संदीप देव । प्रशासनिक सेवा में रहते हुए किशोर कुणाल जी ने जिस तरह से सनातन धर्म की सेवा की, वैसा इतिहास शायद ही किसी नौकरशाह का रहा है।
पटना रेलवे स्टेशन पर बने करीब 300 साल पुराने महावीर मंदिर का जिर्णोद्धार 1983 में शहर के तत्कालीन सीनियर एसपी रहते हुए किशोर कुणाल ने ही कराया था। रामानंद संप्रदाय से जुड़ा यह मंदिर बहुत छोटा और अतिक्रमण से घिरा था। इसका आज जो भव्य और विशाल रूप है, वह किशोर कुणाल की ही देन है। 30 नवंबर, 1983 को मंदिर के नवनिर्माण का शिलान्यास हुआ और चार मार्च, 1985 को नए मंदिर का उद्घाटन उनकी ही देखरेख में हुआ था।
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार यह देश का पहला मंदिर है जहां 13 जून, 1993 को दलित संत फलाहारी सूर्यवंशी दास पुजारी बने। यह उत्तर भारत का पहला मंदिर है जिसने धर्म को परोपकार से जोड़ा। लाइव दर्शन कराने वाला देश का सातवां और उत्तर भारत का पहला मंदिर है। यहां का प्रसिद्ध प्रसाद नैवेद्यम है, जिसे तिरुपति के कारीगर तैयार करते हैं।
मृत्यु के समय तक किशोर कुणाल महावीर मंदिर ट्रस्ट के सचिव और बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष थे। इस मंदिर के धन को परोपकार से जोड़ते हुए उन्होंने महावीर कैंसर संस्थान की स्थापना की, जो पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल है। यहां मरीजों का उपचार बेहद कम दर पर होता है और उनके लिए भोजन की व्यवस्था नि:शुल्क होती है। किसी मरीज की मृत्यु हो जाने पर नि:शुल्क एंबुलेंस से उनके शव को बिहार भर में कहीं भी उनके घर पहुंचाया जाता है। यह सब किशोर कुणाल के कारण ही संभव हो सका।
किशोर कुणाल की एक बड़ी भूमिका राम जन्मभूमि भूमि केस में रही। किशोर कुणाल उस समय तीन-तीन प्रधानमंत्री (वीपी सिंह, चंद्रशेखर और नरसिम्हाराव) के OSD(Ayodhya) थे। उनके पास हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने अपना अपना साक्ष्य जमा कराया था। विश्व हिंदू परिषद की ओर से रामजन्म भूमि के प्रमाण स्वरूप केवल एक पुस्तक ‘सहीफा-ए-चहल नसैह बहादुरशाही’ जमा कराई गई थी, जिसके लेखक के बारे में कहा गया था कि इसे औरंगजेब की पोती ने लिखा है, परंतु यह संदिग्ध था। उसमें लिखी बात इतनी कमजोर थी कि वह कभी भी ध्वस्त हो सकती थी। किशोर कुणाल ने बकायदा अपनी थिसिस ‘Ayodhya Revisited’ में उसे सप्रमाण ध्वस्त भी किया है, फिर वह साक्ष्य कोर्ट में बाबरी के पैरोकार इस्लामी-वामी इतिहासकारों के समक्ष कहां से ठहरता?
किशोर कुणाल के गुरु थे द्वारका और ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी। वह उनके पास गये कि यदि हिंदू प्रमाण ही नहीं देगा तो हम केस हार जाएंगे? शंकराचार्य जी ने उनके साथ अपने वकील P.N. मिश्र जी को लगाया। किशोर कुणाल की थिसिस के बहुत बड़े हिस्से को श्री मिश्र जी ने कोर्ट में रखा। यह किशोर कुणाल ने अपनी थिसिस की भूमिका में कृतज्ञता के साथ लिखा है।
किशोर कुणाल की थिसिस से ही यह साबित हुआ कि राम मंदिर का ध्वंस बाबर ने नहीं, औरंगजेब ने किया था। यह साबित होते ही मुस्लिम पक्षकारों का वह कुतर्क अदालत में ढह गया कि जब बाबर ने मंदिर तोड़ा तो अकबर काल के सबसे बड़े राम भक्त तुलसीदास जी ने इसका जिक्र अपनी रामचरितमानस या किसी अन्य ग्रंथों में क्यों नहीं किया?
किशोर कुणाल की उस थिसिस की महत्ता देखिए कि उसकी भूमिका स्वयं एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने लिखी है। उनकी थिसिस को अदालत ने संज्ञान में लिया, जिससे उन सब प्रश्नों का उत्तर मिल गया, जिसे लेकर मुस्लिम पक्ष कोर्ट के अंदर लगातार सवाल उठाते थे! मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन किशोर कुणाल की थिसिस के कारण इतने बौखला उठे थे कि उन्होंने किशोर कुणाल द्वारा प्रस्तुत रामजन्म भूमि का नक्सा 17 अक्टूबर 2019 को भरी सुप्रीम कोर्ट में फाड़ डाला था।
ऐसे किशोर कुणाल को भगवान मोक्ष प्रदान करें। भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ ऐसी आत्मा को नमन है। ॐ शांति 🙏
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