संदीप देव। मैंने आपको कुंभ पर अपने लेख की श्रृंखला में वेदों, पुराणों और धर्मशास्त्रों से यह बताया था कि शास्त्रों में कुंभ और पूर्ण कुंभ का विवरण मिलता है। अर्द्ध कुंभ चारों पीठों के शंकराचार्यों द्वारा घोषित है। वहीं 144 साल बाद वाले महाकुंभ का वर्णन धर्मशास्त्रों में तो नहीं मिला, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में मिल गया!
मैंने अंग्रेजों के जमाने के प्रयागराज गजेटियर में ढूंढा, लेकिन उसमें भी 144 साल बाद वाले महाकुंभ का वर्णन नहीं है। ढूंढते-ढूंढते मुझे योगी सरकार के दौरान 2023 में जारी ‘उत्तरप्रदेश स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथोरिटी’ का दस्तावेज मिला, जिसके कवर पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी की फोटो है। इसके पेज संख्या-50 पर 2013 में प्रयागराज कुंभ में फुट ओवर ब्रिज के टूटने पर रिपोर्ट है, जिसमें लिखा है कि “2013 का कुंभ एक महाकुंभ था, जो 144 साल बाद आया था (Pic1)। यह 55 दिन तक चला और इसमें 100 मिलियन अर्थात् 10 करोड़ लोग शामिल हुए थे। इसमें मची भगदड़ में 42 लोगों की जान गई थी।”

एक दूसरा सरकारी दस्तावेज भारत सरकार के भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक अर्थात् कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया की 2014 की रिपोर्ट में मिला।(Pic2) उस रिपोर्ट के अंदर जगह-जगह 2013 के कुंभ को महाकुंभ लिखा गया है। इसके इंट्रोडक्शन पेज पर सभी कुंभ की परिभाषा भी देते हुए 144 साल बाद आए कुंभ को महाकुंभ बताते हुए 2013 के कुंभ को महाकुंभ लिखा गया है।

प्राप्त इन दो सरकारी दस्तावेजों के अनुसार 2013 का कुंभ यदि 144 साल बाद आया था तो सवाल उठता है कि वर्ष 2013 के केवल 12 साल बाद ही 2025 का कुंभ भी पुनः 144 साल बाद कैसे आया? और कैसे महाकुंभ कहलाया?
लेकिन यदि शास्त्रों को देखेंगे तो पाएंगे कि शास्त्रों के अनुसार 2013 और 2025 दोनों ही पूर्ण कुंभ था, न कि महाकुंभ। हां, जैसे 2013 के पूर्ण कुंभ को सरकारी दस्तावेजों में 144 साल बाद आया महाकुंभ लिखा गया है, उसी तरह 2025 को भी आगे यही लिखा जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए!
यह महाकुंभ की अवधारणा स्वतंत्रता के बाद सरकारों द्वारा रची गई है, इसलिए इन दो सरकारी दस्तावेजों के अलावा महाकुंभ और 144 साल का शब्द और कहीं नहीं मिलता, यहां तक कि अंग्रेजों के गजेटियर में भी नहीं मिलता।
अब एक नौकरशाह कुमार निर्मलेंदु द्वारा लिखित ‘प्रयागराज और कुंभ’ पुस्तक को पढ़ें और उस दौर के बड़े पत्रकार मार्क टली की रिपोर्ट को देखें तो पाएंगे कि सभी शंकराचार्यों, अखाड़ों और धर्माचार्यों के अनुसार 1989 का कुंभ निर्विवाद रूप से सबसे शुभ नक्षत्रों में आया कुंभ था, जो 150 साल बाद आया था और आगे भी 150 साल बाद ही ऐसा शुभ नक्षत्र आएगा। हालांकि उस समय तक महाकुंभ शब्द का प्रचलन नहीं हुआ था, इसीलिए शास्त्रीय रूप से और शायद सरकारी दस्तावेजों में भी उसे पूर्ण कुंभ ही कहा गया था।
पुस्तक और रिपोर्ट के अनुसार, 1989 का पूर्ण कुंभ निर्विवाद था। ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार, उस कुंभ मेले में जैसा शुभ नक्षत्र योग बना था, वैसा अवसर 150 वर्ष बाद ही उपस्थित होता है।(Pic3)

इस पुस्तक में लिखा है कि बृहस्पति को सूर्य की परिक्रमा करने में 12 साल नहीं, बल्कि 11 वर्ष 315 दिन लगते हैं। अतः बृहस्पति मेष राशि में हर 12 वर्ष में नहीं, बल्कि 11 वर्ष 315 दिन में पहुंचते हैं। यही कारण है कि कुंभ की तिथियों पर अनेक बार विवाद उठे हैं।
1954 और 1965-66 की कुंभ तिथि पर विवाद था, लेकिन 1977 और 1989 का कुंभ पूर्णतः निर्विवाद था। 1977 को भी 144 साल वाला महाकुंभ कह कर प्रचारित करने का उल्लेख कहीं कहीं मिलता है, लेकिन दस्तावेज में यह पूर्ण कुंभ के रूप में ही वर्णित है।
एक बार तो एक साल के अंतराल पर दो कुंभ मनाया गया था। वर्ष 1966 ई में शंकराचार्यों ने और इससे एक वर्ष पूर्व 1965 में साधु-संत व अखाड़ों ने कुंभ मनाया था! धन्यवाद। कुंभ श्रृंखला समाप्त।