भरी दुपहरी हुआ अंधेरा, न्याय का सूरज जकड़ लिया;
गद्दारों से कुछ न कहते , देशभक्त को पकड़ लिया ।
पुलिस की बुद्धि भ्रष्ट हो गई , कानूनों की चिता जलाई ;
बची खुची जो इज्जत उनकी,बेअक्ली से वो भी गंवाई ।
सत्तर साल में आस जगी थी,अब तो अच्छा नेता आया;
क्या सत्ता का नशा चढ़ गया?क्या गलती से सत्ता पाया?
बार-बार क्यों गलती करता ? तेरा वोटर वो ही मरता ;
गुंडे खाते हैं बिरयानी , तेरा समर्थक डंडे खाता ।
कब तक ये दुर्नीति चलेगी ?काठ कीहांडी जल्द जलेगी ;
सोचसमझकर कदमरखो,क्योंकि जनता अबनहीं सहेगी।
तू तो आखिर मानव ही है , आज नहीं तो कल जायेगा ;
रोना तो बस इतना ही है , विश्वास राष्ट्र का टूट जायेगा ।
बहुत बड़ी उम्मीदें तुझसे , तू आशा की किरण बना था ;
टूट रहे हैं सारे सपने , क्यों तू सपना झूठ बना था ?
राष्ट्र की ताकत बहुत बड़ी है ,सपना तो सच होके रहेगा ;
अश्विनी जैसे काम कर रहे , कार्य राष्ट्र का होके रहेगा ।
सारे राष्ट्रभक्त मिल जायें , सबसे बड़ी जरूरत है ;
अलग-अलग ताकत न बनती , इसीलिये ये लानत है ।
इस लानत से मुक्ति पाओ , वरना राष्ट्र मिट जायेगा ;
अभी तो सूरज ढंका हुआ है , फिर ये अस्त हो जायेगा ।
कहीं न होगा न्याय का सूरज , अंधकार छा जायेगा ;
खूनी , गुंडे ,चोर , उचक्के , इनका राज आ जायेगा ।
तेरी जर , जमीन व जोरू , गुंडे लूट कर ले जायेंगे ;
नाकारा ये तेरे नेता , केवल गाल बजायेंगे ।
पुलिस , प्रशासन बंधा हुआ है , अंग्रेजी कानूनों से ;
उनके बंधे हाथ तुम खोलो , अपने अच्छे कानूनों से ।
अश्वनीउपाध्याय की यहीमांग है,उसमें कुछ भीगलतनहीं;
क्षमा मांग लो उनसे फौरन , फिर न हो ये गलती कहीं ।
घिरा हुआ है तू दुष्टों से , इसीसे गलती होती है ;
दुष्टों का एजेंडा समझो , राष्ट्रीयता जो मिटती है ।
स्वयं को मुक्त करो दुष्टों से , केवल राष्ट्रभक्त ही लाओ ;
अब तो सच्चाई पहचानो , वरना राजनीति से जाओ ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”