहावत है ‘कुकर्मिये नाम कि सुकर्मिये नाम’ अर्थात प्रसिद्ध दो ही लोग होते हैं। एक जो अच्छा काम करे, वह अपने सुकर्म के लिए जाना जाता है, दूसरा वह जो बुरा काम करे, वह अपने कुकर्म के लिए जाना जाता है। कन्हैया कुमार दूसरे दर्जे में आता है। ध्यान करिए, वह जब भी चर्चा में आया है अपने बुरे काम के लिए ही आया है। चाहे देश के टुकड़े करने का मामला हो, या आतंकवादियों के पक्ष में खड़ा होने का मामला हो, देश तोड़ने की बात हो या फिर भारतीय संस्कृति और सभ्यता को गाली देने की बात हो। अब तो उसके साथ एक नया मामला जुड़ गया है। वह यह कि उसने अपने पीएचडी के थिसिस का सौदा कर लिया है ।
देश और समाज के लिए बड़ी-बड़ी डिंगें हांकने वाले कन्हैया कुमार ने अपनी पीएचडी थिसिस जमा करने के लिए उस पर आधारित शोध आलेख उस जर्नल में प्रकाशित कराया है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्लैकलिस्टेड है। माई नेशन वेब के एक्सक्लूसिव खबर के अनुसार उस पर आरोप है कि उसने अपना शोध आलेख छपवाने के लिए गलत तरीका अपनाया है! तभी तो कन्हैया कुमार का नाम ‘कुकर्म’ का पर्याय बन चुका है। वह जब भी चर्चा में आता है अपने बुरे काम के लिए ही आता है। लगता है उसे नकारात्मक लोकप्रियता (निगेटिव पॉपुलेरिटी) अर्जित करने की लत लग चुकी है।
मुख्य बिंदु
* कन्हैया कुमार ने अपना थिसिस वैश्विक संस्था तथा ईरान से प्रतिबंधित जर्नल में प्रकाशित कराया है
* कन्हैया कुमार पर अपना थिसिस प्रकाशित कराने के लिए उस जर्नल को पैसे देने का आरोप है
कन्हैया कुमार ने भी पैसे देकर अपना शोध आलेख छपवाया है?
माई नेशन वेब के एक्सक्लूसिव खबर के अनुसार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने पीएचडी थिसिस जमा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्लैकलिस्टेड जर्नल में अपना शोध आलेख छपवाया है। इतना ही नहीं उसने इसके लिए पैसे भी दिए हैं। उसने जिस जर्नल में अपना शोध आलेख प्रकाशित कराया है उसका नाम इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल ऑफ ह्यूमैनिटीज, इंजीनियरिंग तथा फार्मास्यूटिकल साइंस (आईआरजेओएचआईएपीएस) है। मालूम हो कि वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध और विश्वस्त ‘बील’ ने इस जर्नल को ब्लैकलिस्ट कर रखा है। इसके साथ ही बिल की सूची में कन्हैया कुमार का प्रकाशित शोध आलेख ‘प्रीडेटरी जर्नल’ (हिंसक पत्रिका) के रूप में उद्धृत है। पैसे लेकर बगैर जानकार विद्वानों से जांच कराए शोध आलेख प्रकाशित करने वाली शोध पत्रिका को ही प्रीडेटरी जर्नल्स कहा जाता है। कहने का मतलब साफ है कि कन्हैया कुमार ने भी पैसे देकर अपना शोध आलेख छपवाया है?
पीएचडी जमा कराने के लिए यूजीसी के निर्देश
गौरतलब है कि पीएचडी जमा कराने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक दिशानिर्देश जारी कर रखा है। पीएचडी जमा कराने के लिए जारी दिशानिर्देश के अनुसार छात्र को अपना थिसिस जमा कराने से पहले अपना एक शोध आलेख उस विषय से संबंधित नामी जर्नल में प्रकाशित कराना होता है। वह शोध आलेख विषय के जानकार विद्वानों द्वारा जांच-परख करने के बाद ही जर्नल में प्रकाशित होता है। लेकिन कन्हैया कुमार ने बगैर उचित प्रक्रिया अपनाते हुए पैसे देकर ब्लैकलिस्टेड जर्नल में अपना शोध आलेख प्रकाशित कराया है।
कन्हैया कुमार की बौद्धिकता पर सवाल
वैसे इस मामले में कन्हैया के सहयोगी रहे छात्र वरुण का कहना है कि कन्हैया को उस जर्नल के प्रीडेटरी होने के बारे में जानकारी नहीं थी। इसलिए इस मामले को अब देखा जाएगा। कन्हैया कुमार की ओर से उसके दोस्त ने जो जवाब दिया है उससे सहज ही एक सवाल उठता है कि जिस पीएचडी के छात्र को यह नहीं मालूम कि उसका शोध आलेख जिस जर्नल में प्रकाशित हुआ है वह ब्लैकलिस्टेड और प्रीडेटरी है या नहीं, उसका थिसिस किस दर्जे का होगा।?
कन्हैया कुमार की इस करतूत से पूरे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यावय पर प्रश्न खड़ा कर दिया है। इससे बहुत बड़े षड्यंत्र की बू आ रही है। क्योंकि कन्हैया कुमार ने जिस ब्लैकलिस्टेड आईजेएचईपीएस जर्नल में उसने अपना शोध आलेख छपवाया है इसकी जानकारी उस प्रोफेसर को भी होगी जिसके अंदर उसने थिसिस लिखा है। सवाल उठता है कि क्या उसके उस प्रोफेसर को भी यह जानकारी नहीं थी कि वह जर्नल ब्लैकलिस्टेड और प्रीडेटरी है या नहीं? या फिर कन्हैया कुमार अपनी करतूत छिपाने के लिए पूरे विश्वविद्यालय को बदनाम करने पर तुला है?
वामपंथी प्रोफेसर एसएन मलाकार के सानिध्य में पीएचडी कर रहा था कन्हैया
गौरतलब है कि कन्हैया कुमार ने हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अपना थिसिस जमा किया है। वह जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन स्कूल (एसआईएस) के अफ्रिकन अध्ययन केंद्र के वाम झुकाव वाले प्रोफेसर एसएन मलाकार के सानिध्य में पीएचडी कर रहा था। कन्हैया ने अपना थिसिस उन्ही के अंदर पूरा किया है।
उसने अपने थिसिस के लिए जो विषय चुना उसका शीर्षक है दक्षिण अफ्रीका में उपनिवेशवाद खत्म करने और सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया (द प्रोसेस ऑफ डीकोलोनाइजेशन एंड सोशल ट्रांसफॉरमेशन इन साउथ अफ्रिका)। आरोप है कि कन्हैया कुमार ने इसी प्रोफेसर के सानिध्य में पैसे देकर जून में ब्लैकलिस्टेड आईआरजेओएचआईएपीएस जर्नल में अपना शोध आलेख प्रकाशित कराया था।
URL: Kanhaiya Kumar’s PhD thesis appears in a journal internationally blacklisted
Keywords: kanhaiya kumar phd thesis, jnu controversy, kanhaiya kumar, Urban Naxalism,