विकास प्रीतम। प्रधानमन्त्री श्री मोदी के साथ श्री राहुल गांधी की अगुआई में कांग्रेस सांसदों की मुलाकात के पीछे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को ‘डील’ नजर आ रही है। यह भी उनकी ‘अलग किस्म की – नये अन्दाज़ वाली राजनीति’ का ही एक हिस्सा है जहाँ वे केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को छोड़कर देश और दुनिया के सभी मामलों में अपना हस्तक्षेप और टिप्पणी करना अनिवार्य समझते हैं। वो दिल्ली की कूड़े की सफ़ाई का विज्ञापन गोवा में और हैदराबाद में एक छात्र की आत्महत्या का विज्ञापन देश भर में देकर अपने अलग अन्दाज़ कि राजनीति की झलक दिखला चुके हैं।
अगर प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं से न मिलें तो वे इसे अहंकार करार देते हैं और जब वे मिलने की पहल करते हैं तो केजरीवाल जी को यह डीलिंग नजर आती है । जबकि वे स्वयं कांग्रेस के साथ उनकी मजबूत डील की ही उपज हैं। उसी डील का नतीजा था कि 2013 में विधानसभा में 28 सीटों की दम पर वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। यह कांग्रेस और केजरीवाल की डील ही थी जिसके कारण पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के 370 पेजों के उनके खुद के सबूत जमींदोज हो गए। और आज भी कांग्रेस के साथ उनकी वफादारी लगातार जारी है और यही कारण है कि उन्होंने यूपीए के 10 साल के अखंड भ्रष्टाचार के विरुद्ध कभी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ मुंह नहीं खोला। यही उनकी अलग किस्म की राजनीति का सार है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में सुशासन के क्षेत्र में एक भी सफल क़दम उठाने में विफल रहने और अपने विधायकों और मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और दुराचार के आरोपों से घिरे रहने के बाद भी सभी क्षेत्र में दोषारोपण करना भी इनके नये अन्दाज़ की राजनीति का हिस्सा है।