मनीष ठाकुर: सुकुन मिलता है कि इंसानियत जिंदा है। कुछ लोग ही सही वो इंसाफ की गुहार तो लगा रहे हैं। आवाज तो उठा रहे हैं कि आखिर सलमान खान बरी कैसे हो गए? हां यदि आप यह आवाज महज इसलिए उठा रहे है क्योंकि आपको किसी कारणवश सलमान खान से नफरत है तो यकीन मानिये इंसाफ की आवाज बेदम हो जाएगी । लीजिये हो गई, दरअसल सच यह है कि सलमान खान की तरह सैकड़ों लोग हर माह देश की अदालतों से पैसे की ताकत से इंसाफ खरीद लेते हैं, बस पैसे की कीमत पर, आपको पता ही नहीं चलता। तरीका वही होता है जो सलमान को बाईज्जत बरी कराने के लिए इस्तेमाल किया गया। अभियोजन पक्ष का गवाह या तो पेश नहीं होता या मुकर जाता है। परिस्थिजनस्य साक्ष्य को तोड़ मरोड़ दिया जाता है। इस शातिरपने में पूरी भूमिका उसकी होती है जिस पर इसांफ का दारोमदार होता है।
जी नहीं जनाब, जज नहीं मैं अभियोजन पक्ष(सरकारी वकील और जांच अधिकारी) की बात कर रहा हूं । दरअसल न तो आपकी मीडिया के लिए वह खबर है न हमारे आपके लिए कोई जिज्ञासा का कारण। लेकिन जब – जब मीडिया को ऐसे मुद्दे ने उसकी जमीर को हिलाया, रसूख वाले पूरे साक्ष्य और गवाह खरीद लेने के बाद भी इंसाफ खरीद नहीं पाए। सच है यह। दिल्ली में जेसिका लाल मर्डर केस और नीतीश कटारा मर्डर केस इसके उदाहरण हैं। भरोसा रखिए इन दोनों केस में कुछ भी नहीं बचा था जो आरोपी को दोषी साबित कर सके। लेकिन दोनों केस के दोषी जीवन भर के लिए सलाखों के पीछे हैं।
जेसिका लाल मर्डर केस में मनु शर्मा को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने बरी कर दिया । अगले दिन इस खबर पर टाईम्स आफ इंडिया की फ्रंट पेज हैडिंग…’नो वन्स किल्ड जेसिका’ ने कोहराम मचा दिया। फिर इंडिया गेट पर जेसिका के लिए इंसाफ की मांग में मोमबत्तियां जलने लगी। टीवी मीडिया, हर खबर को छोड़ जेसिका को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी बुलेटिन कुर्बान करने लगी। असर यह हुआ की साल भर के अंदर निर्दोष साबित मनु शर्मा को हाईकोर्ट ने दोषी बता, जीवन भर के लिए सलाखों के पीछे भेज दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी उस पर मुहर लगा दी। महज जोश में कुछ पल के लिए होश गवाने की कीमत, कांग्रेस पार्टी के नेता व हरियाणा में रसूख रखने वाले शराब व्यापारी विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा के लिए जीवन भर की तबाही लेकर आया। टाईम्स आफ इंडिया की उसी हेडिंग की नकल सोशल मीडिया पर सलमान खान की रिहाई के लिए चल पड़ी है। ‘काले हिरण ने खुद को गोली मारी’, ‘पतंग के मांझे में उलझ कर मर गया था काला हिरण’। एक वर्ग को लगता है कि हिरण को जेसिका की तरह इसांफ क्यों नहीं मिला ? तो क्या सलमान सरीखे रसूख वाले इंसाफ खरीद लेते है? इस पर भरोसा न किया जाए इसकी गुंजाइस भी तो नहीं दिखती।
फरवरी 2006 में जेसिका लाल मर्डर केस में जब जजमेंट आया तो कोर्ट की नियमित रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टरों को भी पता नहीं चला। जब कि इस केस की हम सब नियमित रिपोर्टिंग कर रहे थे। शाम पांच बजे के बाद एकाएक खबर ब्लास्ट हुई तब तक अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के वकील भी जज साहेब की तरह घर जा चुके थे, समझिए इसकी गंभीरता को, जबकि इस केस में अभियुक्त मनु या विकास की एक एक हरकत या गवाहों की गवाही की रिपोर्टिग हो रही थी। लगभग सभी गवाह मुकर चुके थे। कुछ भी तो नहीं था मनु को दोषी साबित करने के लिए साक्ष्य। महज इस भरोसे के कि हत्या उसी ने की थी लेकिन जब सच उफान मारने लगा तो उसे सुप्रीम कोर्ट में भी देश के सबसे बड़े वकील रामजेठमलानी भी अपनी तर्कों से नहीं बचा पाए। मनु आज भी जेल में है।
