करतार का मतलब होता है परमात्मा। करतारपुर मतलब भगवान घर। उस भगवान के घर के दर्शन के नाम पर पाकिस्तान ने एक बड़ा दांव खेला है।इमरान के इस दांव में साथ खड़े नजर आ रहे हैं, पंजाब सरकार के मंत्री और इमरान के दोस्त नवजोत सिंह सिद्धु और प्रो पाकिस्तानी भारतीय मीडिया। पाकिस्तान में सिद्धु को हीरो बताने वाले इमरान की तारीफ से गदगद बड़बोले नवजोत को इसीलिए करतारपु से खालिस्तानी आंदोलन चला रहे गोपाल चावला से गलबहिंया में कुछ भी बुरा नहीं नजर आता क्योंकि उनके लिए वो लाखों में एक उनका प्रशंसक है। पाक परस्त भारतीय मीडिया को इमरान के इस चाल में दोस्ती का पैगाम नजर आता है! इन सब के बीच भारत की मजबुरी रही, पाकिस्तान के दांव को दरकिनार न करते हुए, उसके शातिराना खेल पर नजर रखने की। इसीलिए करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास भारत में पहले हुए, लेकिन इसका नगाड़ा पाकिस्तान में जमकर बजाया गया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख ने उस जलसे में भाग लिया जिसमें पाकिस्तान से खालिस्तान मूवमेंट की अगुआई कर रहे गोपाल सिंह चावला ने भी भाग लिया। चावला ने भारतीय मीडिया से बात करते हुए कहा कि वो पाकिस्तान सिख संगत का चेयरमैन है। उसने प्रो पाकिस्तानी भारतीय मीडिया के सामने खालिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाते हुए कहा ..’इंशा अल्लाह हमारा मक्सद है इंडिया से खालिस्तान छीनने का”। जिस करतारपुर का देश के लिए मर मिटने वाले सिखों के साथ भावतानत्मक सबंध है वहां से भारत विरोधी नारा, उस खास आयोजन में,संकेत साफ है, करतारपुर कॉरिडोर के पीछे पाकिस्तान और इमरान खां का मकसद क्या है!
26/11 के मुंबई हमले के बाद से भारत -पाकिस्तान दो पक्षिए संबंध लगभग खत्म है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खां के निमंत्रण के बाद भी करतारपुर कॉरिडोर शिलान्यास में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह का पाकिस्तान न जाना बड़ा संकेत है। भारत अब पाकिस्तान की लोमड़ी वाली किसी चाल को सफल नहीं होने देना चाहता। पाकिस्तान में ही होने वाले अगामी सार्क संम्मेलन में शामिल न होने का फैसला कर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतराष्ट्रीय पटल पर भी पाकिस्तान को अलग थलग करने के प्रयास को जारी रखा है। वो इस लिहाज से क्योंकि भारत के बिना सार्क सम्मेलन के मायने नहीं। श्रीलंका और बांग्लादेश के जो वर्तमान हालात हैं उसमें उनके प्रतिनिधि का सार्क सम्मेलने में भाग लेना संभव नहीं दिखता। भारत का उसमे हिस्सा न लेना उनके फैसले को और मजबूत करेगा ऐसे में पाकिस्तान खुद अलग थलग पर जाएगा। आतंकवाद को आश्रय देने के लिए दुनियाभर में बदनामी झेल रहे इस्लामिक देश पाकिस्तान सिखों की आस्था से खेलते हुए भारत के सामने इसी लिहाज से एक नया दांव चला है।
दुनिया भर के लगभग 12 करोड़ सिखों का करतारपुर से भावनात्मक संबंध है। मजहबी नफरत के आधार पर बने पाकिस्तान के हिस्से में दुर्रभाग्यवस करतारपुर चला गया। जिसके कारण विभाजन के दौरान या तो सिखों का वहां कत्लेआम हुआ या वे भागकर भारत आ गए। पाकिस्तान के अखबार डॉन के मुताबिक वहां बचे ज्यादातर सिख दलित हिंदु हैं। 