सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भारत में भीड़-तंत्र के व्यवहार को गो-हत्या से जोड़ दिया है, लेकिन कभी उसने यह जानने का प्रयास किया कि देश में इसलाम और ईसायत के आगमन के बाद गो-हत्या बंदी आंदोलन क्यों चलने लगे? क्यों इन हमलावरों के आने से पूर्व भारत में गो-हत्या बंदी को लेकर एक भी आंदोलन नहीं हुए? बिना समस्या की जड़ में जाए, निर्णय दोगे और विमर्श खड़ा करोगे तो इससे समाधान नहीं निकलेगा, बल्कि यह संदेश जाएगा कि आपकी समझ ही इतनी छोटी है कि आप इसका समाधान करने के लायक ही नहीं हैं!
महारानी विक्टोरिया का पत्र क्या कहता है पढि़ए
8 दिसंबर 1893 में ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंसडाउन को एक पत्र लिखा था। मैं चाहता हूं कि उस पत्र को सुप्रीम कोर्ट हो, शासन तंत्र हो या हड़बड़ी में हिंदुओं को बदनाम करने की भरपूर कोशिश में जुटी मीडिया, पढ़ ले। महारानी विक्टोरिया लिखती है, “हालांकि मुसलमानों द्वारा की जा रही गोहत्या के कारण भारत में आंदोलन खड़ा हुआ, लेकिन वास्तव में यह आंदोलन हमारे यानी ब्रिटिशर्स के विरुद्ध है, क्योंकि हम अपनी सेना आदि के लिए मुसलमानों से कहीं अधिक गोहत्याएं करते हैं।” बता दें कि एक-दो साल नहीं, बल्कि हिंदुओं ने 1880 से 1894 तक लगातार गो-वध बंदी आंदोलन चलाया था और इस आंदोलन का कितना व्यापक प्रभाव पड़ा था, इसका दस्तावेज उपलब्ध है। यही नहीं, 1960 के दशक में हिंदू संतों, साधुओं ने संसद घेर लिया था और इंदिरा गांधी ने उन पर गोलियों की बरसात करवा दी थी, इसके बावजूद हिंदू मन से गाय के प्रति श्रद्धा कम नहीं हुई। इसलिए बार-बार हिंदुओं की आस्था पर प्रहार बंद करो।
महारानी विक्टोरिया का पत्र क्या स्पष्ट करता है, यह समझिए
इस पत्र में दो बातें स्पष्ट हैं। पहला, मुसलमानों के आक्रमण और उनके भारत पर शासन के बाद इस देश में गोहत्या शुरू हुई और दूसरा कि गोहत्या करने में मुसलमानों से कहीं अधिक आगे क्रिश्चियन हैं। अनुमान है कि मुसलमानों के शासन में हर वर्ष 20 हजार से अधिक गो हत्याएं होती थी। और जब अंग्रेजों का शासन आया तो वह 20 हजार गाय प्रति दिन काटने लगे। बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसी की सेना की रसद के लिए बड़े-बड़े कत्लखाने बनाए गये। भारत में ब्रिटिश शासन को बनाए रखने के लिए जो अंग्रेज सैनिक, अफसर, क्रिश्चियन यहां काम करते थे, उनके लिए बड़े पैमाने पर गाय काटी जाती थी।
धर्मपाल और टी.एम. मुकुन्दन ने 1880-93 के दस्तावेज के आधार पर एक पुस्तक लिखी है- ‘गौ-वध और अंग्रेज।’ इस पुस्तक में दस्तावेज के साथ बताया गया है कि मुसलमान पंजाब, बिहार, उप्र के मुसलमान गो-हत्या छोड़ने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन अंग्रेजों के इशारे पर उन्होंने इसे जारी रखा, बल्कि 1880 के बाद गो-हत्या पर उनका जोर और बढ़ गया, क्योंकि ब्रिटिश शासन उनके पक्ष में उतर आया था। पुस्तक के अनुसार, “अंग्रेजों का इस पर जोर भी रहा कि मुसलमानों की गो-वध प्रथा जारी रहनी चाहिए और अंग्रेजों की ऐसी समझ बनी कि मुसलमानों को ऐसा करने की दिशा में स्वयं आगे आना चाहिए।… खुद महात्मा गांधी ने 1917 में कहा था कि रोजाना 30 हजार गायों की हत्या अंग्रेजों को मांस उपलब्ध कराने के लिए की जाती है।” आज के समय में गो-तस्करी को बढ़ावा देने वाले राजनेता, शासन तंत्र और उनके प्रचारक की भूमिका निभा रही मीडिया अंग्रेजों की भूमिका में है और मॉब लिंचिंग का झूठा नरेशन पैदा कर मुसलानों को उकसा रहे हैं कि वह गो-वध बिना डरे करे ताकि इनकी तस्करी का धंधा अबाध गति से जारी रहे।
केंद्रीय स्तर पर गो-वध कानून लागू न हो सके, इसलिए गो-तस्करों ने चलवा रखा है झूठा विमर्श
एक हिंदू समाज जो वेद से लेकर आज तक गाय को अपनी माता मानकर पूजता रहा है, उसकी मां की हत्या करोगे तो वह आंदोलन भी न करे? वह क्रुद्ध भी न हो? वह अपना आक्रोश भी व्यक्त न करे? वह चुपचाप बैठा रहे? शायद कानून लागू करने वाली सरकारी एजेंसियां और एलिट-कारपोरेट मीडिया यही चाहती है। आप देखिए कि देश में गो-हत्या प्रतिबंध को लेकर देश के अधिकांश राज्यों में कानून है, लेकिन सरकारें और पुलिस मुसलमानों और ईसाइयों को खुश करने के लिए इसे ठीक ढंग से लागू नहीं करती हैं, बल्कि देखने में तो यह आया है कि पुलिस और नेता मिलकर गो-तस्करों से नोट बटोरते हैं, अपना धंधा चलाते हैं।
