निर्विवादित नेता है तू , पर दाढी हुई विवादित ;
कोई कहता रवींद्नाथ सी , दाढ़ी ये सम्मानित ।
पर लौंडे नेता कहते हैं , आसाराम बापू सी ;
अब इस दाढी का क्या करिये ? आसाराम के जैसी ।
कोई कहता बड़ा भेद है , इस लंबी दाढ़ी में ;
कोरोना वायरस मर जाते , उलझ के इस दाढी में ।
इसमें क्या सच्चाई है ? ये तो राम ही जाने ;
क्यों न इसमें शोध कराओ ? सारी दुनिया जाने ।
तेरे चाहने वाले चाहें , पहले जैसा हो जा ;
लिंकन जैसी छोटी दाढ़ी , राजा बेटा हो जा ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचयिता: बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”