देश इस समय कोरोना वायरस जैसी भयानक आपदासे जूझ रहा है. और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इसका डट कर मुकाबला भी कर रहा है. लेकिन ऐसे समय में कुछ इकाइयां ऐसी हैं जिन्हे भारत का कोरोना वायरस के विरुद्ध छेड़ा गया यह युद्द फूटी आंख नहीं सुहा रहा है. और वे इस समय भी यह प्रमाणित करने में लगे हुए है कि भारत इस वायरस से लड़्ने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है, सरकार लोगों की आंखों में धूल झोंक रही है, वगैरह वगैरह. और इस गंदी पत्रकारिता में प्रिंट ,वायर, स्क्रोल जैसे राष्ट्रीय मीडिया शामिल हैं तो बी बी सी, अल जज़ीरा, गल्फ न्यूज़ जैसे अंतराष्ट्रीय मीडिया भी.
लेफ्ट लिबरल मीडिया की अधिकतर खबरें कयासों पर आधारित
एक ऐसे समय में जब अधिकतर मीडिया कोरोना वाइरस के मुद्दे को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने का काम कर रह है, यहां तक कि विपक्षी राजनीतिक दल भी इस विषय पर राजनीति करने से बच रहे हैं, कुछ लेफ्ट लिबरल मीडिया आउट्लिट्स ने अनैतिक पत्रकारिता की सारी सीमायें लांघ दी हैं. वाइर इस समय जितनी भी न्यूज़ रिपोर्ट कर रहा है, सभी कयासों पर निर्धारित हैं कि सरकार को ऐसा करना चाहिये था, वैसा करना चाहिये था,जो उसने अभी तक किया नहीं. और इन्ही कयासों को लेकर लोगों में पैनिक यानि घबराहटें फैलाने की कोशिश की जा रही है. वायर समेत अन्य कई आउट्लिट्स पर तथाकथित एक्स्पर्ट्स का इंटरव्यू लेकर इस प्रकार की खबरें आम बात बन गयीं हैं कि किस प्रकार एक एक्स्पर्ट णे कहा कि भारत में एक मिलियन से भी अधिक लोगों को कोरोना वायरस हो सकता है, वगैरह ,वगैरह. फिर ये सब मीडिया आई सी एम आर की टेस्टिंग स्ट्रैटिजी पर भी प्रश्न चिन्ह लगाने से भी नहीं चूंक रहे. इस तरह की भ्रांतियां फैला रहे हैं कि भारत में चूंकि बहुत कम टेस्टिंग हो रही है, इसीलिये ऐसे कई कोरोना वाइरस के केसेज़ होंगे जिनकी जांच पड़्ताल नहीं शुरू हुई है, कि कैसे भारत में कोरोना वायरस का कम्यूनिटी ट्रांसमिशन यानि आम लोगों के बीच फैलना शुरू हो चुका है. वायर ने तो 20 फरवरी को एक आर्टिकल छापा है जिसमें वो गुरूवार को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिये गये वक्तव्य को और कोरोना वायरस को लेकर जो भी तथ्य सरकार सामने ला रही है, उस सब को प्रोपोग़ैंडा बता रहा है. अगर आप पूरा लेख पड़ें, तो पायेंगे कि लेख में कोरोना वाइरस का विषय सिर्फ के माध्यम मात्र है मोदी सरकार के बारे में दुष्प्रचार करने का, ये बीजेबी सरकार के विरुद्ध खुल्लम्खुल्ला राजनीतिक कैम्पेनिंग है. इसे किसी भी प्रकार से न्यूज़ कहना न्यूज़ शब्द का अपमान होगा.
ताली बजाने ,शंखनाद करने की बात को लेकर भी लेफ्ट लिबरल गैंग का दुष्प्रचार
रविवार को शाम पांच बजे प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर देशवासियों ने जो ताली बजा कर, थाली कटोरी बजा कर और शंखनाद कर के कोरोना वाइरस के खिलाफ जो सिपाही हमारी लड़ाई आगे से लड़ रहे हैं, उनका आह्वाहन किया था, उस की भी लेफ्ट लिबरल गैंग वालों ने मज़ाक बनाई. तालियां बजने के कुछ देर बाद से ही सोशल मीडिया पर इस प्रकार की पोस्ट दिखाई देनें लगीं कि किस प्रकार तालियों और शंखनाद से ज़बर्दस्त वायु प्रदूषण हुआ, वगैरह , वगैरह! लेफ्ट लिबरल मीडिया आउट्लिट्स ने तुरंत इस प्रकार की खबरों का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया कि कैसे ताली बजाना पर्याप्त नहीं, सरकार को लोगों की सुरक्षा के लिये बहुत कुछ करना होगा, वगैरह वगैरह. जब कोई भी देश लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी किसी आपतकालीन स्थ्ति से गुज़र रहा होता है, तो मीडिया संस्थाओं की भी कुछ गरिमा होती है. कि वो सिर्फ तथ्यों के आधार पर जो घटित हो रहा है, वह लोगों को समय समय पर बताते रहें, और लोगों को सचेत करने का काम ज़रूर करें लेकिन डूम्स्डे प्रिडिक्ट कर उन्हे डराने का काम बिल्कुल न करे. इटली में, स्पेन में कोरोना वाइरस को लेकर कितनी मौतें हुईं, लेकिन क्या आपने कभी भी किसी अंतराष्ट्रीय न्यूज़ रिपोर्ट में वहां की सरकारों की जबरन निंदा देखी. नहीं. जहां मामला यूरोपीय देशों का है, वहां मीडिया अति संवेदनशील बन गया . और जहां मुद्दा भारत जैसे विकासशील देश का है, एक ऐसा देश जहां से गरीबी भुखमरी से जुड़ी खबरें अंतराष्ट्रीय मीडिया खंगाल खंगाल कर निकालता है, कोरोना वायरस से ऊट पटांग खबरें बनाने का अवसर भला वह कैसे छोड़ दे?
ऐसे समय में इस प्रकार की अनैतिक ‘न्यूज़’ पर अंकुश लगाने की अत्यधिक आवश्यकता है. बहुत सी ऐसी न्यूज़ बिना किसी प्रमाण के होती है. उदाहरण के लिये, एक्स्पर्ट्स के अनुसार ऐसा है… और उन एक्स्पर्ट्स के कोई नाम नहीं होते. तो एजेंडा साफ है. एक्स्पर्ट्स के नाम पर कोई पूर्व-निर्धारित एजेन्डा चलाये जाने का प्रयास किया जाता है. और यह पत्रकारिता के सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत है.