श्वेताभ पाठक श्वेत प्रेम रस। साधक प्रश्न :: भैया जी कंस इतना आताताई था फिर भी उसकी मृत्य के बाद प्रभु जी उसको मोक्ष प्रदान कर देते हैं ऐसा क्यों? क्या उसका वध उनके हाथों द्वारा हुआ इसीलिए?🙏
उत्तर :: साक्षरा विपरीत राक्षसा ।
जब नैतिकता के अभाव में किसी को शक्ति मिल जाती है तो उसका दुरुपयोग होता ही है । और भगवान ने उसे मोक्ष नहीं दिया ।
मोक्ष ज्ञानियों को मिलता है । भगवान ने उसको अपना धाम दिया । और वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था । बहुत बड़ी साधना और चिंतन था उसका । कोई किसी भी प्रकार भगवान का चिंतन करेगा , भगवान उसे अपना फल देंगे ।
कोई अमृत को चाहे गुस्से में पीए , कोई प्रेम से पिये , कोई जबरदस्ती पिला दे या कोई जानबूझकर पी ले , उसे अमर होना ही है ।गंगा जी में कोई भी जल मिलेगा सब गंगा जी बन जाएगी भले वह नाला ही क्यों न हो ।
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च। नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥
( भागवत )
कोई काम भाव से , क्रोध से , भय से , स्नेह से , सौहार्द्र से किसी भी प्रकार से भंगवन का अगर नित्य चिंतन करता है और स्वयं को तन्मय करता है तो उसे उसी की प्राप्ति होगी ।
अग्नि में चाहे गन्दी , अच्छी , किसी भी प्रकार की सामग्री डालेंगे तो अग्नि यह नहीं देखेगी कि इसे जलाना है या नहीं , वह सबको अपना रूप दे देगी ।
और कंस तो इतना तन्मय हो गया था कि उसे सर्वत्र कृष्ण ही नज़र आते थे ।
पानी , भोजन , निद्रा से लेकर सब जगह उसे कृष्ण ही नज़र आते थे ।