विश्वविख्यात जगन्नाथ मंदिर के रत्नभंडार की चाबी दो महीने से भी अधिक दिनों से गुम है लेकिन मंदिर प्रबंधन ने न तो इसकी पुलिस में शिकायत कराई न ही कोई प्रशासनिक जांच। इसके बावजूद जब मामले ने तूल पकड़ा तो राज्य सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सारे अलंकार सुरक्षित होने की बात कही है। सरकार के इस प्रेस विज्ञप्ति से उसी पर संदेह गहरा गया है। मालूम हो कि मंदिर के रत्नभंडार आखिरी बार साल 1985 में खोला गया था। उसे भी अब 33 साल हो गए हैं। इतने दिनों में श्री जगन्नाथ मंदिर एक्ट 1960 का उल्लंघन करते हुए एक बार भी रत्नभंडार को खोला नहीं गया। और अब उसकी चाबी गुम हो जाने की बात कही जा रही है। लेकिन सरकार सारे अलंकार सुरक्षित होने की बात कह रही है।
मुख्य बिंदु
* मंदिर प्रशासन ने चाबी गुम होने की भनक किसी को नहीं लगने दी, पुलिस को भी सूचना नहीं दी
* मंदिर के रत्नभंडार 33 सालों से खुले नहीं हैं और सरकार अलंकार सुरक्षित होने की बात कहती है
ऐसे में सवाल उठता है कि नवीन पटनायक की सरकार ऐसे कैसे कह रही है? क्या उसने मंदिर प्रबंधन को बिना बताए या उससे साठगांठ कर रत्नभंडार खोलती रही है? ऐसे में कहीं चाबी गुम होने के नाटक के पीछे बहुमूल्य अलंकार तो गुम नहीं कर दिए गए? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब मंदिर प्रबंधन और सरकार को देना होगा। क्योंकि यह जनता की आस्था से खिलवाड़ का ही मामला नहीं है बल्कि दुनिया भर में देश की छवि खराब करने का मामला है।
गौरतलब है कि इस विश्वविख्यात जगन्नाथ मंदिर के प्रंबंधन का एक अलग एक्ट है। श्री जगन्नाथ मंदिर एक्ट 1960 के तहत ही मंदिर का प्रबंधन काम करता है। इस एक्ट के अनुसार छह महीने में मंदिर के रत्नभंडार को खोला जाना चाहिए तथा हर तीसरे साल मंदिर के नए प्रबंधन कमेटी के कार्यभार संभालने के बाद सभी रत्नों और आभूषणों की जांच होनी चाहिए। इससे साफ है कि हर तीसरे साल मंदिर का नया प्रबंधन नियुक्त होता है। अब सवाल उठता है कि इतने सालों तक आखिर क्यों मंदिर प्रबंधन कानून का उल्लंघन करता रहा? इसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? जवाब साफ है कि इसके लिए प्रदेश सरकार ही जिम्मेदार होगी क्योंकि प्रबंधन निर्माण में प्रदेश सरकार की अहम भूमिका होती है। अब जब दो महीने बाद इस मामले से पर्दा हटा है तो नवीन पटनायक की सरकार ने इसकी न्यायिक जांच के आदेश दिए है। यह न्यायिक जांच भी अनोखा होने वाला है। क्योंकि अदद एक चाबी के गुम होने को लेकर एक जांच आयोग बनाने का देश में यह पहला मामला होगा।
मंदिर के रत्नभंडार की चाबी पिछले अप्रैल में ही चार तारीख को गुम हुई थी। लेकिन इस घटना के बारे में किसी को कानोकान खबर तक नहीं लगने दी। इसका खुलासा तो अभी भी नहीं होता अगर चाबी गुम होने के बाद मंदिर प्रबंधन की आपात बैठक का खुलासा नहीं हुआ होता। चाबी गुम होने की बात भी सतह पर नहीं आती अगर रत्नभंडार के ढांचे की सुरक्षा जांच की बात नहीं उठती। मालूम हो कि ओडिशा हाईकोर्ट के आदेशानुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), प्रदेश सरकार और मंदिर प्रबंधन के 17 सदस्यीय एक दल रत्नभंडार के ढांचे की सुरक्षा जांच के लिए चार अप्रैल को वहां पहुंचा। तभी बताया गया कि रत्नभंडार की चाबी गुम हो गई है। हालांकि चाबी गुम होने का पता चार अप्रैल से पहले से ही था लेकिन किसी को बताया नहीं गया। जब जांच दल मंदिर का मुआयना कर बाहर आया तो मंदिर के मुख्य प्रशासक प्रदीप जेना ने पत्रकारों को बताया कि जांच दल ने भीतरी कमरे के बाहर से ही अंदर वाले हॉल का जायजा ले लिया। इसलिए जांच दल को अंदर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। उस दिन भी उन्होंने किसी चाबी गुम होने की भनक तक नहीं लगने दी। जबकि जांच दल रत्नभंडाल की चाबी नहीं मिलने पर नाजिरखाने में पड़ी चाबी का गुच्छ यह सोचकर अपने साथ ले गया है कि हो न हो इन्हीं में रत्नभंडार की चाबी हो।
अगर चार अप्रैल को ही जांच दल के जाने के बाद मंदिर प्रबंधन केमेटी की इस मसले पर आपात बैठक नहीं हुई होती तो चाबी गुम होने की बात किसी को पता ही नहीं चल पाती। इस आपात बैठक का ब्योरा कुछ दिन पहले ही मीडिया में लीक हुआ है। इस पूरे प्रकरण को गौर से देखें तो पूरा शक मंदिर प्रबंधन और सरकार के बीच साठगांठ पर जाता है। नहीं तो ऐसे कैसे हो सकता है कि सालों साल मंदिर प्रबंधन कानून का उल्लंघन करता रहे और सरकार को खबर तक नहीं? और जैसे ही चाबी गुम होने की बात सामने आई वैसे ही सरकार विज्ञप्ति जारी कर आभूषणों के सुरक्षित होने का ऐलान कर दे? कहीं नवीन पटनायक की सरकार जांच दल में शामिल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी से डर तो नहीं गई?
इस बारे में जब मंदिर के सूचना अधिकारी लक्ष्मीधर पूजापंडा और प्रशासक (नीति) प्रदीप कुमार दास से इस मसले पर बार करने का प्रयास किया गया तो दोनों ने ही हाथ जोड़ते हुए कहा कि इस मामले में कुछ बोलने की इजाजत नहीं है। इस बीच मंदिर के मुख्य प्रशासक प्रदीप जेना को पद से हटाकर प्रदेश सरकार ने एक आईएएस अधिकारी प्रदीप महापात्र को मंदिर का मुख्य प्रशासक नियुक्त कर दिया है।
चाबी गुम हो जाने के बाद से आम हो या खास सभी को यही संदेह हो रहा है कि कहीं मंदिर का रत्नभंडार खाली तो नहीं कर दिया गया। वैसे भी इस
रत्नभंडार का जायजा लिए हुए 40 साल हो गए हैं। क्योंकि अंतिम बार साल 1978 में ही रत्नभंडार में भरे आभूषणों और रत्नों का जायजा लिया गया था। इतने दिनों तक रत्नभंडार का जायजा नहीं लिए जाने के बाद अचानक उसकी चाबी गायब होने की बात सामने आने से जगन्नाथ मंदिर में आस्था रखने वाले करोड़ो श्रद्धालु स्तब्ध हैं। श्रद्धालुओं का तो यहां तक कहना है कि चाबी गुम होने का तो बहाना है असल में रत्नभंडार से बहुमूल्य रत्न या तो गायब हो चुके हैं या गायब करवा दिए गए हैं। अब प्रदेश सरकार अपने पाप को ढकने के लिए मदिर प्रबंधन से चाबी गुम होने का नाटक करवा रही है।
URL: Key to world famous Jagannath temple’s gemstone missing for two months
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