80 के दशक में वो सिख बनने लगे क्योंकि खालिस्तान आंदोलन के दौरान उन्हें आर्थिक मदद भी मिली और उन्हें सरदार नाम से सम्मानित होना अच्छा लगता था। विभाजन के बाद पाकिस्तान में जो हिंदु बचे थे उसमें ज्यादातर दलित थे। दलितों पर हमले कम हुए क्योंकि वे आर्थिक रुप से कमजोर थे इसलिए उन्हें लूटने का फायदा नहीं था। पिछले दशक में भारत में धार्मिक विजा पर जितने भी पाकिस्तानी हिंदु आए वे सब के सब दलित थे जो लौटकर वापस नहीं गए। यह साबित करता है कि पाकिस्तान के हिस्से में दलितों को प्रलोभित कर सिख बनाया गया ताकि वहां से भारत को कमजोर करने के लिए खालिस्तान आंदोलन चलाया जा सकते। पाकिस्तान सरकार ने शुरु से ही खालिस्तानी आतंकियों को सहयोग दिया। लेकिन जब खालिस्तान आंदोलन की कमर टूट गई तो पाकिस्तान लाचार हो गया। दुनिया में अलग थलग हुआ पाकिस्तान दुनिया भर से विकास के नाम पर कर्ज लेता है लेकिन खर्च आतंकवाद के नाम पर करता है। क्योंकि यही धार्मिक नफरत के बुनियाद पर बने पाकिस्तान की फितरत है।
पाकिस्तान गोली और बोली दोने साथ साथ चाहता है। एक तरह वो कश्मीर में आतंवादियों की मदद करता है दुसरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता है। ऐसा वो दुनिया के सामने अपनी बिग़ड़ी छवि को बनाने के लिए करता। भारत ने उसके इसी चाल को जानते हुए उसे पिछले दस साल से अलग थलग कर दिया है। अब खालिस्तान में पथ्थरबाजों के कमर टूटने से पाकिस्तान बेचैन है। इसी बेचैनी से तिलमिलाए पाकिस्तान ने खालिस्तान आंदोलन को तेज करने के लिए सिखों के भावनात्मक डोर को छेड़ने की चाल चली है।
पाकिस्तान को पता है कि भारत से भागे खालिस्तानी आतंकी कनाडा से लेकर लंदन और ऑस्टेलिया में पनाह लिए हुए हैं। उनका करतारपुर आना होता है। इसके कारण पाकिस्तान को विदेशी मुद्रा भी मिलता है और यदि करतारपुर प्लान सफल हो गया तो भारत के खिलाफ मुहिम चलाने के साजिश को अंजाम देना भी आसान हो जाएगा। करतारपुर बॉर्डर खुलने और उसे वीजा मुक्त किए जाने से खालिस्तान समर्थक आतंकियों का भारत घुसना आसान हो जाएगा। पाकिस्तान में खालिस्तान आंदोलन की अगुआई कर रहे आतंकी गोपाल सिंह चावला पाकिस्तान के उसी साजिश की अगुआई कर रहा है। प्रो पाकिस्तानी भारतीय मीडिया को इमरान खान के करतारपुर कॉरिडोर दांव में जो दोस्ती का संदेश नजर आता जिसकी अगुआई कांग्रेसी नेता सिद्धू कर रहे हैं उस चाल से भारत वाकिफ है। भारत वाकिफ है कि कैसे जब प्रधानमंत्री वाजपेई लाहौर बस लेकर गए तो पाकिस्तान ने कारगिल को अंजाम दिया। मनमोहन सिंह ने पहल की तो 20/11हुआ। मोदी जब पाकिस्तान गए तो पठानकोट हुआ। भारत अब पाकिस्तान के किसी चाल को सफल होने नहीं देना चाहता।
लेकिन लोकतांत्रित भारत की यह मजबूरी है कि जिस करतारपुर से भारत के लिए देश के आनबान आन और शान के लिए समर्पित सिखों की आस्था जुरी हो उसे खारिज नहीं किया जा सकता। करतारपुर में सिखों की आत्मा वास करती है। क्योंकि नानक बाबा ने यहीं से लंगर का पैगाम दुनिया को दिया। मिल बांट कर खाओ प्रेम से रहो। दुनियावी मजहब को जहां से भाईचारे का यह अमर संदेश मिला, पाकिस्तान, बाबा नानक के उस अमर भूमि का इस्तेमाल आतंकवादियों भारत में के घुसपैठ लिए करना चाहता है। पाकिस्तान में पोषित खालिस्तानी आतंकी गोपाल चावला ने गुरु नानक देव के उसी पवित्र भूमि से पाकिस्तानी साजिश को बेनकाब कर दिया। प्रो पाकिस्तानी भारतीय मीडिया ,द वायर वाले सिद्धार्थ वरदराजन, बरखा दत्त और प्रणय राय की टीम जिस इमरान का महिमामंडन करतारपुर से कर रहे थे उसके खालिस्तानी खेल को समझना भी जरुरी है। भारत लगातार पाकिस्तान को दुनिया के मंच पर बेनकाब कर रहा है ऐसे में भारतीय मीडिया का एक वर्ग पाकिस्तान परस्ती में क्यों लगा है इसे समझना भी जरूरी है।
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