प्रतिष्ठित अख़बार ‘द हिन्दू’ ने ‘सेल साइंस’ के वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के मुताबिक कुम्भ मेले में सामूहिक स्नान के कारण ‘बैक्टेरिया’ में वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों की टीम का निष्कर्ष है कि ‘सामूहिक स्नान’ के कारण ‘स्किन और फेशियल माइक्रोबायोटा’ में बढ़ोतरी होती जा रही है। कुम्भ मेले की परंपरा इतनी प्राचीन है कि चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने अपने लेखों में इसका वर्णन किया है। जो वर्णन उपलब्ध है, वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है। हज़ारों वर्ष प्राचीन कुम्भ मेले की ये परम्परा कभी दूषित नहीं हुई।
हज़ारों साल से देश में लाखों लोग एक ही दिन एक साथ नदियों में स्नान करते रहे लेकिन इतिहास के पन्नों में किसी बड़ी बीमारी का उल्लेख नहीं मिलता। भगदड़ में हुई, अव्यवस्थाओं के कारण हुई मौतों को अलग रख दे तो कुम्भ में स्नान के दौरान या उसके बाद कोई बड़ी बीमारी रिकॉर्ड नहीं की गई है।
‘द हिन्दू’ ने 24 नवंबर को अपनी वेबसाइट पर एक समाचार प्रकाशित किया। समाचार के मुताबिक पुणे स्थित नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस के वैज्ञानिकों ने अपनी खोज में पाया है कि मानव त्वचा, मल और संक्रामक रोगों से उत्पन्न होने वाले बैक्टेरिया की तादाद बढ़ती जा रही है। ये स्टडी सन 2015 में नासिक कुम्भ के दौरान की गई थी। गोदावरी नदी के घाट की पांच साइटों से ये सैम्पल कलेक्ट किये गए थे। जब ये रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो ‘द हिन्दू’ ने इस रिपोर्ट का निष्कर्ष पढ़े बगैर इसे छाप दिया।
स्टडी कर रही टीम के कैप्टन डॉ.अविनाश शर्मा इस रिपोर्ट के निष्कर्ष पर कहते हैं ‘जिस साइट से हमने ये सैम्पल कलेक्ट किये हैं, वह ‘सामूहिक स्नान’ की पारंपरिक साइट नहीं है। वे ये भी कहते हैं कि ‘इस बढ़ते बैक्टेरिया से होने वाले नुकसान का पता लगाने के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है।’ अब फिर से इस अख़बार के लेख का ‘शीर्षक’ देखिये। शीर्षक के मुताबिक ‘कुम्भ मेले के दौरान होने वाले स्नान से बैक्टेरिया फ़ैल रहा है। जबकि खुद वैज्ञानिक अपने निष्कर्ष के प्रति आश्वस्त नहीं लग रहे तो फिर ‘द हिन्दू’ इसे एक खबर की तरह पेश कर कुम्भ को बदनाम करने का प्रयास क्यों कर रहा है।
देश के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन काल से ही कुम्भ स्नान होते आए हैं लेकिन कभी कोई बीमारी नहीं फैली। पश्चिम के वैज्ञानिक सदा से आश्चर्य करते रहे हैं कि भारतीय कुओं और बावड़ियों का पानी कैसे पी लेते हैं जबकि वह जल तो विज्ञान की दृष्टि में असुरक्षित है। कुँए और बावड़ी तो खुले होते हैं। उनमे कितने जीवाणु रहते हैं। और वैज्ञानिकों को आश्चर्य है कि फिर भी वे बीमार नहीं पड़ते।
तो ‘द हिन्दू’ महाशय उनका खानपान ऐसा है कि पानी में मौजूद जीवाणु उन पर असर नहीं करते। पंजाब-हरियाणा में मट्ठा और लस्सी पीने का चलन है। इसी ‘चलन’ में छुपा है पानी से बीमार न पड़ने का राज। इसके अलावा अकाट्य तथ्य है कि कुम्भ में स्नान करने वाला कोई व्यक्ति बीमार नहीं पड़ा, फिर चाहे वह गंगा हो, क्षिप्रा हो या गोदावरी हो।
सर्वविदित तथ्य है कि सौर मंडल के ग्रहों के विशेष राशियों में प्रवेश करने के बाद बना खगोलीय संयोग इस पर्व का आधार है। यानि कुम्भ की अवधारणा नितांत वैज्ञानिक है। जब सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में हों और बृहस्पति मेष अथवा वृषभ राशि में स्थित हो तब प्रयाग में कुम्भ महापर्व का योग बनता है।इस योग का प्रभाव नदियों के जल पर भी पड़ता है। गंगाजल में ऑक्सीजन अत्यधिक होने और इसमें कुछ विशिष्ट जीवाणुओं के मौजूद होने से यह अत्यधिक विशिष्ट है।
द हिन्दू जैसे मीडिया संस्थान एक ओर तो कुम्भ को अवैज्ञानिक मानते हैं और दूसरी ओर इस तरह की अपूर्ण स्टडी को आधार बनाकर खबरे छापते हैं। द हिन्दू को हम बताना चाहते हैं कि प्रयागराज में होने जा रहे कुम्भ में नागरिकों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए क्या-क्या किया जा रहा है।
– कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए, साथ ही मेला क्षेत्र को पूरी तरह से खुले में शौच मुक्त करने के लिए एक लाख 22 हजार 500 शौचालय भी बनाने का फैसला हुआ है। इसके अलावा महिलाओं के लिए पिंक टॉयलेट अलग से बनाए जाएंगे।
-नगर निगम ने कुम्भ के दौरान हर पांच सौ मीटर के दायरे में लोगों को टॉयलेट उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। मेले के दौरान शहर के एंट्री प्वांट्स और संगम नोज पर मोबाइल टॉयलेट भी लगाये जायेंगे।
-गंभीर अवस्था में विशिष्ट लोगों के अतिरिक्त श्रद्धालुओं को भी विशेषज्ञों की संस्तुति पर बेहतर इलाज के लिए देश के बड़े नामचीन अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए ‘एयर एम्बुलेंस’ का इंतजाम रहेगा।
– श्रद्धालुओं को आस्था की डुबकी लगाने के लिए न सिर्फ पर्याप्त मात्रा में गंगाजल मिलेगा, बल्कि इसकी क्वालिटी भी काफी बेहतर होगी। कुंभ के दौरान संगम पर पर्याप्त गंगाजल के लिए उत्तराखंड सरकार से समझौता हो चुका है। 25 दिसंबर से टिहरी बांध से दो हजार क्यूसेक और नरौरा बैराज से पांच हजार क्यूसेक पानी लगातार छोड़ा जाएगा।
URL: Leftist media presenting incomplete research
Keywords: Kumbh Mela, Prayagraj, media, The hindu, National Centre for Cell Science