
भारत की एकेडमी अलगाववादियों व नक्सलवादियों से भरी हुई हैं, कश्मीर जिहाद में समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर की मौत से इसकी और पुष्टि हुई!
जिस प्रकार जम्मू-कश्मीर में मारे गए कुछ आतंकवादियों में से एक की पहचान समाजशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में हुई है, इससे स्पष्ट हो गया है कि यहां पर जिहादियों के साथ कम्युनिस्ट शिक्षाविदों की मिलीभगत है। अभी तो महज दोनों के बीच मिलीभगत उजागर हुई है लेकिन एक दिन यह साबित हो जाएगा कि मानवता के दुश्मन ये दो नहीं बल्कि एक ही हैं।
मालूम हो कि देश के फौजी जवानों ने जम्म-कश्मीर में आज कुछ आतंकवादियों को मार गिराया। इनमें से एक आतंकवादी की पहचान समाज शास्त्र के प्रोफेसर रफी बट के रूप मे हुई है। जांच से पता लगा है कि प्रोफेसर भट्ट दो दिन पहले ही आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हुआ था। बताया जा रहा है कि इसकी सोच कम्युनिस्ट की है। लेकिन जब तक यह अपने नापाक मंसूबे को अंजाम देता हमरे सुरक्षा जवानों ने इन्हें ही ठिकाने लगा दिया।
शोपियां में सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए पांच दुर्दांत आतंकियों में कश्मीर यूनिवर्सिटी के सोशियोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेशर से आतंकवादी बना डॉ. मोहम्मद रफी बट भी शामिल था। मरने से दो दिन पहले ही आतंकवादी बना बट का आतंकी इतिहास काफी पुराना है। बचपन से ही जिहादी मानसिकता वाले मोहम्मद रफी बट को 15 साल पहले ही पुलिस ने आतंकवादी बनने के लिए पाकिस्तान जाने के दौरान गिरफ्तार किया था। लेकिन सहृदयतावश रिहा कर परिवार को सौंप दिया गया। वह चंदहामा, गांदरबल के संभ्रांत परिवार से है। उसके पिता फैयाज अहमद बट उस पर करीब 20 सालों से हमेशा नजर रखे हुए थे। उसे अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देते थे लेकिन वह शुरू से ही आतंकवाद की ओर आकर्षित था। उसके दो चचेरे भाई भी 90 के दशक में आतंकवादी बन गए थे जो बाद में सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए। वह जब 18 साल का था तभी से ही जैश और लश्कर जैसे आतंकवादी संगठनों के खास लोगों के संपर्क में आ गया था। उसके अतीत का ही नतीजा था कि वह आतंकवादी के रूप में मारा गया।
लेकिन एक प्रोफेसर का आतंकवादी संगठन में जाना और मानवता के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए तैयार होना अपने आप में एक बड़ी घटना है। इस घटना के उजागर होने से यह भी साफ हो गया है कि मानवता के दुश्मन महज जिहादी ही नहीं हैं बल्कि वह कम्युनिस्ट भी है जो आतंक के रास्ते पर चल निकला है। दरअसल वह ज्यादा खूंखार है क्योंकि वह तो विचारों को ही प्रभावित कर देता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि समय एक दिन यह साबित कर देगा कि जिहादी और कम्युनिस्ट में दरअसल कोई अंतर नहीं है। दोनों ही इंसान के लिए दो दुश्मन नहीं है बल्कि एक ही दुश्मन है।
URL: Kashmir University professor who turned into militant, killed in Shopian encounter
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