डॉ. वेदप्रताप वैदिक। जालंधर के केथोलिक बिशप फ्रांको मलक्कल के खिलाफ एक ईसाई साध्वी (नन) की शिकायत पर केरल का उच्च न्यायालय काफी मुस्तैदी दिखा रहा है। केरल की पुलिस सारे मामले की जांच कर रही है। ईसाई साध्वी का आरोप है कि उस बिशप ने उसके साथ दो साल तक कई बार बलात्कार किया, डराया-धमकाया और बदनाम करने की कोशिश की। उस साध्वी ने रोम में पोप को भी पत्र लिखा है लेकिन कई हफ्ते गुजर जाने पर भी पोप फ्रांसिस ने कोई जवाब नहीं दिया है और न ही बिशप के विरुद्ध कोई कार्रवाई की है।
चर्च में या सेमिनरी में इस तरह के बलात्कार और व्याभिचार के मामले सिर्फ भारत में ही सामने नहीं आते हैं। यूरोप का एक हजार साल का इतिहास ऐसे मामलों से भरा पड़ा है। मुझे याद है कि 1969 में मैं पेरिस के विश्व-प्रसिद्ध चर्च नोत्रेदाम को देखने गया तो मुझे बताया गया कि उसके सामने की जो गली है, वह वेश्याओं का मोहल्ला है और वहां एक आर्कबिशप मरा पाया गया था। केथोलिक संप्रदाय में ब्रह्मचर्य को जरुरत से ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसीलिए दबी हुई काम-वासना का विस्फोट ऐसी-ऐसी जगह हो जाता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। ब्रह्मचर्य बदल जाता है, पशुचर्य में ! पवित्र आश्रम भी वेश्यालय में परिवर्तित हो जाते हैं।
अमेरिका के प्रसिद्ध आर्कबिशप विगानो ने आरोप लगाया है कि पोप फ्रांसिस जानबूझकर बलात्कार और व्यभिचार के मामलों की अनदेखी कर रहे हैं। अमेरिका में पिछले माह पेसिलवानिया राज्य के 300 पादरियों के खिलाफ यह शिकायत आई है कि उन्होंने 1000 बच्चों के साथ कुकर्म किया है। इन बातों से पोप इतने चिंतित हो गए हैं कि इस मुद्दे पर उन्होंने अगले साल फरवरी में वरिष्ठ पादरियों का महासम्मेलन बुलाया है। कुकर्मियों को सजा देना तो जरुरी है लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी है, केथोलिक जीवन-दृष्टि में व्यावहारिक परिवर्तन करने की ! क्या पोप फ्रांसिस में इतनी हिम्मत है कि दो हजार साल से चले आ रहे इस पाखंड का वे निवारण कर सकें?
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