इससे पहले दिल्ली की चर्चित प्रियदर्शनी मट्टू केस में भी लड़की से एकतफा प्यार करने वाला रसूख वाला था। सरकारी पक्ष के गवाह को अदालत में अपने पक्ष में कर लिया या गायब कर दिया। सभी साक्ष्यों को तोड़मरोड़ दिया, लिहाजा इंसाफ औधे मुह गिर गया। मामले के जज जे पी थरेजा ने उस वक्त दुखी मन से अभियुक्त को दोष मुक्त करते हुए कह गए ‘हमें पूरा संदेह है कि तुमने मारा है प्रियदर्शनी को लेकिन अभियोजन पक्ष के नकारेपन के कारण तुम्हें सजा देने में मेरे हाथ बंधे हैं।’ आज तक किसी जज ने ऐसी टिप्पणी की हो उसकी मिसाल नहीं। दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट के जज थरेजा की यह टिप्पणी अभियुक्त के लिए तबाही लेकर आया। सालों बाद हाईकोर्ट ने उसे जीवन भर के लिए जेल भेज दिया।
आईएफएस अधिकारी के बेटे नितीश कटारा हत्याकांड में सभी सबूत और गवाह वैसे ही नष्ट कर दिए गए। कुछ भी नहीं था तो बाहुबली डीपी यादव के बेटे विकास यादव को दोषी ठहरा सके लेकिन अभियोजन पक्ष के वकील और नितीश की मां नीलम का लडाकू तेवर ही था जो विकास को सलाखों के पीछे भेज पाया। सलमान के केस में भी अभियोजन पक्ष ने उसी कहानी को दोहराई है । दअसल सच यह है कि प्रभावशाली लोग जब फंसते हैं तो सबसे पहले उन्हें गिरफ्तार करने वाली पुलिस उस वकील का नाम उसे सुझाता है जो केस को तोड़ सके। जिससे उसकी साठ गांठ हो। फिर सामान्यतः अभियोजन पक्ष के अधिकारी और अभियुक्त के वकील तय करते हैं किस गवाह को क्रास एग्जामिनेशन के समय बुलाया जाय और किसे नहीं। सलमान के केस में भी जिप्सी ड्राइवर हरीश दुरानी जो इस मामले का अहम गवाह था उसने सरकारी वकील के सामने तो अपनी गवाही दे दी लेकिन जब उसका क्रास एग्जामिनेशन बचाव पक्ष के वकील को करना था तो वह गायब रहा। इंसाफ के कानून के मुताबिक बिना क्रास एग्जामिलेशन के गवाह की गवाही के मायने नहीं रह जाते। अब मीडिया
रिपोर्ट के मुताबिक हरीश का कहना है कि उसे बुलाया ही नहीं गया।
दिल्ली के ही चर्चित बीएमडब्लू केस में भी गवाह के साथ यही खेल हुआ था। लेकिन नाटकीय तरीके से वह अदालत में पेश हो गया! देश के एडमिरल रहे एसएम नंदा के पोते संजीव नंदा को जेल भेज दिया, समान्यतः यही पैटर्न है, जिसे अपनाया जाता है। काले हिरण मामले में पुलिस ने जिप्सी में हिरन के बाल डाले थे ताकि साबित हो सके कि सलमान ने हिरण मारा था। लेकिन बचाव पक्ष ने साबित कर दिया कि बरामद बाल मृत हिरण के नहीं थे। यह चौंकाने वाली बात है। संदेह इस पर भी जाता है कि नकली बाल डाले ही इसलिए गए होंगे ताकि बचाव पक्ष साबित कर दे कि बरामद बाल असली नहीं। केस भी साबित नहीं हुआ और सरकारी पक्ष केस साबित करता हुआ दिख गया। न्यायिक व्यवस्था का यह पूरा खेल एक ऐसा काला सच है जिस पर लगाम लगाना मुश्किल है। किसी सलमान खान को सलाखों के पीछे भेजने से सलमान से नफरत करने वालों को सुकुन भले ही मिल जाए इंसाफ पर भरोसा कैसे जगेगा ? तब ,जब हजारों सलमान चोर दरवाजे से बाहर इंसाफ को ठेंगा दिखाते रहेंगे।
बेहतरीन पोस्ट आंख खोलने वाली
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अर्णव गोस्वामी सही हैं या गलत यह जांच का विषय है। लेकिन जिस तरह कठुआ में FIR के आधार पर उन्होंने आरोपियों को सीधे बलात्कारी घोषित कर दिया था, मैंने तो अभी भी पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए उसे अभी आरोपी ही लिखा है। मीडिया ट्रायल करने वालों का भी मीडिया ट्रायल तो हो, ताकि जो दूसरों के परिवार पर बीतती है, वही ऐहसास उसे व उसके परिवार को भी हो!