मैं बेहद शॉक्ड हूं। मैं #SheToo की साजिश साजिश का शिकार होते-होते बचा, या फिर यह बस एक दुर्घटना थी? मैं समझ नहीं पा रहा हूं। मैं चाहूंगा कि सोशल मीडिया पर मौजूद महिलाएं इसमें मदद करें कि आखिर ऐसे सिचुएशन से कैसे निपटा जाए।
#SheToo
आज इंडिया टुडे साहित्य वार्षिकी से मैं लौट रहा था। लौटते हुए मैंने शशि थरूर की एक पुस्तक ‘अंधकार काल’ वहीं वाणी प्रकाशन से खरीद ली। मेरे साथ Manish Thakur जी थे। मंडी हाउस मेट्रो पर रुक कर हम दोनों अपने-अपने रास्ते चले गये। मैं द्वारका वाली मेट्रो में सवार हो गया। बाराखंबा रोड पर एक सीट खाली हुई। मैंने देखा, वह कोई आरक्षित सीट नहीं थी। मैं निश्चिंत होकर बैठ गया।
बैठते ही किताब खोल कर मैं पढ़ने लगा। यह मेरी रोज की आदत है। राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर मेट्रो खुली, और एक महिला घुसते ही मेरे पास आकर चिल्लाने लगी। मैंने नजरें उठायी। छोटे बाल, और काली गाउन वाली उस महिला के साथ एक छोटी सात-आठ साल की बच्ची थी। वह महिला बदतमीजी से बोली, ‘बच्ची खड़ी है और आप बैठे हैं?’ मैं बैठे-बैठे ही थोड़ा खिसक गया और कहा, ‘यहां बैठा दीजिए।’
वह जोर से चिल्लाई! “मेरी बेटी इतनी छोटी-सी जगह में बैठेगी? आप उसे अपने बगल में क्यों बैठाना चाहते हैं?”
मैं किताब में नजरें गड़ाए रहा। उसकी चिल्लाहट से मेरे बगल का यात्री उठ गया, और उसकी बेटी सैंडिल पहने ही पालथी मार कर सीट पर बैठ गयी।’
उस महिला की चिल्लाहट बंद हो जानी चाहिए थी, लेकिन वह और जोर-जोर से मेरे पर चिल्लाने लगी।
‘तुम मेरी बेटी को अपनी गोद में बैठाना चाहते थे।’
‘क्या? किस प्रकार की बदमीजी कर रही हैं आप?’ मैंने कहा।
‘हा़, तुम मेरी बेटी को एक्सपोलाइट करना चाहते थे।’ वह कर्कश आवाज में चिल्ला रही थी।
‘आप पागल हैं। जाइए यहां से।’ मैंने बैठे-बैठे ही कहा।
‘जाओगे तो तुम।’ वह मुझ पर झुकते हुए बोली।
“सुनिए मैडम, यह सीट आरक्षित नहीं कि मैं उठ कर यहां से जाऊं।’आप बदतमीजी कर रही हैं। मैं पुलिस को बुलाऊंगा।” मैंने कहा।
“बुला पुलिस को। बताती हूं। तेरी बेटी को कोई जब अपनी गोद में बैठाना चाहेगा, तब पता चलेगा। तूने मेरी बेटी को गोद में बैठाने का प्रयास किया है।” वह पूरी तरह नीचता पर उतर आयी।
आसपास के लोग सच देखकर भी मुर्दा की भांति चुप थे। मैं महिला की चाल समझ गया कि हो न हो यह कोई ट्रैप है, जो मुझे घटिया तरीके से बदनाम करने के लिए काम कर रहा है। मैं लोगों से मुखातिब हुआ,
“आप सब देख रहे हैं न इस महिला की बदतमीजी? क्या आप लोग कुछ नहीं बोलेंगे?”
एक बुजुर्ग आदमी आगे आए। उसने कहा, “मैडम आप बदतमीजी कर रही हैं। एक शरीफ आदमी को बदनाम कर रही हैं। बेचारा चुपचाप पढ़ रहा था। आपकी बच्ची को सीट दिया। एक व्यक्ति उठ भी गया, और आप तमाशा कर रही हैं।” तब भी सब चुप रहे।
वह महिला मुझ पर चिल्लाती रही। मैंने कहा, ‘आपे में रहो।’ तभी उसके साथ खड़ा एक हट्टा-कट्ठा मर्द सामने आया और बोला, “खबरदार जो मेरी पत्नी को ऊंगली दिखाई। हाथ तोड़ दूंगा।”
‘तू तोड़ेगा मेरा हाथ?’ फिर मैं लोगों से मुखातिब हुआ, ‘आप सब सच देखकर भी खामोश हो? क्या आप लोगों को यह उचित लग रहा है?’ मैं मेट्रो कॉल सेंटर को फोन मिलाने लगा।
इतने में उस व्यक्ति ने मुझ पर हाथ छोड़ दिया। फिर क्या था। फोन मिलाना छोड़ कर मैंने भी उसे एक लात मारी, और पंच जड़ दिया। लोग मेरे पक्ष मे़ उतर आए और उसे मारने के लिए घेर लिया। स्थिति अपने प्रतिकूल होते ही मुझे ‘बाहर निकल’ की ललकार लगाते हुए तीनों मेट्रो के गेट की ओर लपके और अगले स्टेशन पर गेट खुलते ही बाहर निकल गये, और स्टेशन से मुझे ललकारने लगे।
मैंने सोचा कि ये सारे चश्मदीद तो यहीं रह जाएंगे, और यदि मैं बाहर निकल कर इसके खिलाफ शिकायत करने पहुंचा तो यह औरत मेट्रो अधिकारी/पुलिस के सामने मुझ पर अपना या अपनी बच्ची के शोषण का अनाप-शनाप आरोप लगा देगी। पुलिस मुझे सुने बिना उसकी बात पर मुझ पर कार्रवाई कर देगी।
लोगों की भीड़ के समक्ष, जब बिना जान-पहचान के और उसकी बच्ची के बैठने के लिए मदद करने के बवजूद वह ऐसा घृणित खेल खेल सकती थी तो फिर पुलिस के समक्ष तो पूरा त्रिया चरित्र खेलती, और बेवजह बदनामी मेरे सिर आती। यह सोचते ही, उसकी ललकार को अनसुना कर उसके पीछे जाने की जगह मैं मेट्रो में ही रहा।
लोग कह रहे थे, “दो मिनट वह व्यक्ति और रुक जाता तो हमलोग उसे बुरी तरह पीट डालते…ऐसे कैरेक्टर की महिला के कारण आज कोई भी किसी महिला की मदद करने से डरता है…पता नहीं अपनी बच्ची को आगे चलकर कैसा गंदा संस्कार देगी यह महिला…” वगैरह..वगैरह!
मैं शॉक्ड हूं। इसे किसी वामपंथी की साजिश मानूं कि अचानक से मेरे साथ घटी एक अप्रत्याशित घटना? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। बाइक पर एक बार कुछ लोगों ने पीछा किया था, तो बाइक चढ़ना छोड़ा। अब मेट्रो से चलना कैसे बंद करूं?