बड़े पैमाने पर बिहार, उप्र, बंगाल, हरियाणा, पंजाब से बंग्लादेश बॉर्डर पर गो-तस्करी की जाती है और यह किसी से छुपी हुई नहीं है। सच्चाई तो यह है कि केंद्रीय स्तर पर गो-वध कानून लागू न हो सके, इसलिए गो-तस्करों ने मीडिया के जरिए झूठा विमर्श चला रखा है। और हो न हो, इन हत्याओं, मॉब लिंचिंग के पीछे भी उन्हीं का हाथ हो। एक आंकड़ों के मुताबिक गो-तस्करों ने बॉर्डर क्षेत्र में अभी तक 300 से अधिक बीएसएफ जवानों की हत्या की है, जो गो-तस्करी को रोकने का प्रयास कर रहे थे।
अखलाक और जुनैद के मामले को समझिए
अब उप्र के अखलाक की हत्या ही ले लीजिए! फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ कि उसके घर में जो मांस मिला था, वह गोवंश का था। उप्र में गो-हत्या बंदी कानून दशकों से लागू है, लेकिन अखलाक की ढिठाई देखिए कि उसने अपने ही गांव के एक हिंदू परिवार का नवजात बछड़ा चुराया और उसे काट कर सपरिवार खा गया। क्या उस गांव-उस समाज में आक्रोश नहीं पनपेगा? जब आप कानून को तोड़कर बड़ी ढिठाई से अपराध कर रहे हैं तो दूसरा उसकी प्रतिक्रिया भी न करे? और तब जब उप्र में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुजफ्फरनगर दंगे में मुसलमान दोषियों को बचाने के लिए शिकायतकर्ता हिंदू परिवार को ही जेल में ठूंस दिया गया हो, तब कोई हिंदू मुसलमानों के विरुद्ध शिकायत करने की हिम्मत कैसे करता?
अब जुनैद की हत्या ले लीजिए। हरियाणा व पंजाब हाईकोर्ट ने साफ कहा कि उसकी हत्या सीट को लेकर हुए विवाद में हुई थी, लेकिन आज तक मीडिया और तथाकथित सेक्यूलर जमात उसे मॉब-लिंचिंग से जोड़ कर यह विमर्श लगातार जारी रखे हुए हैं कि उसकी हत्या गोरक्षकों ने की। अब जब इतना झूठ फैलाओगे तो क्या हिंदू मन व्यथित नहीं होगा? अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकते कि तुमने न ठीक से कानून लागू किया, तुमने हिंदुओ को बदनाम करने के लिए अभियान चलाया और हिंदुओं को ही प्रताडि़त किया। तो भैया पुरानी कहावत है, ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस।’ हिंदुओं को लाठी लेकर खुद उतरना पड़ा। ठीक से कानून लागू करो, उन्हें बदनाम करना बंद करो, वह अपनी लाठी को फेंक देंगे! परिस्थितियां जो वोट बैंक के लालची सरकारों ने पैदा किया, पुलिस ने उस लालच में रिश्वत का माल बटोरा, तस्करों ने उसे धंधा बनाया और बदनाम छोटे-छोटे गोरक्षक हुए।
भीड़तंत्र तुम बना रहे हो, न कि हिंदू समाज
हां, इस गो-वध के धंधे से बड़े पैमाने पर हिंदू भी जुड़े हैं, तो देख लो उनकी दशा, आज अपने ही मूल देश में वो हत्यारे बनाए जा रहे हैं, खदेड़े जा रहे हैं, शरणार्थी जैसी जिंदगी (कश्मीरी पंडितों का) सामने है- कर्म फल तो इन्हें भी भोगना है। गोपाल कृष्ण के वंशज यदि गाय मारेंगे तो भुगतान तो उन्हें करना ही होगा, और वो भुगत रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे मातृहंता लोगों के कारण पूरे हिंदू समाज के मन पर प्रहार तो मत करो।
वेद से लेकर पुराण तक गाय को माता माना गया है, तुम माता मत मानो, लेकिन जिनकी आस्था है, उनकी आस्था पर प्रहार भी मत करो। इसलाम की हलाला जैसी महिला शोषक कुरीतियों को आस्था कहते हो और गो-वध बंदी को सेक्यूलरिज्म के खिलाफ, यह विद्रोह तुम्हारे इसी दोगलेपन से उपजा है। मुसलमान और अंग्रेज शासक होकर भी हिंदुओं के आंदोलन से डर गये थे, फिर आज तो लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र को सरकारें, राजनेता, पुलिस, अदालतें और सबसे अधिक मीडिया भीड़तंत्र बना रहा है, न कि हिंदू। समाज की मुख्य समस्या का समाधान ढूंढ़ दो, गो-वध बंदी कानून पूरे देश में लागू करो और उसका ठीक से क्रियान्वयन करो, कोई मॉब लिंचिंग नहीं होगी। हिंदू ऐसे भी शांत लोग होते हैं। लेकिन उनकी मां को काट कर तुम चाहो कि वह कुछ बोले भी नहीं तो यह संभव नहीं!
URL: law of cow slaughter should be enacted all over India
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